Friday, April 30, 2010

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में प्रतिमा के रूप में जो भगवान रहते हैं वह बोलते नहीं परन्तु हमारे अतःकरण में रहने वाले भगवान जब भी दर्शन देते हैं तो वे हमसे बात करने के व्याकुल रहते हैं और वह हमसे यह प्रशन करना चाहते हैं कि "मेरे इस अति दुर्लभ, दिव्य, अनुपम मानव जीवन के उपहार का इससे अच्छा उपयोग क्या और कुछ नहीं हो सकता जैसा कि किया जा रहा हैं?"वे इसका उत्तर हम सबसे चाहते हैं, एवं हमें इसका उत्तर जीते-जी या मृत्योपरान्त भगवान को देना ही होगा।

Thursday, April 29, 2010

हमारे सबसे नज़दीक, सबसे करीब, यदि कोई हैं तो वह हैं ईश्वर। हम ईश्वर के बनें एवं उन्हीं के लिए जिएँ, स्वयं को कामनाओ से रिक्त कर दें, एवं ईश्वर की इच्छा और प्रेरणा के आधार पर स्वयं को आत्मसमर्पित कर दें तो स्वयं को परम पिता की कृपा अनुकम्पा से ओत प्रोत पाएँगें।

Wednesday, April 28, 2010

"जो दूसरे को जीते सो वीर जो अपने को जीते सो महावीर"। यानि अपना सुधार कर लेना संसार की सबसे बड़ी सेवा हैं, क्योंकि अधिकतर लोग दूसरे की आँख का तिनका तो देख लेते हैं परन्तु अपनी आँख का शहतीर नहीं देख पाते, अर्थात वे दूसरो की छोटी से छोटी गल्ती भी देख लेते हैं परन्तु स्वयं की बड़ी से बड़ी भूल भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

Tuesday, April 27, 2010

जो इन्सान भगवान को नहीं मानता वह मृत समान हैं एसा कई महापुरूषो ने कहा हैं। भगवान को पाने के लिए ही मनुष्य का इस धरती पर जन्म हुआ हैं, और यदि मनुष्य यहाँ (संसार) की कामनाओ में लीन अपने आराध्य (ईश्वर) को ही भुला दे तो यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल हैं।
जो इन्सान भगवान को नहीं मानता वह मृत समान हैं एसा कई महापुरूषो ने कहा हैं। भगवान को पाने के लिए ही मनुष्य का इस धरती पर जन्म हुआ हैं, और यदि मनुष्य यहाँ (संसार) की कामनाओ में लीन अपने आराध्य (ईश्वर) को ही भुला दे तो यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल हैं।

Monday, April 26, 2010

ज्ञान वह धन हैं जो कोई भी आपसे छीन नहीं सकता। ज्ञान रूपी सीपी में प्रवेश पाकर मनुष्य जीवन मोती बन जाता हैं। जब चारो ओर केवल अंधकार ही अंधकार हो एवं कोई रास्ता न सूझे, तब महापुरूषो द्वारा लिखे गए ग्रंथो का आसरा लें। उत्तम ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता, ज्ञानदेवता का वरदान पाकर मनुष्य निहाल हो जाता हैं।

Friday, April 23, 2010

परमात्मा का विधान सदैव के लिए मंगलदायक होता हैं। वे हमारे परम हितैषी हैं एवं सदा हमारे हित का की विचारते हैं। देह का सुख सोचना हमारी मूर्खता हैं, हमें जन्म से पूर्व एवं मृत्यु के बाद का विचार करना चाहिए। हर पल इस बहूमल्य मनुष्य जीवन के लिए ईश्वर का धन्यवाद करें और सच्चे हॄदय से पूर्ण समर्पण करें।

Thursday, April 22, 2010

उदारमना मनुष्य को सब तरफ उदारता ही बिखरी प्रतीत होती हैं। उदारता मनुष्य को उस सोपान पर पहुँचा देती हैं जहाँ उसे हर इंसान उस परमसत्ता की ही छवि प्रतीत होता हैं।

Wednesday, April 21, 2010

ईश्वर की उपासना प्रतिदिन करनी चाहिए। परन्तु कर्म से भी उपासना करना आवश्यक हैं। लकड़ी काटना, मकान की सफाई करना, पत्थर तोड़ना,खेत से अन्न निकालना भी भगवान की ही स्तुति हैं। कर्तव्य भावना से किए गए कर्म, परोपकारों से भगवान जितना प्रसन्न होते हैं, उतना भजन, कीर्तन से नहीं।

Tuesday, April 20, 2010

There is an old saying "If money is lost nothing is lost, if health is lost something is lost but if character is lost everything is lost". A person who has good character not only gains respect but people also trust him. Thus a good character should be a prime goal in life upon which is dependent the success and prosperity.
मनुष्य के जीवन में सद्‌विचारो का बहुत महत्व हैं, अपने सद्‍विचारों द्वारा मनुष्य चाहे तो बहुत ऊँचा उठ सकता है, एवं मनुष्य के गल्त विचार निश्चित ही उसे पतन के गर्त की ओर धकेलते हैं। अतः उचित यही होगा कि हम अपने मन में सदा सद्‍विचार ही रखें एवं सबका कल्याण ही सोचें।

Monday, April 19, 2010

धार्मिक व्यक्ति वह हैं जो रचयिता(परमात्मा) की छोटी-से छोटी कृति में भी उसी का रूप देखें, जो किसी से द्वेष न रखे, जो सदा सब का शुभचिंतक हो और सदा यही कामना करें कि सदैव सर्वत्र का भला हो।

Saturday, April 17, 2010

गायात्री शब्द का अर्थ हैं- प्राण-रक्षक। "गय" कहते हैं प्राण को ’त्री’ कहते हैं- संरक्षण करने वाली को। जिस शक्ति का आश्रय लेने पर प्राण का, प्रतिभा का, जीवन का संरक्षण होता हैं, उसे गायत्री कहा जाता हैं।

Thursday, April 15, 2010

परिस्थितियाँ सदा हमारे अनुकूल नहीं रहती, परन्तु सच्चा मनुष्य वही है जो विपरीत परिस्थति में भी टूटे नहीं एवं हार न मानें। जिस प्रकार सागर की हिलोरें कितनी ही तेज़ क्यों न हो चट्टान हार नहीं मानती उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन की चुनौतियों से हार न मान सदा सर्घषों से जूझते रहना चाहिए।

Wednesday, April 14, 2010

यदि अति दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त करके भी हम लक्ष्यहीन जीवन व्यतीत करते हैं तो यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा, हमें अपने कर्त्तव्य एवं स्वरूप को समझ अपने सच्चे स्वरूप सच्चिदानंद की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

Tuesday, April 13, 2010

प्रेम में ही प्राणी का स्वर्ग नीहित हैं, चाहे वह छोटा सा कीट-पंतग ही क्यों न हो प्रेम के लिए सदा लालायित रहता हैं, मनुष्य का जीवन भी प्रेम का ही सुन्दर स्वरूप हैं, एवं प्रेम पर ही टिका हैं। प्रेम की परिकाष्ठा हैं अपने आराध्य(परमात्मा) तक अपनी यह परम अनुभूति अभिव्यक्त करना।

Monday, April 12, 2010

पुरूषः स परः पार्थ भक्तया लभ्यस्त्वनन्यया।
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्‌॥
अर्थात उस परमपुरूष (परमात्मा) की प्राप्ति, जिसके भीतर सारे प्राणी स्थित हैं और जिससे सब कुछ व्याप्त हैं, अनन्य्भक्ति द्वारा ही संभव हैं।

Friday, April 9, 2010

अकसर कहा जाता हैं कि दिल से दिल को राहत होती हैं यानि यदि हम किसी को दिल से याद करते हैं तो करोड़ो मील दूर बैठे व्यक्ति के पास हमारे दिल का संदेश पहुँच जाता हैं, ऐसा विज्ञान ने प्रमाणित किया हैं, उसी प्रकार यदि हम परमात्मा को एक बार स्मरण करते हैं तो वे हमें करोड़ बार बुलाते हैं।

Wednesday, April 7, 2010

ज्ञान एवं ध्यान का चोली दामन का साथ हैं। ध्यान से ही ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। ध्यान द्वारा अर्जित संतुलित मनःस्थिति से मनुष्य यदि चाहे तो अपने लिए मोक्ष का द्वार भी खोल सकता हैं।

Tuesday, April 6, 2010

इंसान का सूक्ष्म शरीर उतनी ही बड़ी सच्चाई हैं जितना की परमात्मा की सत्ता, इसी सूक्ष्म शरीर के संचित कर्मो एवं उनके फलानुसार ही ईश्वर हमारा पुर्नजन्म निर्धारित करते हैं।

Monday, April 5, 2010

ईश्वर के दर्शन के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं हैं, परमात्मा को अपने भीतर ही देखना चाहिए जिसके लिए ज़रूरी हैं कि हम अपने भीतर संयम, सद्‌विचार एवं सद्‌भावना का विकास करें, दरसल परिष्कृत आत्मा ही परमात्मा की उपलब्धि हैं।

Friday, April 2, 2010

झूठ नहीं बोलना चाहिए,परन्तु कड़वा एवं अप्रिय सच भी किसी को नहीं बोलना चाहिए। दूसरों को नुकसान न पहुँचे, किसी की भावना को ठेस न पहुँचे ऐसी बात बोलनी चाहिए,ऐसी बोली गई बात झूठ होकर भी सौ सच के बराबर हैं।उसी प्रकार जिस बात से किसी को पीड़ा पहुँचे, किसी का मन आहत हो ऐसी कही गई बात सच होकर भी झूठ के बराबर ही हैं।

Thursday, April 1, 2010

गायत्री महामंत्र की उपासना सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोपरि ही नहीं यह मनुष्य जीवन को बहिरंग एवं अंतरंग दोनो ही नज़रिए से समृध्द और उन्नत बनाने का राजमार्ग हैं।