Wednesday, February 24, 2010

अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु दिव्यं ददामि ते चक्षुः।
अर्थात हमारी आँखें दिव्य बनें और जो दिव्यता को देख सके। यह तभी हो सकता हैं यदि हम सर्वश्रएष्ठ देख सकें, शालीनता को तलाश सकें और जो कुछ भी इस संसार में दिव्य हैं,उस दिव्यता को देख सकने में सक्षम हो।

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