Friday, December 31, 2010

प्रभु भक्ति में आत्मसमर्पण के अतिरिक्त और कुछ भी शेष नहीं है। यदि ईश्वर से कुछ माँगने की इच्छा रख के प्रार्थना की जाती हैं तो वह ईश्वर प्रेम नहीं पाखंड ही कहलाता हैं। भक्ति में कुछ लेने की इच्छा नहीं रह जाती बल्कि सभी कुछ भगवान पर न्यौछावर करने की अभिलाषा होती हैं। यही सच्चा प्रभु प्रेम हैं।

Thursday, December 30, 2010

"सादा जीवन उच्च विचार" ही जीवन का सिध्दांत होना चाहिए। जीवन में समय प्रबंधन नितांत आवश्यक हैं, समय बहुत ही कीमती हैं इसका एक भी क्षण व्यर्थ न गवाएँ।
समय के साथ ही पैसे की एक पाई भी व्यर्थ न जाए इस बात का ख़्याल रखें क्योंकि पैसे की बरबादी यानि श्रम की बरबादी और पैसे की बरबादी अंत में सभी विपत्तियों को दावत देती है।
इसके साथ-साथ इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी बहुत ही जरूरी हैं, जब आवश्यकता हो तभी खाएँ, मनुष्य इस प्रवृति का जानवर हैं कि भूख न होने पर भी उसे जीभ के चटोरेपन के कारण कुछ न कुछ खाने की आदत हैं। अनावश्यक आकर्षण एवं कामुकता से भी स्वयं को बचा कर रखें।

Wednesday, December 29, 2010

आध्यात्म का सच्चा अर्थ हैं अपने भीतर के ईश्वर को जाग्रत और जीवंत बनाना और जो तभी संभव हैं जब अंर्तमुखी बन अपने मन में ईश्वर ने जो भी देवत्व गुण दिए हैं उन्हें विकसित करना और जो असुरी प्रवृतियाँ हैं उनके संहार के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए।

Tuesday, December 28, 2010

यह नितांत आवश्यक हैं कि मन में जो भी विचार उठे वह इस स्तर के हो कि आपको प्रेरित करें बजाय इसके कि आपको गर्त में धकेल दें इसी लिए सदा सद्‌विचार ही रखें और सदैव सबका भला करें यदि भूल से भी किसी के प्रति राग-द्वेश का भाव जागे तो उसे त्याग कर ईश्वर में मन लगाए एवं स्रष्टा के बनाए इस संसार की प्रंशसा कीजिए।

Monday, December 27, 2010

हम मनुष्य पशु-पक्षियों को देख बहुत कुछ सीख सकते हैं, पशु-पक्षी इतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं जिसमें वह स्वयं समा सके एवं उतना ही दाना चुगते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता हैं, वह इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि स्रष्टा के साम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं, जब जिसकी जितनी जरूरत हैं आसानी से मिल जाता है,तो फिर संग्रह क्यों किया जाए? इसी प्रकार यदि हम भी उतना ही लें जिसकी आवश्यकता हैं और संग्रह की मनोवृति त्याग दें तो हम भी सुखी होगें और बाकी सब भी। अनावश्यक कलह की स्थिति अनावश्क संग्रह के कारण ही पनपती हैं इस बात को सदा ध्यान में रखें।

Friday, December 24, 2010

आँखे भगवान की सबसे बड़ी नियामत हैं। आँखो के होने के कारण ही हम इस परमपिता की उत्कृष्ट कृतियों को देख सकते हैं। परन्तु जो व्यक्ति आँखे होने पर भी अदूरदर्शी हैं यानि जीवन जैसे अमूल्य हीरे को काँच समझ कर जी रहा हैं और भविष्य के उज्ज्वल सपने देख उनका निर्माण नहीं कर सकता वह परमात्मा की दी हुई इस अमूल्य निधि को गवाँ रहा हैं।

Thursday, December 23, 2010

मनुष्य इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड का अल्प स्वरूप है। परमात्मा का अंश है, परन्तु इस बात से कितना अनभिज्ञ हैं। अपनी ही मृग मरीचिका में जीवन जी रहा है, पेट और प्रजनन के आगे उसे कुछ नहीं सूझता, वह जीवन की सबसे बड़ी जरूरत ईश्वर को ही भुला बैठा जिसने उसे जीवन जीने की सभी नियामतें प्रदान की। मनुष्य ने अपनी एक ऐसी दुनिया बना ली जिसमें ईश्वर का कोई स्थान नहीं और पैसा ही सब कुछ है, पर मनुष्य को यह बात समझनी ही होगी की ईश्वर प्रेम और भक्ति से बड़ा जीवन में और कुछ भी नहीं है।

Wednesday, December 22, 2010

ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, याचना नहीं। भगवान से जीवन के हर संघर्ष से लड़ने की शक्ति माँगिए, जब भी किसी दुविधा में हो तो ईश्वर से मदद लीजिए क्योंकि वह तो परमपिता हैं और हम उनकी संतान परन्तु याचक मत बनिए, यदि कुछ माँगना ही हैं तो आत्मबल की कामना कीजिए, इसी आत्मबल के सहारे और ईश्वर में सच्ची आस्था रख आप जीवन की किसी भी परीक्षा से जूझ सकते हैं।

Tuesday, December 21, 2010

दान पुण्य का सौदा हैं, घाटे का नहीं, यदि किसी दीन-दुखी को हमारी सेवा-सश्रुणा से लाभ पहुँचता है तो उसकी दुआओं का असर कई गुणा होकर हम तक पहुँचता हैं। ईश्वर से तो कुछ भी छिपा नहीं हैं,वह सब देखते हैं और दीन-दुखियों की सहायता करने वालो को अपने ढंग से पुरस्कारित भी करते हैं।

Monday, December 20, 2010

जो काम अभी हो सकता हैं, उसे घंटे भर बाद करने की मनोवृति आलस्य की निशानी है।एक-एक कार्य हाथ में ले निपटाते जाए जिससे समय भी सुचारू रूप से बीत जाए और काम भी समय पर हो जाए। अतः ध्यान रखें कि जो कार्य अभी हो सकता है, उसे कल पर न छोड़े और तत्काल करें।

Saturday, December 18, 2010

ईश्वर को सबसे प्रिय हैं दुःख और इसे संभाल कर रखने के लिए वह देते हैं केवल अपने सबसे प्रिय भक्तों को क्योंकि ज्यादातर लोग कष्ट को मजबूरी की तरह सहते हैं। कुछ ही भक्त हैं जो यह जानते हैं कि दुख हमारी आत्मा को पवित्र करने की प्रक्रिया हैं एवं नितांत आवश्यक हैं। जिस प्रकार सोने को आग में तपना जरूरी है, उसी प्रकार दुख ईश्वर की धरोहर हैं और वह इसलिए मिलते हैं ताकि दुख मिलने के बाद भी यदि भक्त के आनंद, उल्लास और उत्साह में कभी कोई कमी न आए तो वही सच्चा भक्त हैं।

Thursday, December 16, 2010

"करमण्येवाधिकारस्ते" अर्थात भागवतगीता में कहा गया हैं कि कर्म पर अपना अधिकार है,फल पर नही। इस बात को जो समझ गया वह व्यक्ति जीवन में कभी निराश या उदास नहीं होता और असफलता मिलने पर भी अपनी हिम्मत टूटने नहीं देता, वह तो सदा ही बढता रहता हैं और अंततः सफलता उसे ही प्राप्त होती हैं।

Wednesday, December 15, 2010

विद्‌वान ऋषि कहते है- "तद्‌विज्ञाने न परिप यन्ति धीरा आनंद रूपमर्भृतम्‌।" अर्थात ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अंतःकरण में विराजमान उस आनंदरूपी ब्रहं का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों से भी परम-ज्ञानी हो जाते हैं। यानि सम्पूर्ण ब्रहांड का ज्ञान परमात्मा के रूप में हमारे भीतर हैं, केवल खोजने की आवश्यकता हैं।

Tuesday, December 14, 2010

परमात्मा’ शब्द में ही जीवन का सत्य छिपा हैं, जिसने ईश्वर को नहीं समझा उसने जीवन से कुछ नहीं सीखा, जो व्यक्ति यह महसूस करता हैं कि हर पल हर क्षण वह ईश्वर को ही स्मरण करता हैं, उसकी कोई भी खुशी प्रभु बिन अधूरी है, उसे जिसे जीवन का कोई सुख परमात्मा के नाम से जुदा नहीं कर सकता और जो हरेक प्राणी में उस परम तत्व को ही ढूढ़ता हैं वही ईश्वर को समझ सकने का दम भर सकता हैं, केवल आडम्बर और दिखावा कर प्रभू को पाना असंभव हैं। भगवान भक्त का प्रेम देखते हैं, उसके पूजा-अर्चना का तरीका चाहे जैसा हो,चाहे साधनों का आभाव ही क्यों न हो, भगवान चढावे के रूप में भक्त के आँखो से बहे प्रेम भरे अश्रुओं को भी ग्रहण करते हैं।

Monday, December 13, 2010

जो मनुष्य जीवन की कठिनाइयों से डर कर पलायन का मार्ग अपनाए वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं हैं, परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही इतना सर्मथ दिया हैं कि वह हर परिस्थिति से जूझ सके और यह ही प्रकृति का नियम भी हैं कि जो गलता हैं वही उगता हैं। प्रसव पीड़ा के बाद ही संतान सुख की प्राप्ति होती हैं, कच्चे मिट्टी के बर्तन पानी की एक बूंद भी सहन नहीं कर पाते परन्तु जो बर्तन आग की तपिश में पक कर तैयार किए जाते हैं उनकी उपयोगिता और शोभा और स्थिरता बनी रहती हैं।पूर्ण मनुष्य बनने के लिए जीवन रूपी भट्टी में तपना ही होगा, और ईश्वर को भी स्मपूर्ण मनुष्य स्वीकारणीय हैं।

Friday, December 10, 2010

"Silence is Golden". Sometimes what words can't say silence can. Silence is the sound of God, listen carefully what He wants to say in Silence.Sometimes Silence can calm you much better than soothing music.Silence can nurture relations which words sometimes cannot.Silent prayers are always answered by God.In essence Silence is not only golden it's magical.

Thursday, December 9, 2010

यदि मनुष्य स्वयं को सुधारना चाहे तो लोक से लेकर परलोक तक सुधार का मौका होता हैं पर जरूरत है पहल करने की, यदि मनुष्य एक कदम ईश्वर की ओर बढाता है तो ईश्वर हज़ारो हाथो से उसका स्वागत करते हैं। यह बात हमें सर्वदा स्मरण रहनी चाहिए कि आध्यात्म का लक्ष्य केवल आत्मकल्याण एवं मोक्ष प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि स्वयं सत्‌मार्ग पर चल औरों को भी प्रेरित करना हैं।

Wednesday, December 8, 2010

बच्चे अपने माता-पिता को उनके हाल पर छोड़ सकते हैं परन्तु माँ-बाप ऐसा कभी नहीं कर सकते, उन्हें तो हर हाल में अपने बच्चों की ही चिन्ता सताती हैं। बच्चे स्वार्थी हो अपनी अलग दुनिया बसा सकते हैं पर माता-पिता के लिए तो उनकी दुनिया उनके बच्चे ही होते हैं। इसी तरह हम सभी परमपिता की संतान हैं और ईश्वर हमें सदैव स्मरण रखते हैं।

Tuesday, December 7, 2010

जीवन में यदि कभी मन बहुत घबरा जाए और गल्त विचारो से उद्विघ्न हो जाए तो बजाय इधर-उधर भागने के ईश्वर में मन लगाओ आप देखेगें मन न केवल शांत हो जाएगा और उसमें प्रभु भक्ति द्वारा उत्पन्न विचारो से हमें प्रेरणा भी मिलेगी। यानि प्रभु नाम एक कवच हैं जो हमें जीवन के उतार-चढाव से सुरक्षित रखता हैं।

Monday, December 6, 2010

जीवन में कितनी ही असफलताएँ क्यों न आएँ परन्तु एक न एक मार्ग ऐसा अवश्य होता है जहाँ रोशनी की नन्हीं किरण टिमटिमाती रहती हैं और वह रास्ता हैं प्रभु में आस्था का परन्तु इसका भावार्थ यह नहीं कि जब जीवन में मुश्किल आए तभी ईश्वर को याद करें यहाँ कबीर का दोहा बहुत ही सटीक हैं कि दुख में सिमरन सब करे सुख में करे न कोई, जो सुख में सिमरन करे तो दुख काए को होए॥

Friday, December 3, 2010

God please make my life so meaningful that it is only meant for others as I have realized that you have given me this life so as I make other's life worth living and can help others.

Thursday, December 2, 2010

पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, नदियाँ एवं जलाश्य अपना पानी स्वयं नहीं पीते, सूर्य-चन्द्रमा अपने प्रकाश और शीतलता से औरों को सनिग्ध करते हैं उसी प्रकार मनुष्य का जन्म भी इस धरती पर परोपकार के लिए हुआ है। भगवान जब मनुष्य के कर्मो का लेखा-जोखा करता हैं तब इसी बात का आकलन किया जाता हैं कि मनुष्य ने अपने जीवन का कितना भाग परोपकार में बिताया हैं, यदि मनुष्य ने सौ झूठ बोलकर भी किसी की भलाई की हो तो वह परमपिता के अनुसार क्षमाशील हैं। जितना संभव हो अपना जीवन परोपकार में लगाएँ क्योंकि अपने लिए तो पशु भी जीते है, इंसान वही हैं जो औरों के लिए जिए।

Wednesday, December 1, 2010

प्रभु नाम एक अनुपम निधि हैं, जो कि खर्चने से और बढ़ती है, खर्चने का मतलब इससे हैं कि हम जितना ही प्रभु नाम लेगें और उसका प्रचार करेंगे वो चौगुना होकर हमें प्राप्त होगा और जीवन के सबसे बड़े सत्य से हमें अवगत करवा देगा कि ईश्वर ही हमारे सबसे बड़े सम्बन्धी हैं और अंनत तक केवल उनके ही साथ हमारा सम्बन्ध बना रहेगा बाकी सभी दुनियावी रिश्ते इसी दुनिया में समाप्त हो जाएँगे।

Tuesday, November 30, 2010

कुछ लोग जीवन में सदा रोते ही रहते हैं या भगवान को दोष देते रहते हैं कि भगवान ने उन्हें यह नहीं दिया, वह नहीं दिया, परन्तु इस दोषारोपण से पहले वह भूल जाते हैं कि परमपिता ने सभी को समान सामर्थ और समान इन्द्रियाँ दी हैं, शरीर के सभी अंग जो ईश्वर ने हमें दिए हैं वह अमूल्य हैं और सबसे बड़ी शक्ति जो परमात्मा ने हमें दी हैं वह हैं प्रार्थना करने की अमूल्य निधि जिसकी तुलना सारे जग की सम्पति से भी नहीं की जा सकती। मन को ईश्वर प्रेम और भक्ति में लगाए रखना ही मानव की अतुलनीय संपदा हैं।

Monday, November 29, 2010

ईश्वर आपकी असीम अनुकम्पा हैं कि आपसे हमें यह जीवन मिला, इस सम्पूर्ण संसार की वस्तुओं से बेश्कीमती आपकी भक्ति आपने हमें प्रदान की, एक विनती हैं आपसे कि एक भी साँस ऐसी न हो जो आपको बिसरा कर आए, यदि आए तो प्राण लेकर आपका सुमिरन दे जाए।

Wednesday, November 24, 2010

Today I'm very thankful to you God for all the loving relationships you have given me in this world, My Parents, Siblings, Children, Friends and all others who make my life so meaningful and worthy to live it to the fullest.

Tuesday, November 23, 2010

मनुष्य के जीवन पर सर्वप्रथम अधिकार ईश्वर का होता है, दिव्‌तिय उस मातृभूमि का जिसमें मनुष्य ने जन्म लिया, तीसरा माता-पिता का जिनकी वजह से यह संसार दिखा और अंतिम स्वयं मनुष्य का खुद पर।

जिस परमपिता ने जीवन जैसा अमूल्य उपहार प्रदान किया वह हर क्षण वंदनीय हैं।

मातृभूमि जिसमें हमारे पोषण के लिए अन्न उपजा उसका उपकार हम कभी नहीं उतार सकते।

माता-पिता जो कुछ भी संतान के लिए करते हैं वह अतुलनीय हैं, उसकी एकमात्र तुलना हैं ईश्वर प्रेम, जिस प्रकार ईश्वर कोई भेदभाव नहीं करते और अपनी सभी संतानो से समभाव से प्रेम करते है, उसी प्रकार माता-पिता अपना दुलार हम पर लुटाते हैं।

अंतिम हक मनुष्य का स्वयं के जीवन पर हैं।

Monday, November 22, 2010

Today I'm very thankful to you God that you have given me so much, I couldn't have asked for more.I wish that I'm always so dear to you that you accept all my prayers and let me remember You all the time.

Friday, November 19, 2010

भगवान हर जगह जगह हैं परन्तु वह हमें दिखाई नहीं देते, हर कण में व्याप्त हैं परन्तु उनके होने का अहसास हम इस बात से लगा सकते हैं कि हर घर में ईश्वर ने अपने प्रतिनिधि माता-पिता हर किसी को दिए हैं, बहुत खुशकिस्मत हैं वो बच्चे जिन्हें उनके माता-पिता का प्रेम और दुलार मिला हैं, दुनिया का हर रिश्ता इस प्रेम के आगे फीका हैं क्योंकि जिस तरह माता-पिता हमसे अनन्त प्रेम करते हैं परमपिता भी अपनी हर कृति से स्नेह रखते हैं और अपनी हर संतान की कामना पूरी करते हैं बशर्ते उस मनुष्य ने अपनी कामना के अनुसार कर्म किए हैं।
किसी ने सच ही कहा है कि भगवान होते हुए भी हमसे अनभिज्ञ हैं और पृथ्वी पर माता-पिता ही उस विधाता की पहचान हैं।" हे परमात्मा मैं आपको आपकी सर्वोतम कृति माता-पिता को रचने के लिए शत्‌-शत्‌ प्रणाम एवं धन्यवाद करती हूँ।"

Thursday, November 18, 2010

जीवन लम्बा नहीं ईश्वर प्रेम से ओत-प्रोत होना चाहिए, जो तभी संभव हैं जब मनुष्य धरती की हरेक वस्तु में केवल परमानन्द को ही देखें, क्योंकि हर जगह सृष्टि के कण-कण में परमपिता का ही रूप ही तो व्याप्त हैं, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, आकाश, वन-उद्यान, पशु-पक्षी सभी कुछ प्रभु ने ही तो रचा हैं और ईश्वर की महानतम रचना हैं मानव जिसको भगवान ने विवेक दिया हैं, मानव शरीर और बुद्‌धि को इतना प्रखर बनाया हैं कि खुद मनुष्य भी यदि चाहे तो देवता बन सकता हैं।

Wednesday, November 17, 2010

अंधकार विशाल होता हैं,वह शक्तिवान एवं भयावह होता हैं, यह तो नींद को धन्यवाद हैं कि वह हमें विस्मृति में धकेल देती है, नहीं तो रात की यह अवधि पर्वत के समान भारी लगे। परंतु इस विशालमय रात को एक नन्हा सा दीपक चुनौती दे यह कहता हैं कि दिन का उजाला अब ज्यादा दूर नहीं। इसी प्रकार मनुष्य जीवन अंधकारमय और भयावह चुनौतियों से भरपूर हैं और ईश्वर में आस्था वह नन्हा दीपक जो हमें संदेश देता हैं कि उज्ज्वल सुनहरी सुबह नज़दीक ही हैं।

Tuesday, November 16, 2010

भगवान को पाना हैं तो निरंतर प्रयास करना होगा, मन को इस तरह से सिखाना होगा कि भगवान का ध्यान छोड़ मन कहीं और न रमे क्योंकि जिस संसार में हम रहते हैं और उसको सच समझ लेते हैं वह तो ईश्वर की रची माया के अलावा कुछ भी नहीं, इस दुनिया में परमपिता से ज्यादा कोई हमारा सगा नहीं, यह बात हम जिस दिन महसूस करने लगेगें उसी क्षण हमारे सर्वत्र कष्ट मिट जाएँगे और अपना जीवन हमें वरदान स्वरूप लगने लगेगा।

Monday, November 15, 2010

जीवन की शुरूआत रोते हुए भले हो पर जीवन का अंत हमेशा हँसते हुए करें,क्योंकि हम जब दुनिया में आते हैं तो नादान छोटे बच्चे होतें हैं परन्तु दुनिया से जाते हैं परिपक्व एवं समझदार हो कर, जीवन के सभी अनुभव लेकर, ईश्वर की अराधना हमें न सिर्फ महामानव बल्कि देवत्व तक ले जाती हैं और हर मानव के जीवन का यही तो गहन मर्म हैं।

Friday, November 12, 2010

जिस तरह जीवन भगवान का वरदान हैं उसी तरह मृत्यु ईश्वर का निमंत्रण हैं और भगवान के पास जाने से केवल वह लोग डरते हैं जो पापी और अधर्मी हैं क्योंकि उन्हे दण्ड से भय लगता हैं परन्तु भगवान के सच्चे भक्त सर्वदा मृत्यु के लिए तैयार रहते हैं।

Thursday, November 11, 2010

आकाश से ऊँचा कुछ हैं क्या, हाँ मनुष्य की अच्छाई।
जल से पतला कुछ हैं क्या, जी मनुष्य का ज्ञान।
भूमि से भारी कुछ हैं क्या, मनुष्य का पाप।
काजल से काला कुछ हैं क्या, मनुष्य का कंलक।
अग्न से तेज़ क्या है भला, मनुष्य का अंहकार।

Wednesday, November 10, 2010

जिदंगी और मौत दोनो परमात्मा के हाथ हैं,न जाने कब जीवन की डोर खिंच जाए इसीलिए जो अनमोल जीवन परमपिता का महान अनुदान हैं उसका एक भी क्षण व्यर्थ न गवाएँ, हर पल यह ही चेष्टा करें कि आप समाज के प्रति कुछ योगदान अवश्य करें। चाहे वह गरीब अनाथ की सेवा हो या भूखे को अन्नदान,जितना हो सके अपने स्तर पर ज़रूर करें।

Tuesday, November 9, 2010

यदि परमात्मा पर विश्वास हो तो सभी कुछ कितना सरल हो जाता हैं यह तो एक आस्तिक ही बता सकता हैं, जीवन में कोई शंका शेष नहीं रह जाती, आस्तिक का योगक्षेम वहन स्वयं ईश्वर ही करते हैं, भक्त की हर व्यथा उसकी अपनी न रह कर समाप्त हो जाती हैं। ईश्वर से प्रेम हो जाने पर स्वतः ही सारी दुनिया आपको अपनी सी लगने लगती हैं और सच ही तो हैं इस सम्पूर्ण विश्व का रचयिता परमात्मा ही तो आपके सबसे अपने हैं, उनके सिवा कोई भी नहीं जो सर्वदा आपके साथ हैं।

Monday, November 8, 2010

आपको जब कभी ऐसा लगे कि आपको किसी ने आवाज़ दी हैं परन्तु यह पता न चले कि किसने पुकारा हैं तो निश्चित रूप से समझ लीजिए कि यह अपनी ही अंतरात्मा की पुकार है जो मनुष्य को सचेत कर रही हैं कि यह बहूमूल्य जीवन धीरे-धीरे हाथ से निकलता जा रहा हैं और यदि ऐसा ही चलता रहा तो परमपिता का यह अमूल्य अनुदान व्यर्थ न चला जाए।

Friday, November 5, 2010

By the grace of God we have Festivals to celebrate which gives us utmost faith that God is present everywhere and anywhere. So do all your karmas which put you to the right path of spirituality and do not hurt others as all the festivals give only one message that Goodness prevails. So be the true child of God and be good to others.

Thursday, November 4, 2010

जीवन के अच्छे कर्म ही मनुष्य को देवता बना देते हैं,अपने समर्थ के अनुसार सबकी सहायता करने की कोशिश करें,चाहे वह सहायता किसी एक व्यक्ति तक ही सीमित क्यों न हो, क्योंकि हर एक मनुष्य उस विराट जगत विधाता का अंश ही तो हैं, इसलिए जो सेवा आप किसी के लिए करते हैं वह परमात्मा तक ही पहुँचती हैं।सबकी सेवा करें यही परमार्थ हैं।

Wednesday, November 3, 2010

Have you ever felt all alone in this big wide world?
Have you ever felt there is nobody to help you throughout the way?
Have you ever felt that smile dosen't reach your face often no matter how festive it is?
Have you ever felt that there is no shoulder upon which you may cry?

If Yes

Then Surrender Yourself to the Almighty and you'll never feel alone in this world,and all your worries are His but mind you "Prayer is not a spare Wheel that you pull out when in trouble but It is the steering wheel that guides you to the right direction throughout."

Tuesday, November 2, 2010

यह जीवन यदि व्यर्थ चला गया तो फिर पीछे पछताने के अलावा कोई चारा न रह जाएगा क्योंकि एक बार हाथ से निकल गया तो न जाने फिर कितनी योनियाँ भुगतने के बाद ही यह बहूमूल्य मानव जीवन प्राप्त होगा इसीलिए समय रहते ही सचेत हो जाने में समझदारी हैं, देर करने से नुकसान केवल हमारा हैं। अपने इस बेशकीमती जीवन को अर्थपूर्ण बनाएँ, मानवता की सेवा करें।

Monday, November 1, 2010

भगवान ने यह अमूल्य मानव जीवन इसीलिए प्रदान किया हैं कि इसको वाकई अमूल्य बनाया जाए, व्यर्थ की बातों में समय न गवाँ कर हमेशा इस तरह अपना समय व्यवस्थित करें कि प्रभु नाम के साथ-साथ दूसरों का भला करने का भी पूरा मौका मिल सके और मानव जीवन जो बहुत मुश्किलों के बाद हमें मिला हैं वो कहीं व्यर्थ न चला जाए और परमपिता की ओर हमारा कर्तव्य कहीं अधूरा न रह जाए।

Friday, October 29, 2010

भगवान के वरिष्ठ राजकुमार होने के नाते विश्व की समस्त वस्तुओं पर आपका समान अधिकार हैं, पहाड़ आपके, नदियाँ आपकी, वन-उद्यान अपने, बशर्ते कि आप संग्रह न करें,जितना आवश्यकता हो उतना ले लें और बाकी दूसरों के उपयोग के लिए छोड़ दें क्योंकि मिल-बाँट कर खाने की नीति ही सुखकर हैं और सबको सुख देना ही तो परमात्मा चाहते हैं, क्योंकि वह परमपिता हैं और अपनी संतान का सदैव सुख ही चाहते हैं।

Thursday, October 28, 2010

इस सरस्वती की प्रतिनिधि जिह्वा से सात्विक अस्वाद भोजन और मधुर हितकारी वचन बोलने की साधना करनी चाहिए तभी तो हम सचमुच में माँ का वरदान सही अर्थों में पा सकेगें क्योंकि जिस प्रकार अन्य देवी-देवताओ से प्रार्थना करते हैं और वरदान प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारी जबान को भी बिना नमक और चीनी का भोजन और मधुर वचन बोलने की साधना भी करनी चाहिए।

Tuesday, October 26, 2010

सौभाग्यवती होने का सुख जीवन में हर लड़की को मिले यही दुआ है मेरी ईश्वर से, बना रहे सब सुहागनो का सुहाग और मनायें सब करवाचौथ का वर्त खुशी-खुशी अपने पति के साथ।

Monday, October 25, 2010

जीवन ईश्वर की अमूल्य देन हैं इसे दूसरों की भलाई,बुराई में न बिताएँ।सबकी अच्छाई ही देखें और जिस प्रकार अपनी बुराईयाँ नज़र अंदास करते हैं उसी तरह हर व्यक्ति को उसकी बुराईयों एवं कमियो के साथ ही अपनाएँ। सम्पूर्ण ब्रह्माड स्वयं ईश्वर और उनका स्वरूप ही तो हैं, जरूरत हैं उनके हर रूप को अपनाने की जो तभी संभव हैं जब आप सिर्फ हर मनुष्य को अपने ही समान परमात्मा का वरिष्ठ राजकुमार ही मानें।

Friday, October 22, 2010

विद्वानों ने कहा है कि आध्यत्मिकता का दूसरा नाम प्रसन्नता हैं, जो प्रफुल्लता से जितना दूर हैं वह ईश्वर से भी उतना ही दूर हैं। वह न तो आत्मा को जानता हैं न ही परमात्मा की सत्ता को। सदैव झल्लाने, खीझने वाले और उदासीन रहने वाले व्यक्तियों को ऋषियों ने नास्तिक ही बताया हैं। जो सदा हँसता-मुस्कुराता हैं वह ईश्वर का ही प्रकाश सब ओर फैलाता हैं। रोना एक अभिशाप हैं और हँसना एक ऐसा वरदान हैं जो जीवन के वर्तमान को तो सँवारता ही हैं,परन्तु भविष्य को भी उज्ज्वल बनाता हैं। भगवान ने जो कुछ भी बनाया और उपजाया हैं वह सभी को खुश रखने के लिए बनाया गया हैं, जो कुछ बुरा और अशुभ हैं वह मनुष्य को प्रखर बनाने के लिए रचा गया हैं ताकि मनुष्य जीवन के संर्घषो से सबक ले सके और अपने अनुभवों से दूसरों को भी सीख दे सके। इसलिए सदा हँसते रहे और दूसरों को हँसाते रहें यही सच्चा आध्यात्म हैं।

Thursday, October 21, 2010

दुनिया में दो ही तरह के लोग सुखी रह सकते है एक जो है मूढ़तम या दूसरे बहुत ही प्रखर बुद्धि वाले। मूढ़तम वह जो पेट-प्रजनन के ऊपर कुछ सोच ही नहीं सकते और प्रखर बु्द्धि वह जो विचार संपदा के आधार पर मिलने वाली रिद्धि-सिद्धियो को पाकर समाज एवं देश के
मार्गदर्शक बनते हैं। ऐसे ही व्यक्ति सबका श्रेय-सम्मान पाते हैं और हर किसी को परांगत बुद्धि प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए।

Wednesday, October 20, 2010


आपकी बहुत कृपा है भगवान कि अपने ही रूप में आपने हमें हमारे पिता प्रदान किए जिन्होने जीवन में सदा हमे सही मार्ग पर ही चलना बताया,एक गुरू बन जिन्होने हमें आपसे(परमात्मा) जोड़ दिया और हमारे जीवन को दिया एक सच्चा अर्थ जो हैं केवल ईश्वर से जुड़ कर उनके सम ही बन जाना।
जिस प्रकार महापुरूषों का जन्मदिवस किसी विषेश दिन होता हैं उसी प्रकार भगवान ने आपको इस समर्थ बनाया हैं कि आपका जन्मदिन भी किसी दिन विषेश(दिवाली, दशहरा) पर होता हैं जो कि ईश्वर का हम सभी को संकेत हैं कि आप इस जग में एक महान आत्मा(संत) हैं। हमारा जीवन सौभाग्यशाली हैं कि आपसे जुड़ा हैं एवं इसके लिए हम परमात्मा को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
आपको कुछ भेंट दे इस कामना से ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि आपके जीवन का हर क्षण ईश्वर के सान्निध में बीते एवं आपके महान कार्यों से हम सदा हम प्रेरणा ले।

Tuesday, October 19, 2010

All the other dad's give gifts to their children on festivals and occassions but mine gives us the most precious gift of knowledge and wisdom everyday. His sharing time with us are the most cherished moments for us. May God bless him and blesses us that we are his children for every human birth we get .

Friday, October 15, 2010

स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। ईश्वर ने यह संसार असीम बनाया हैं कोई भी समग्र रूप से इसकी सेवा कर सके ऐसा लगभग असंभव ही हैं क्योंकि कई तरह की बाधाएँ जैसे समय की कमी, योग्यता की कमी, साधनो की कमी, कभी भाषा अलग होने के कारण समस्त संसार की सेवा संभव नहीं। अतः अपने संपर्क और प्रभाव क्षेत्र में ही कुछ करते-धरते बन पड़ सकता हैं। यदि सीमित स्तर में भी यह करा जाए तो समाज का बहुत सुधार हो सकता है। इसकी न्यूनतम परिधि स्वयं की सुधारसेवा तक भी सीमित हो सकती हैं।

Thursday, October 14, 2010

कटुवचन बिच्छु के दंश के समान ही जहरीले एवं कष्टदायक होते हैं, यदि कटुवचन बोलने वाला निर्दोष ही क्यों न हो परन्तु सभी उसे ही दोषी ठहराते है और कोई उससे सहानुभूति नहीं रखता इसीलिए किसी को भी कटुवचन बोलने से परहेज़ करें और जीवन में किसी का भी दिल दुखाने से पहले सौ बार सोचें क्योंकि जिस प्रकार निकला हुआ तीर कमान में वापिस नहीं आ सकता उसी प्रकार कही हुई दुखदायी बात से आप पीछे नहीं हट सकते।

Tuesday, October 12, 2010

जीवन में सभी को सभी कुछ नहीं मिलता इसलिए दूसरों की निन्दा की परवाह किए बिना ही अपने पथ पर निरंतर चलते रहें। जीभ हरेक की अपनी है और उसे किसी को कुछ भी कहने की छूट हैं अतः अच्छा यही होगा कि उथले लोगों द्वारा कहे गए भले-बुरे पर ध्यान न दिया जाए। चाहे कोई हिमालय के समान महान ही क्यों न हो परन्तु उअस पर भी सिर ऊचाँ उठा के रहने एवं घमंडी होने का दोष लगेगा, समुद्र के सामान विशाल क्यों न हो,पर उसे भी खारा होने का कलंक झेलना ही पड़ेगा। जिस प्रकार काला चश्मा पहनने वाले को सब ओर काला ही नज़र आता हैं उसी प्रकार हर मनुष्य दूसरे को अपने ही तराजू में तोलता हैं और बुरा देखने वाले को कभी भला नज़र ही नहीं आ सकता।

Monday, October 11, 2010

माँ की बहुत कृपा हैं कि नवरात्र के दिन है आए जिसमें कि सारा वातावरण हो गया हैं भक्तिमय और सुगंधित एवं घुल गया है हर तरफ प्रेम और संगीत जिससे हो गया है पवित्र जीवन और घर आगंन। हे माँ रहती दुनिया तलक यह शुभ दिन सभी के जीवन को महकाते रहें।
माँ की बहुत कृपा हैं कि नवरात्र के दिन है आए जिसमें कि सारा वातावरण हो गया हैं भक्तिमय और सुगंधित एवं घुल गया है हर तरफ प्रेम और संगीत जिससे हो गया है पवित्र जीवन और घर आगंन। हे माँ रहती दुनिया तलक यह शुभ दिन सभी के जीवन को महकाते रहें।
माँ की बहुत कृपा हैं कि नवरात्र के दिन है आए जिसमें कि सारा वातावरण हो गया हैं भक्तिमय और घुल गया है हर तरफ प्रेम और संगीत जिससे हो गया है पवित्र जीवन और घर आगंन। हे माँ रहती दुनिया तलक यह शुभ दिन सभी के जीवन को महकाते रहें।

Friday, October 8, 2010

जीवन में जो भी काम करें वह ईश्वर की साधना समझ कर कीजिए, यदि स्नान करें तो लगे कि ईश्वर का अभिषेक कर रहें हैं, यदि राह में किसी व्यक्ति से बात करें तो उसे ईश्वर की असीम परमसत्ता का अंश समझ उस पर अपने पुष्प रूपी बातें एवं मुस्कान बिखेर कर उसका अभिनंदन परमात्मा के समान करें, यदि शयन करना हो तो इस प्रकार के भाव से करें कि हे! ईश्वर आपका हर काम मैं पूर्णता से कर पाऊँ इसीलिए मुझे इस निद्रा की परम आवश्यकता हैं। अर्थात जीवन का हर कर्म साधना से जुड़ा हो और जीवन प्रभू की आरधना बन जाए तथा ईश्वरमय हो जाए।

Thursday, October 7, 2010

यदि ईश्वर की कृपा न होती तो आप इस अमूल्य मानव जीवन को न पा सकते
जीवन में जो कुछ मिला हैं,जैसा मिला हैं उसे ईश्वर की परम कृपा समझ स्वीकार करें और हर पल परम पिता को उनकी दयालुता के लिए धन्यवाद करें, आदर्शवादी जीवन का यही तो मर्म हैं। इस पथ पर चलते रहने से न केवल आप ईश्वर की परम कृपा के अधिकारी होगें,मोक्ष को भी प्राप्त होगें।

Wednesday, October 6, 2010

यदि परमात्मा पर सच्चा एवं अटूट विश्वास हो तो जीवन में सुख आए या दुख सभी एक चलचित्र की भांति लगता हैं क्योंकि जो भी हम पर बीत रहा हैं वह हमारे स्वयं के संचित कर्मो का ही तो फल है।
अतः विचलित हुए बिना अपनी आस्था ईश्वर में लगाए रखें और जो घटित हो रहा हैं उसे होने दें यही प्रभु की रज़ा हैं सोच खुले दिल और शांत मस्तिष्क से हर नयी सुबह का स्वागत करें।

Tuesday, October 5, 2010

मानव शरीर की तरह ही मानव मस्तिष्क भी भगवान ने अद्‌भुत घड़ा है जिसे जैसा चाहो सिखा लो, जैसे विचार चाहे रख लो, जरूरत हैं उसे इस प्रकार सिखाने की कि केवल अच्छे विचार ही उसमें ओत-प्रोत हों और बुरे विचार स्वयं ही लुप्त हो जाएँ जो तभी मुमकिन हैं यदि विचारो में केवल ईश्वरीय शक्ति का ही निवास हो।

Monday, October 4, 2010

Live life to the fullest,make it meaningful by chanting Hare Rama Hare Krishna every second of your life and see the power of positive energy within you .

Friday, October 1, 2010

Live your life like a Sage in this world as it is easier to meditate upon God when one is alone in the forest but difficult if one is in the illusion of this world,so practice your mind this way that it only chants and remembers "The Almighty" all the time.

Thursday, September 30, 2010

We keep complaining that we do not have this,we do not have that but have we ever thought that how blessed are we Humans to get a human birth which not only gives us a chance to pray but also to be a part of "The Almighty Himself". Isn't that everything????

Wednesday, September 29, 2010

प्रकृति का सूक्ष्म शरीर अदृश्य हैं। ध्वनि, प्रकाश, चुबंक की किरणें जब किसी के सम्पर्क में आते है तभी अपना बोध कराते हैं। उसी प्रकार अत्यत्न शक्तिशाली लेसर किरणें भी अदृश्य हैं। इसी तरह मनुष्य पशु वर्ग का एक प्राणी हैं, यदि स्थूल रूप से देखा जाए तो मनुष्य एक हाड़-माँस का पुतला ही तो हैं परन्तु उसकी सूक्ष्म क्षमता का कोई ओर-छोर नहीं है। अपनी सूक्ष्मता का ज्ञान होते ही मनुष्य में देवत्व का प्रवेश हो जाता है और उसका सामर्थ्य स्वयं परमात्मा के समतुल्य हो जाता हैं।

Tuesday, September 28, 2010

See the magic of God the sun never fails to rise,
See the magic of God the birds never fail to sing,
See the magic of God the water never fails to fall,
See the magic of God the trees never fail to give shade,
Then how can humans the most precious creation and magic of God
fail to take His name?

Monday, September 27, 2010

जीवन में कोई न कोई अभाव तो अवश्यंभावी है,क्योंकि हमारे कर्म तो हमें स्वयं ही भोगने हैं इसीलिए जो भी सुख-दुख जीवन में आए उसे भगवान का प्रसाद एवं अपने कर्मों का फल समझ शांतिपूर्ण ग्रहण करें।

Friday, September 24, 2010

You never decided that you'll be coming to this world,similarly you will not decide the day when you'll leave this world. It is only God who decides everything so have faith in Him and let Him decide everything for you,about you then nothing can go wrong in your life.

Thursday, September 23, 2010

हम परमपिता परमेश्वर की संतान है। सृजेता(ईश्वर) मे हमें इस संसार में जन्म दिया है और हमारे भविष्य का सम्पूर्ण भार उन्हीं पर निर्भर हैं। जिस प्रकार माता-पिता हमें जन्म दे हमें हमारे हाल पर भटकने के लिए नहीं छोड़ देते, बल्कि ताउम्र हमसे प्रेम रखते हैं और सदा ही हमारा हित सोचते हैं तो फिर परमपिता जो सर्वश्रेष्ठ पिता हैं वह हमसे विमुख कैसे हो सकते हैं? हमारे जीवन में जो भी अंधकार एवं आभाव हैं वह इसी कारण हैं क्योंकि हम यह भूल जाते हैं कि हम उस परमब्रह्म की इस विराट सृष्टि का एक अंग है जिसकी सुरक्षा एवं देखभाल का सम्पूर्ण दायित्व स्वयं भगवन ने अपने ऊपर ले रखा हैं और यदि हम अपने पंतग रूपी जीवन की डो़र ईश्वर के हाथ छोड़ देगें तो उनका निश्चल प्रेम हमारी नैया को भवसागर पार करा ही देगा ।

Wednesday, September 22, 2010

महान ऋषियों एवम्‌ संतो ने कहा हैं कि मनुष्य जीवन से बहुमूल्य इस संसार में कुछ भी नहीं। जो मनुष्य मानव जीवन की इस गरिमा को नहीं समझते उनके लिए मानव जीवन और पशु-जीवन में कुछ खास अंतर नहीं हैं जिस प्रकार पशुयों में चैतन्यता का आभाव होने के कारण उनके लिए बहुमूल्य पदार्थो की कीमत भी दो कौड़ी की होती हैं, उसी प्रकार अचेतन मनुष्य भी आत्मगरिमा से उदासीन रहते हैं, अपने सभी सामर्थ्यों को कोयला बना हाथ मलते हुए पश्चात्ताप के आँसू लिए इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।
अतः यही उचित होगा कि परमात्मा के दिए गए इस महान अनुदान को जैसे-तैसे काटने की अपेक्षा सही अर्थों में मानव जीवन को और श्रेष्ठ एवं गरिमामय बनाया जाए ताकि पीछे पछताना न पड़े।

Tuesday, September 21, 2010

मरने से क्या डरना?? यह तो अटल सत्य हैं कि जो आया हैं वह जाएगा अवश्य इसलिए सदैव की मृत्यु के लिए तैयार रहना चाहिए। जिस प्रकार पुराने कपड़े उतार कर नए पहनना एक सुखद अनुभूति है उसी प्रकार जर्जर शरीर को नया जन्म तो लेना ही है। अतः इस शाशवत सच को अपनाने में और यथासमय गले लगाने में ही समझदारी हैं। जीवन के हर दिन को इस प्रकार जिएँ कि यही अंतिम दिन हैं और इसे भरपूर जीना हैं।

Monday, September 20, 2010

Pray to God everyday it brings in you such positive energy that you are never low and can feel this energy in everything you do. Praying is more essential than any other work in life.So thank The Almighty for every second of your life.

Friday, September 17, 2010

यह जग परमात्मा ने बड़ा ही विचित्र बनाया है, इसमें हर तरह के मनुष्य बनाए है, कुछ सुगढ़ है तो कुछ अनगढ़। हमारा सदा ही अपने जीवन में सुगढ़ एवं सुसंस्कृत व्यक्ति ही मिलते रहें ऐसा संभव नहीं क्योंकि यह संसार केवल हमारे लिए नहीं बना हैं और ईश्वर ने तरह-तरह के मनुष्यों के साथ हमें व्यवहार करना आए इस प्रकार का सुनियोजन किया है। इसलिए जीवन में जब भी अनगढो़ से पाला पड़े तो अपने व्यवहार में बदलाव लाना ही उचित हैं क्योंकि ऐसे लोगों से अनावश्यक उदारता बरतना स्वयं को बहुत मंहगा पड़ सकता है इसलिए सदा श्रेष्ठजनो से सदा प्रेरणा लें एवं दुराचारियों से इस प्रकार का व्यवहार रखें जिस प्रकार मनोरोगियों से रखा जाता हैं, न तो क्षमाशील बना जाए और न उपचार प्रक्रिया से मुख विमुख करें। इसी प्रकार अनगढ़ दुराचारियों में भी परिवर्तन लाया जा सकता हैं।

Thursday, September 16, 2010

Peace of mind is a state of mind which can only be acheived by doing good deeds and helping others. The satisfaction that you get by feeding a hungry, giving clothes to a needy is not the same when you feed yourself or wear your clothes. So make your life meaningful by proving to give meaning to someone else's life.

Wednesday, September 15, 2010

मनुष्य की अंतरआत्मा परमात्मा के ही समान सर्वगुण संपन्न हैं,वह इतनी संपन्न हैं कि उसकी संपन्नता में कभी अभाव नहीं हो सकता इसीलिए जब मनुष्य को अंतरंग की संपन्नता का ज्ञान होता हैं तो उसकी समस्त कामनाओ का स्वतः ही अंत हो जाता हैं और मनुष्य के जीवन में मॄगतॄष्णा का अंत हो जाता है, तब मनुष्य की कोई भी इच्छा शेष नहीं रह जाती एवं वह स्वयं में सम्पूर्ण हो जाता हैं।

Tuesday, September 14, 2010

मनुष्य को चाहिए कि हर अवस्था में वह अपनी मानसिक शांति बना कर रखें,चाहे सुख हो या दुख उसे किसी भी अवस्था को अपने मन पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जीवन की डगर ही इस प्रकार की हैं कि सुख-दुख का तो चोली दामन का साथ है, परन्तु सुख-दुख को अपने ऊपर से इस प्रकार गुज़र जाने देना चाहिए कि मानो एक अनजान राहगीर हो,क्योंकि उसे तो चले ही जाना हैं तो उसके लिए मन की शांति क्यों भंग की जाए।

Monday, September 13, 2010

सफलता उन्हीं के हाथ लगती हैं जो एक बार विवेकपूर्वक निर्णय लेने के बाद अपनी सारी शक्तियाँ उस ओर संगठित कर देते है और एक बार विचार कर निश्चय कर लेने पर बार-बार उसे नहीं बदलते,क्योंकि दृढ़ निश्चय ही व्यक्ति के आत्मविश्वास एवं योग्यता की वृद्धि करता हैं। अतः सफलता का मूल मंत्र विवेक से दृढ़ निश्चय कर उस पर अडिग रहना हैं।

Sunday, September 12, 2010

Treat your enemies as your friends as in real sense they are your more bigger friends because they teach you to struggle and come face to face with hardships which they and only they can teach you as they've been assigned by God to do so,so love your enemies as you would love the messengers of God.

Friday, September 10, 2010

Always try to make friends with your enemies so that you have no enemies left,but friends as God made it that way that all the people in the world are your friends and you are their's.

Thursday, September 9, 2010

यदि इच्छाशक्ति प्रबल हो तो संसार में कुछ भी प्राप्त किया जा सकता हैं,प्रबल इच्छाशक्ति वाला व्यक्ति जिस काम में हाथ डालता हैं वह उसे तब तक नहीं छोड़ता जब तक वह उस काम को पूरा नहीं कर लेता,फिर चाहे मार्ग में कितनी ही असफलताएँ क्यों न आएँ और यही उन्नति एवं सफलता का एकल मार्ग हैं। यह कहना अतिशोयक्ति न होगी कि संसार की समस्त सफलताएँ और आध्यात्मिक स्तर पर भी सफलताएँ उन्हीं को प्राप्त होती हैं जिनमें कड़ी मेहनत और लगन के साथ प्रबल और प्रखर इच्छाशक्ति का समावेश होता है, उनके लिए नामुमकिन ल्वज़ बना ही नहीं हैं।

Wednesday, September 8, 2010

यह सच है कि मानव मस्तिष्क भी मानव जीवन की ही तरह ईश्वर की देन हैं परन्तु दिमाग स्वयं सिद्ध विचार यंत्र नहीं है, इसे सही दिशा में सक्रिय बनाने के लिए प्रयत्न की आवश्यकता पड़ती हैं। जिस व्यक्ति के विचार ऊँचे,कामनाएँ मंगलकारी एवं संगति साधुता पूर्ण होगीं उसका मस्तिष्क सदा स्वस्थ होगा। हमारा परम कर्तव्य हैं कि हमारा मस्तिष्क सदा कल्याणकारी दिशा में अग्रसर रहें और यह तभी संभव है यदि हमारे कार्य परमार्थ के लिए हों क्योंकि कल्याण का निवास परमार्थ के सिवाय और किसी में नहीं हैं।

Tuesday, September 7, 2010

अच्छे विचार ही सुखद भविष्य के लिए मार्गदर्शक प्रदान करते हैं अतः अपने मन में सदैव कल्याणकारी, पवित्र एवं उत्पादक विचारों को ही स्थान दीजिए,अच्छे विचारो का चितंन एवं मनन कीजिए, अच्छे विचारो वाले व्यक्तियों का संत्सग कीजिए, अच्छा साहित्य जो पवित्र विचार उत्पन्न करें उनका वरण करें और दूषित विचार एक क्षण के लिए भी मस्तिष्क में न आने दें। अच्छे विचारों द्वारा ही सद्‌चरित्र का निर्माण सम्भव हैं और उत्कृष्ट चरित्र से स्वर्ग, धन-वैभव और सुख सभी कुछ मिलना अवश्यंभावी हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी इसी राह से होकर निकलता हैं।

Monday, September 6, 2010

मनुष्य ही प्रार्थना करते हैं पशु नहीं, इसीलिए जो मनुष्य प्रार्थना नहीं करते वह देखने में तो मनुष्य ज़रूर हैं परन्तु अंदर से पशुओ के ही भांति जड़ और अज्ञानी हैं। प्रार्थना मनुष्य जीवन का उद्देश्य ही नहीं कर्तव्य भी हैं, प्रार्थना करने से मनुष्य को ईश्वर के प्रेम का असीम आनंद प्राप्त होता है। यदि प्रार्थना करते समय किसी के लिए मन में द्वेष उत्पन्न हो तो प्रार्थना करने से पूर्व उसे क्षमा कर देना चाहिए क्योंकि दूषित मन से की गयी प्रार्थना ईश्वर को स्वीकार नहीं होती। संसार के समस्त प्राणी आपकी तरह ईश्वर के ही पुत्र हैं इसीलिए सबसे प्रेम करो यही सच्ची भक्ति (प्रार्थना) हैं।

Sunday, September 5, 2010

समुद्र, धरती, आकाश, वृक्ष केवल देना ही जानते हैं, और निसर्ग का नियम भी है कि जो निरंतर दान करता हैं वह निर्बाध प्राप्त भी करता हैं, आज का दिया हुआ दान कल हज़ारो गुना बढ़ कर मिलता हैं।यदि हम अपनी क्षमता आज लोककल्याण और परोपकार में लगाए तो कल वही क्षमता हज़ारो गुना बढ़ कर निरंतर सबका भला ही करेगी।

Friday, September 3, 2010

प्रार्थना आत्मा का, मन का भोजन हैं, पूरे दिन भोजन भले ही छूट जाए परन्तु प्रार्थना नहीं छूटनी चाहिए। अपनी दिनर्चया को इस प्रकार ढाले कि दिन के हरेक घंटे में केवल एक मिनट परम पिता को अवश्य स्मरण करें। प्रार्थना करना याचना करना नहीं हैं बल्कि प्रेम से ईश्वर को पुकारना हैं, यही मात्र सच हैं जग में बाकी सब झूठ। प्रार्थना द्वारा ही हम उस सबसे महत्वपूर्ण परम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं।

Thursday, September 2, 2010

दूसरों की अपेक्षा अपने को हीन मानना परले दरजे की बेवकूफ़ी नहीं तो और क्या हैं, ईश्वर की क्या यह कृपा कम हैं कि आपको सुर-दुर्लभ कर्मयोनि यानि मनुष्य का जन्म प्राप्त हुआ है, परमात्मा ने स्वयं अपनी चेतना का अंश दे आपको चैतन्य बनाया है, इच्छाओ,अंकाक्षाओं का प्रसाद प्रदान किया, बुद्धि,विवेक एवं शारीरिक बल दिया और चेतना से परिपूर्ण मन दिया हैं जिनका सदुपयोग करके मनुष्य महामानव बन सकता हैं और मृत्यु को परास्त कर अमर बन सकता हैं।

Wednesday, September 1, 2010

मनोबल इंसान का प्रधान बल हैं जिसके बिना किसी भी श्रेत्र में प्रगति करना नामुमकिन है, क्योंकि जिस व्यक्ति में मनोबल की कमी हैं वह निर्बल हैं और निर्बल व्यक्ति भी पापी की ही तरह सुख से जीने का अधिकारी नहीं इसीलिए सर्वप्रथम शक्ति का संचय करो तभी अपना एवं समाज का हित संभव होगा। श्रुति में भी कहा गया हैं "बलमुपास्व" अर्थात बल की उपासना करो तभी पाप की वृद्धि से बच पाओगे।

Tuesday, August 31, 2010

मनोबल इंसान का प्रधान बल हैं जिसके बिना किसी भी श्रेत्र में प्रगति करना नामुमकिन है, क्योंकि जिस व्यक्ति के मनोबल की कमी हैं वह निर्बल हैं और निर्बल व्यक्ति भी पापी की ही तरह सुख से जीने का अधिकारी नहीं इसीलिए सर्वप्रथम शक्ति का संचय करो तभी अपना एवं समाज का हित संभव होगा। श्रुति में भी कहा गया हैं "बलमुपास्व" अर्थात बल की उपासना करो तभी पाप की वृद्धि से बच पाओगे।

Friday, August 27, 2010

Some people live for others and to make them happy, some love to tease others and to make them unhappy again and again they enjoy to envy others and but they do not realise that they are themselves making their sack very heavy for the next birth and will not be able to repent it even,so please if you can't make others happy don't make them cry so that they are not forced to curse you from heart.

Wednesday, August 25, 2010

There are many people in this world who live for there own sake,such people are mere animals and not anything more than that,they are whiling away their human birth, Some live for others, they still are making some part of their lives worthwhile,while a few only live to help others and to make the lives of needy fulfil their dreams,such people are in true sense the messengers of God and I'm very lucky and proud to say that I know such people and those are my "Parents" Yes they are truly the messengers of God and His representatives for me in this world .Thanks a ton Almighty to bless me with such loving, caring and the best of all Parents.

Monday, August 23, 2010

Keep your eyes on the goal of reaching The Almighty and other things will follow in the right direction and right order.

Thursday, August 19, 2010

रोटी के लिए मरते खपते रहना मनुष्य का नहीं तुच्छ जीव-जंतुओ का कार्य हैं, इसीलिए इस अति दुर्लभ मानव शरीर को सार्थक बनाने के लिए इस प्रकार का कार्य करें जिसके लिए ईश्वर ने हमें इस धरती पर अवतरित किया है,क्योंकि यदि हम इस सही मार्ग पर नहीं चलेगें तो यह बहूमूल्य जीवन व्यर्थ हो जाएगा और सिवा पछतावे के हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा।

Wednesday, August 18, 2010

हम स्थूल नहीं सूक्षम जीवन हैं जो अज़र एवं अमर हैं, हमारा सीधा संबंध उस परम तत्व से हैं परन्तु अज्ञान के अंधकार के कारण हम इस परम सत्य को देख नहीं पाते इसी कारण हम गहन निद्रा में हैं और हमें आवश्यकता हैं इस अंधकार से उभरने की और प्रकाश की ओर बढ़ने की ताकि हम उस परम प्रकाश से साक्षातकार कर सकें और भव सागर से पार हो जाएँ।

Tuesday, August 17, 2010

अपने को सुसंपन्न वही व्यक्ति बना सकता हैं जिसमें कठोर परिश्रम करने की क्षमता हो और जिसने समय का एक-एक क्षण सुचारू रूप से व्यतीत किया हो। इतिहास गवाह हैं कि संसार में एक भी उदाहरण एसा नहीं मिलेगा जहाँ सफलता श्रमशीलता के बगैर मिली हो इसलिए सफलता उन्हीं को प्राप्त होती हैं जो निरंतर उसके लिए संघर्ष करते हैं।

Monday, August 16, 2010

पिछले जन्म के अच्छे कर्मो के कारण ही मनुष्य को अति दुर्लभ मानव शरीर ईश्वर से प्राप्त होता है तो इस मानव शरीर का सदुपयोग करना बहुत ही आवश्यक हैं अन्यथा यह सवर्णिम अवसर हाथ से निकल जाएगा और पछतावे के सिवा हमारे पास कुछ शेष नहीं रह जाएगा, तो इस मौके का पूर्ण रूप से सदुपयोग कीजिए एवं आत्मा को परमात्मा से एकाकार करने के लिए अग्रसर रहिए।

Friday, August 13, 2010

God is never partial towards anyone, its our eye that see that there is more in other's plate than ours but do not make it a habit as the grass is not always greener on the other side!

Thursday, August 12, 2010

God loves you ! He is the Creator, the Preserver and Destroyer. He creates each and every thing in this world, preserves it for its worth and finally it is destroyed. Thus we should know that we are not here forever we have to leave someday or other so help others and make your life as meaningful as it can be!

Wednesday, August 11, 2010

मनुष्य का मन एक मदमस्त हाथी के समान हैं यदि उसे एक बाड़े में रखा जाए तो वह पुनः गंदगी से बच जाता है, इसी प्रकार यदि एक बार मनुष्य का मन ध्यान साधना और भगवान के भजन से शुद्ध हो गया तो उसे ईश्वर भजन और स्मरण के बाड़े में बंद कर देना चाहिए तभी वह जग में व्याप्त मलिनता से बच पाएगा।

Tuesday, August 10, 2010

जीवन का अभिप्राय हैं दिव्य प्रेम- प्रेम हर उस प्राणी से, हर फूल-पत्ते से, हरेक जानवर से चाहे वो कीट-पंतग ही क्यों न हो और ईश्वर के ही बनाए हर एक मनुष्य से चाहे वह किसी भी जाति, सामप्रदाय, मज़हब या देश का क्यों न हो, केवल हर जगह, हर प्राणी में उस परम पिता परमेश्वर की ही कल्पना कीजिए तभी वो प्रेम दिव्य प्रेम बन पाएगा।

Monday, August 9, 2010

मनुष्य को जीवन में किसी भी बात पर अंहकार नहीं करना चाहिए, इतिहास गवाह हैं कि घमंडी का सिर सदा ही झुकता हैं इसीलिए रूप-गुण, संपत्ति, साधन, सर्मथन, विद्या-बुद्धि किसी भी बात पर घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा सब कुछ पाकर भी सच्चा, विनम्र, शालीन, सभ्य एवं सुशील बनें रहना चाहिए।

Friday, August 6, 2010

ईश्वर को सदैव सत्कर्म करने वाले मनुष्य ही प्रिय हैं, ईश्वर ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य की रचना इसी उद्देश्य से की हैं कि वह यह समझे कि "अहम्‌ ब्रह्म,द्वितिय न अस्ति" अर्थात मनुष्य स्वयं कोई और नहीं ब्रह्म ही हैं और यह बात वो तभी समझ सकता हैं जब वह प्रमाद, आलस्य और अज्ञानता का त्याग कर जागरण का वरण करें और प्रकाश एवं पावनता की ओर अग्रसर हो, इसी प्रकार वह जीवत्व से बढ़ता हुआ ईश्वरत्व तक पहुँच सकता हैं। यह सभी कुछ तभी संभव हैं जब मनुष्य स्वयं को परमपिता परमात्मा का पुत्र एवं प्रतिनिधि अनुभव करे।

Thursday, August 5, 2010

Count your blessings,name them one by one, Count your many blessings see what God has done! Your blessings are your good deeds and God wants to give them to you.

Wednesday, August 4, 2010

देह की शक्ति समाप्त होते ही सारी आसक्तियाँ आप से आप ही छूट जाती हैं, जिन बंधनो से बंध कर हम जीवन जीते है, मोह माया, प्रेम-विलाप सब प्राण के शरीर से निकलने पर स्वयं ही अंत हो जाता हैं, परन्तु परमात्मा से हमारा बंधन एसा शाश्वत है जो कि सदा ही बना रहता हैं और कभी नहीं टूटता।

Tuesday, August 3, 2010

मनुष्य की पूर्णता का चिन्ह यह हैं कि उसमें कितनी उत्कृष्ट भावनाओं का विकास हुआ हैं, मनुष्य उस दिन सही मायने में पूर्णता की परिधि में प्रवेश कर जाएगा जिस दिन उसका स्वार्थ परमार्थ बन जाएगा, उसके अधिकार कर्तव्य बन जाएँगे,उसका अपना सुख, दूसरे के सुख से संतुष्ट हो जाएगा एवं उसकी आत्मा परमात्मा में लीन हो जाएगी।

Monday, August 2, 2010

God is never partial towards anyone, whatever we sow, so shall we reap, so do not be harsh to others if you don't want harshness in your life, also treat everyone equal as the smallest and weakest creature of the earth is also a part of the Almighty.

Friday, July 30, 2010

Let the goodness of helping others shine upon you and the day is not far when you'll shine like a bright star in this world and beyond that !!

Thursday, July 29, 2010

Live your life with faith in God and you will see that how it becomes more easy to live with faith in Him as Faith gives us the courage to withstand all the odds that happen in our life and surrender to Him for all your deeds.

Wednesday, July 28, 2010

हर मनुष्य को एक सीमित एवं और अन्जान अवधि का जीवन रूपी वरदान ईश्वर से मिला हैं जिसे सुन्दर से सुन्दर ढंग से व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को उलझन और अशांति से दूर ही रहना चाहिए और सदा विवेकपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे स्वयं तो अपना जीवन अच्छे से बिताना ही चाहिए साथ ही साथ दूसरों की बेहतर जीवन बीताने में सहायता भी करनी चाहिए तभी उसके जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा।

Tuesday, July 27, 2010

जो मनुष्य पुरूषार्थी है उसे इसका फल अवशय ही मिलता हैं एसा विधि का विधान है जिसे ईश्वर को भी मानना ही पड़ता है क्योंकि जो नियम ईश्वर ने स्वयं बनाए हैं उनका पालन करना उनके लिए भी परम आवश्यक हैं यानि सम्पूर्ण सृष्टि नियम की धुरी पर ही टिकी हैं इसीलिए ईश्वर कोई अपवाद न रखते हुए उसका पालन दृढ़ता के साथ स्वयं भी करते हैं।

Monday, July 26, 2010

ईश्वर यदि हमें कुछ संदेश देना चाहते तो केवल यही कहते " मेरी सेवा मत करो, गरीबों और दीनो की सेवा-सश्रुषा करो, क्योंकि जब दुखी-गरीब प्रसन्न होते हैं तब मैं प्रसन्न होता हूँ, इसलिए यदि मेरी सच्ची पूजा करनी हो तो किसी का दिल न दुखाओ, सभी से प्रेम करो एवं सदैव सबका भला करो।

Saturday, July 24, 2010

सच्चा आध्यत्मिक व्यक्ति अखण्ड आस्तिक होता हैं, वह हर कण में व्याप्त ईश्वर के सच्चे दर्शन करता हैं,उसे ज्ञात है कि ईश्वर हर प्राणी, हर फूल-पत्ते, हर मनुष्य में सदैव मौजूद हैं इसी कारण वह कोई भी काम गल्त कर ही नहीं सकता, ईश्वर का आस्तित्व मान कर भी जो व्यक्ति दुष्कर्म करता हैं एवं दूसरों के प्रति दुर्भाव रखता है, वह तो उस नास्तिक से भी गया गुज़रा हैं जो ईश्वर के आस्तित्व में विश्वास नहीं रखता और ऐसे आस्तिक बनाम नास्तिक को सौ वर्ष की तपस्या के बाद भी माफ नहीं किया जा सकता।

Friday, July 23, 2010

Light is Knowledge, Ignorance is Darkness. God is Light, When we move towards Him we let go of ignorance, thereby darkness and our soul is illuminated from within and life becomes Lighted.

Thursday, July 22, 2010

"जीवतं सफलं तस्य, य़ः परार्थोद्यतः सदा" अर्थात जीवन उसी का सफल और सार्थक हैं जो सदा परोपकार में संल्गन रहता हैं, परोपकारी को किसी चीज़ का भय नहीं रहता न पाप का और न ही पतन का, उसे तो केवल लोक-परलोक दोनो में ही जयजयकार ही मिलती हैं एवं परोपकारी व्यक्ति सदा ही पूज्यनीय हैं।

Wednesday, July 21, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं कि "आत्मा की आत्मा का बंधु और आत्मा ही आत्मा का शत्रु हैं"अर्थात हम स्वयं ही अपने मित्र और स्वयं ही अपने शत्रु हैं,कोई दूसरा हमारा मित्र या शत्रु नहीं हैं, जितना ही हम अपने अंदर के परमतत्व के अनुकूल होते जाएँगे, उतना ही हमारा जगत के प्रति और जगत का हमारे प्रति मित्र भाव बढ़ता जाएगा और जितना ही हम इसकी विपरीत दिशा में आचरण करेगें उतना ही शत्रु भाव बढ़ता चला जाएगा। अंहकार और भौतिक जगत में उसी की भांति हो जाना दुःखो का मूल कारण हैं, यदि सुख पाना हो तो आध्यत्म भावना से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सच्चा प्रयत्न कीजिए।

Tuesday, July 20, 2010

उपासना का मनुष्य के विकास से अद्वितिय सम्बन्ध है,क्योंकि शुद्ध हृदय से भजन कीर्तन करना, प्रभु के समीप बैठ उन्हें निहारना एवं नाम जपने से मनुष्य के तन, मन के वह सूक्ष्म संस्थान जागृत होते हैं जो मनुष्य को सफल, दूरदर्शी और सद्‍गुणी बनाते हैं, परन्तु केवल भजन करने या माला फेरने से भगवान प्रसन्न नहीं होते, हमारा कर्म भी भगवान की पूजा का एक आधार हैं क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं एवं सर्वदा क्रियाशील हैं इसीलिए अपना कर्म को धर्म समझ कर करने वाले सभी मनुष्य ईश्वर को अत्यन्त प्रिय हैं चाहे वह खेत में काम करने वाला किसान हो या पत्थर तोड़ने वाला मज़दूर। कर्तव्य भावना से किए गए कर्म से भगवान उतने ही प्रसन्न होते हैं जितना कि भजन कीर्तन से।

Monday, July 19, 2010

श्रद्धा वह प्रकाश हैं जो अंधकार में प्रकाश का सत्य उत्पन्न करता हैं एवं हमारी शांतस्वरूप आत्मा को मंजिल(परमात्मा) तक पहुँचाता हैं। जब मनुष्य लौकिक चमक-दमक के कारण मोहग्रस्त हो जाता हैं तो माता के समान ठण्डे जल से मुँह धुला के जगा देने वाली शक्ति हैं श्रद्धा। श्रद्धा के बल पर ही अशुद्ध चिंतन का त्याग कर मनुष्य बार-बार ईश्वर के ध्यान में मग्न हो जाता हैं और बुद्धि आध्यत्म के पथ पर अग्रसर हो जाती हैं।

Friday, July 16, 2010

जिस प्रकार सोने में निखार लाने के लिए उसे आग में तपना पड़ता हैं उसी प्रकार अपनी पात्रता साबित करने के लिए हर मनुष्य को कठिनाइयों और असुविधायों की अग्नि परीक्षा देनी पड़ती हैं, परन्तु जो व्यक्ति कठिन से कठिन मार्ग पर भी अपने कर्तव्यों से विचलित नहीं होता एवं सच्चाई और निष्ठा का मार्ग नहीं त्यागता वास्तव में वही नर-रत्न कहलाता हैं और ईश्वरीय भण्डार की विभूतियों से विभूषित किया जाता हैं परन्तु वह मनुष्य जो धन लोलुप, स्वार्थी, आलसी एवं इन्द्रियों का दास हैं वह ईश्वरीय प्रसादो का उसी प्रकार अनधिकारी हैं जिस प्रकार कौआ यज्ञ भाग का।

Thursday, July 15, 2010

अधिकतर लोग ज़रा सी विपत्ति आने पर ही घबरा जाते हैं और हाय-हाय करने लगते है एवं ईश्वर के प्रति अनास्थावान होने लगते है,परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार में रहते हुए तो दुख-तकलीफें आना अवश्यंभावी हैं इसीलिए उनसे विचलित न होके उन्हें परमपिता का खेल समझना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों के साथ खेलते हैं,मुख पर डरावना मुखौटा लगाके बच्चो से ठिठोली करते हैं उसी प्रकार परमेश्वर जो हम सभी के पिता हैं और हम उनकी संतान हमें कठिनाइयों से अभ्यस्त बनाने के लिए समय-समय पर हमारे जीवन में चुनौतियाँ उत्पन्न करते है ताकि हम संसार के हर संकट का सामना कर सकें,अतः आपत्तियों को परमात्मा का खेल समझ उन्हें स्वीकार करना चाहिए एवं सदा ईश्वर में अपनी आस्था बनाए रखनी चाहिए।

Wednesday, July 14, 2010

अपने सांसारिक कर्तव्यों की पूर्ति करते-करते मनुष्य को अपने शेष समय को अपनी आत्मा की खोज के लिए आध्यत्म मार्ग में लगाना चाहिए ताकि उसके लोक-परलोक एक साथ बनते चलें, इस द्विमुखी साधना में साधक को ज़रा भी कठिनाई नहीं होती क्योंकि परमात्मा की कृपा उसका नाम जपने वालो पर सदा बनी रहती हैं।

Tuesday, July 13, 2010

अंहकार में वशीभूत हो मनुष्य शारीरिक सुख को ही सब कुछ मान बैठता हैं,परन्तु जीवन की साँझ आते-आते उसे इस बात का आभास हो जाता है कि जीवन क्षणभंगुर हैं, वो आत्मा की हैं जो कि शाश्वत सत्य हैं पर उस समय तक बहुत देर हो चुकती हैं एवं मनुष्य के हाथ सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं रह जाता क्योंकि यह बहूमुल्य मानव जीवन तो वह गवाँ चुकता हैं।

Monday, July 12, 2010

जीवन की सफलता और महत्ता मनुष्य की आत्मिक प्रगति पर ही निर्भर हैं, भौतिक वस्तुएँ तभी तक सुख देने वाली प्रतीत होती हैं जब तक उनकी प्राप्ति नहीं होती। सच्चा एवं चिरस्थाई सुख मनुष्य की आत्मिक प्रगति पर ही निर्भर हैं,एवं उसी की प्राप्ति के लिए ही यह मनुष्य जीवन भगवान से मिला हैं।

Friday, July 9, 2010

आत्मशांति यानि मन की शांति भौतिक वस्तुयों के भोग द्वारा मिलना असंभव हैं, वह तो केवल मन की श्रेष्ठता से मिलती हैं जो कि स्वयं मनुष्य के भीतर हैं, जिस प्रकार सोना आग में तप के और निखरता हैं उसी प्रकार मनुष्य जीवन रूपी ज्वार भाटे में हिचकोले खाकर ही मंजिल(परमात्मा) तक पहुँच सकता हैं।

Thursday, July 8, 2010

सभी महापुरूषो एवं संतो ने बार-बार सभी तरह की धार्मिक ग्रंथो में बारम्बार उस परमसत्ता का गुणगान किया हैं जो कि सृष्टि के हर नन्हें कण में व्याप्त हैं। ईश्वर हरेक के हृदय में विराजमान हैं इसीलिए हमें प्रत्येक व्यक्ति का समान रूप से आदर करना चाहिए एवं किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए।

Wednesday, July 7, 2010

संसार के हरेक कार्य को यह सोच ही करना चाहिए कि इसमें ईश्वर की इच्छा विद्यमान है, तभी मनुष्य उस कार्य को सफलता पूर्वक समाप्त कर सकता हैं, अन्यथा वह सदा ही खिन्न प्रवृति से कार्य करेगा और अंत में निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा। सिर्फ उपल्बधियों का ध्यान न रख प्रतिकूलताओं पर भी नितांत विचार करें।

Tuesday, July 6, 2010

आपने पाला हमें भी, उसे भी
हम जानते हैं हर वो पल जिसमें आपने जीवन सँवारा हमारा
वो तो सब भुला बैठे!
हम कभी भूल न पाए जो प्यार-दुलार मिला आपसे
वो तो सब गवा बैठे!
पर एक बागबान(ईश्वर) है कि वह दोनो से ही करता हैं
बेतहाशा प्रेम!

Monday, July 5, 2010

माँ शब्द एक ऐसी सुदंर अनुभूति हैं कि जो सोचते ही होठों पर एक मधुर मुस्कान आ जाती हैं, माँ वो है जो बच्चे की हर पीड़ा हर वेदना समझती हैं, माँ वह है जो अपना सब कुछ वार बच्चो पर न्यौछावर कर देती है, पर जो बच्चे माँ को नहीं समझ सकते, उसके प्रेम को नहीं जान पाते वह न सिर्फ नादान हैं बल्कि जीवन के हर रिश्ते से अनिभिज्ञ एवं उदासीन हैं एवं उन्हें ईश्वर भी माफ नहीं कर पाते क्योंकि जो बच्चे माँ की कदर करना नहीं जानते उनकी किस्मत में ठोकरों के अलावा कुछ नहीं रखा हैं जोकि देर या सवेर उन्हें मिल कर ही रहेंगी।

Friday, July 2, 2010

जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने के लिए अपना पूरा प्रयत्न, पूरी शक्ति एवं आयु लगानी पड़ती हैं, तब कहीं जाकर सफलता प्राप्त होती हैं, परन्तु कुछ लोग तो बगैर प्रयत्न करे ही सफलता की अपेक्षा करते हैं एवं अनितिपूर्ण व्यवहार अपनाते हैं जो कि सर्वथा अनुचित हैं, मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी समूची ताकत से अपने कर्तव्य की पूर्ति करें एवं सही समय आने पर सफलता की प्राप्ति निश्चित हैं।

Thursday, July 1, 2010

जिस प्रकार भोर होने से पहले रात्रि का अंतिम प्रहर गहन कालिमा से परिपूर्ण होता हैं उसी प्रकार वर्तमान युग की स्थिति भी निरंतर बुरी होती जा रही हैं, परन्तु हमें ईश्वर पर भरोसा रख सदा संघर्ष जारी रखना चाहिए कि नव युग का निर्माण अब दूर नहीं, और उस श्रेष्ठ एवं नवीन युग की स्थापना से पूर्व सभी बुराईयों का सपष्ट होना नितांत आवश्यक हैं।

Wednesday, June 30, 2010

केवल अपने लिए जीना, खाना-खेलना और मर जाना, मानव जीवन का निकृष्टतम दुरूपयोग हैं, ऐसा व्यक्ति भले ही स्वयं को सफ़ल माने परन्तु वह असफ़ल ही माना जाएगा।क्योंकि भगवान ने इस सृष्टि को इस प्रकार रचा हैं कि सभी एक दूसरे का परोपकार करें, गाय माता दूध देकर हमारा पोषण करतीं हैं, बादल समुद्र से जल लाते हैं एवं प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं, सूर्य और चन्द्रमा समय पर उग इस धरती पर नवजीवन का संचार करते हैं, हो कहीं अपनी सिनग्ध चाँदनी से ठंडक प्रदान करते हैं, यानि छोटे से छोटा कीट-पंतग भी परोपकार का व्रत लिए जीवन जीता हैं तो क्या मनुष्य जो ईश्वर की सर्वोतम रचना हैं, उसे क्या स्वार्थपरकता शोभा देती हैं स्वयं विचार करें।

Tuesday, June 29, 2010

परमात्मा की रज़ा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता इसीलिए ईश्वर में विश्वास रख और अपनी मेहनत एवं लगन पर भरोसा रख के ही कोई कार्य करें। कर्म इस प्रकार करें कि आपके कृत्य से किसी को दुःख न पहुँचे एवं सबका भला ही हो ।

Monday, June 28, 2010

ईश्वर ने जो कुछ दिया है उसे मिल-बाँट कर ही खाएँ क्योंकि परमपिता ने किसी में भेदभाव नहीं रखा, सभी को समान बनाया हैं, अतः हमें भी सभी को समान रूप से प्रेम और आदर देना चाहिए।

Friday, June 25, 2010

God as always will shower more of His love for you if you shower everyone around you with love and affection.

Thursday, June 24, 2010

हमारे दानी मित्र ईश्वर ने हमें इतना कुछ दिया हैं, जो कि हमारी ज़रूरत से कहीं ज्यादा हैं, हम ईश्वर के वरिष्ठ राजकुमार हैं तभी तो हमें किसी चीज़ की भी कोई कमी नहीं, अतः सदैव हर क्षण परमपिता का धन्यवाद करें और मनावता की सेवा करें।

Wednesday, June 23, 2010

God is very kind, but repay His kindness by embrasing every oppurtunity in life to the fullest and maximum.

Tuesday, June 22, 2010

ईश्वर ने मनुष्य को अपार संपदाओं से भरपूर जीवन दिया हैं परन्तु उसे दिया हैं एक-एक खंड में गिन-गिन कर। नया खंड देने से पहले पुराने का हिसाब-किताब हमें उन्हें देना हैं, हमारे दानी मित्र भगवान तब बहुत निराश होते हैं जब हम उनके मूल्यवान अनुदान की अवज्ञा करते हैं, इसलिए हर नए दिन का महत्व समझें क्योंकि जीवन का हर प्रभात हमारें लिए अभिनव उपहार लाता हैं एवम्‌ चाहता हैं कि हम उसके उपहारों को उत्साहपूर्वक ग्रहण करें और उससे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करें।

Monday, June 21, 2010

मनुष्य जीवन में अनेक कठोर संकट उत्पन्न करने वाले तीन कारण हैं_ अज्ञान, अभाव और अशक्ति। इन तीनो का निवारण करने वाले है_ ज्ञान- साधना, पुरूषार्थ एवं संयम के तीन शस्त्र।

Saturday, June 19, 2010

उनकी असीम अनुकम्पा हैं कि परमपिता ने आपको हमारा पिता निर्धारित किया,परमपिता ने दिया हैं हमें अद्‍भुत वरदान आपके रूप में, कभी न मुश्किले झेली हमने आपके कारण, आपके कारण ही यह जग देखने का सौभाग्य मिला, एक जीवन तो कम हैं आपके नमन के लिए, प्रार्थना करती हूँ हे भगवान सदा दें परम पिता आपके प्रेम एवं दुलार से परिपूर्ण यह वरदान और आपका आशीर्वाद हम पर सदैव बनाए रखें।

Friday, June 18, 2010

रामचरितमानस में आता हैं_
"जुग विधि ज्वर मत्सर अबिबेका।"
भौतिक ज्वर की तरह आध्यात्मिक ज्वर भी अनेक तरह के हैं। जैसे यौवन ज्वर, काम ज्वर,लोभ ज्वर,मोह ज्वर आदि। ज्वर के लक्षण हैं_ अंग की शिथिलता, मुँह सूख जाना, शक्ति की क्षीणता, पसीना आने लगना, देह में दाह जलन होना। ज्वर शब्द का अर्थ हैं_
"ज्वरति जीर्णो भवति अनेनेति ज्वरः।"
यानि आज का चिकित्सा विज्ञान इन सबके विषय में अल्प ज्ञान ही रखता है। कितना गहन हैं आध्यात्मिक चिकित्सा विज्ञान, यह इस वर्णन से स्पष्ट हैं।
गीता में इसी ज्वर से ग्रसित हो अपने लक्षणों की चर्चा अर्जुन, श्रीकृष्ण से करते हैं,इसे विषाद की स्थिति कहते हैं।

Thursday, June 17, 2010

जल से पतला कौन हैं, कौन भूमि से भारी, कौन अग्न से तेज़ हैं, कौन काजल से काली?
जल से पतला ज्ञान हैं, पाप भूमि से भारी, क्रोध अग्न से तेज़ है, कंलक काजल से काला।

Wednesday, June 16, 2010

पुरूर्षाथ करो उसी से अपनी किस्मत बदल सकते हो एवं ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखो, भाग्य भी पुरूर्षाथ द्वारा ही बनाया जाता हैं, अतः अपने भाग्य से ज्यादा अपनी मेहनत पर विश्वास करें।

Tuesday, June 15, 2010

God is a Strength not a Weakness, God is walking towards Light not Darkness
God is an Awakening not a Deep sleep, God is Forever not just for Today!

Monday, June 14, 2010

God is Omnipresent everywhere and anywhere, He is present in the smallest or biggest creature of the world, He is present in every flower and the tiniest of plant,be it a reptile or a fish. So be very kind and considerate towards all his creations as He is present in all and see them all Equally. So a service towards His creations is a service rendered to Him.

Friday, June 11, 2010

आकाश से लेकर धरती तक जिस वस्तु पर नज़र जाती हैं सभी कुछ उस परम पिता का ही वैभव हैं, अतः कुछ पाना हो तो केवल ईश्वर की भक्ति की ही इच्छा करें, उसी में जीवन का सबसे बड़ा सुख समाया हैं।

Thursday, June 10, 2010

मनुष्य जीवन एक वन के समान हैं जहाँ सुरम्य एवं व्यवस्थित दिखने वाली पगडंडियाँ भी हैं एवं कंटीला एवं बंजर रास्ता भी, अकसर लोग आसान पगडंडियों के लालच में सही मार्ग भूल जाते हैं एवं वन रूपी जीवन पथ पर भटक जाते हैं, जीवन वन का राजमार्ग सदाचार और धर्म हैं, इस मार्ग पर चलकर भले ही मनुष्य को मुश्किलो का सामना करना पड़े परन्तु अंत में उसकी विजय निश्चित होती हैं एवं सुख और शांति का कारण बनती हैं।

Wednesday, June 9, 2010

जिस प्रकार एक नन्ही चींटी एक विशालकाय हाथी का खातमा कर सकने में सक्षम हैं, उसी प्रकार दुर्लभ दिखने वाले मनुष्य में भी इतना आत्मबल हो सकता हैं कि वह इतिहास के पन्ने बदल दें, इसका परम उदाहरण हैं महात्मा गाँधी जो कि एक दुर्लभ काय व्यक्ति थे परन्तु भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में उनका सहयोग अतुलनीय था।

Tuesday, June 8, 2010

भगवान श्री कॄष्ण ने गीता में कहा हैं कि हम सभी को अपना जीवन बाँसुरी के समान बनाना चाहिए, बाँसुरी जिस प्रकार बिना बुलाए बोलती नहीं, उसी प्रकार हमें भी मौन का ही अनुसरण करना चाहिए, बाँसुरी की तरह ही जब भी मुख खोले तो सदा मीठा ही बोले यानि "ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करें आपहु शीतल होय",एवं जिस प्रकार बाँसुरी में कोई गाँठ नहीं होती, उसी प्रकार किसी से मतभेद होने की स्थिति में हम मन में उस व्यक्ति के प्रति कोई गाँठ न बाँध ले इस बात का हमें विषेश ध्यान रखना चाहिए।

Monday, June 7, 2010

अकसर देखा जाता हैं कि जो चीज़ अपने पास नहीं हैं उसे प्राप्त करने की होड़ मनुष्य में सदा बनी रहती हैं, परन्तु वास्तव में तो जो परमात्मा से मिला हुआ हैं वो इतना अधिक हैं कि उसका सही और संतुलित उपयोग करके प्रगति के पथ पर बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता हैं, अतः जो अपने पास हैं उसी में संतुष्ट रहें एवम्‌ उसका पूर्णतः सदुपयोग करें।

Friday, June 4, 2010

जब तक कड़ी भूख न लगे कुछ न खाएँ, इन्द्रियों को शांत करने के लिए कभी न खाएँ क्योंकि इन्द्रियाँ तो अतृप्त इच्छाओं के समान हैं जो कभी तृप्त नहीं होगीं।

Thursday, June 3, 2010

अच्छे विचार हमारा सदा शुभ करते हैं एवं ईश्वर की ओर हमें प्रेरित करते हैं, परन्तु बुरे विचार न केवल हमें गर्त में धकेलते है, अपितु हमें ईश्वर से दूर गल्त मार्ग पर डालते हैं, इसीलिए मन में सदा अच्छे विचार बनाए रखें।

Tuesday, June 1, 2010

हम सभी उस परम पिता परमेश्वर के वरिष्ठ राजकुमार हैं, अपने पिता की ही भांति हमें सभी के दुखो को हरना चाहिए,सूर्य-चन्द्रमा की भांति सब ओर प्रकाश फैलाना चाहिए, हवा की भांति सबको ठंडक प्रदान करनी चाहिए,पानी की भांति सबको सूकून देना चाहिए,अपनी आभा एवं ऊर्जा से सभी का जीवन खुशहाल बनाना चाहिए।

Friday, May 28, 2010

God has given us everything in Life, can we even repay a single bit of it?
Yes we can by Thanking Him every second of our life.
But even that is very less as compared to the mercy and blessings The Almighty showers on us all the time by providing us all that we need without asking!

Thursday, May 27, 2010

जीवन में निराशा के कितने ही काले बादल क्यों न छा जाए, परन्तु कहीं न कहीं आशा की नन्ही किरण अवश्य टिमटिमाती रहती हैं, मनुष्य की सहायता करने भगवान किसी न किसी रूप में जरूर आते हैं।परन्तु परमात्मा भी उन्ही की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं, यानि जो सब रास्ते बंद होने पर भी हार नहीं मानते एवं निरन्तर ईश्वर पर भरोसा रख संघर्ष करते रहते हैं।

Wednesday, May 26, 2010

देह का बंधन केवल संसार से हैं, देही (आत्मा) का बंधन न केवल देह से हैं वरन परमात्मा से भी अटूट बंधन हैं जो जन्म जन्मान्तरो तक निश्चल रहता है, संसार छूटते ही देह के सभी बंधन यहीं रह जाते हैं परन्तु देही का बंधन ईश्वर से कभी नहीं टूटता।

Tuesday, May 25, 2010

भक्त प्रह्लाद के कथनानुसार किसी को भी ईश्वर का नाम रटाया या जपाया नहीं जा सकता, यह तो ईश्वर की असीम अनुकम्पा होती हैं कि किसी मनुष्य के मुख से ईश्वर का नाम निकलता हैं, अतः भगवान के नाम का जप भी उनकी कृपा बिना असंभव हैं।

Monday, May 24, 2010

हर मनुष्य के अतःकरण के भीतर ईश्वर विद्यमान हैं एवं इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि जो भी व्यक्ति गल्त काम करने लगता हैं उसे उसका अतःकरण अवश्य धिक्कारता हैं क्योंकि वह उसकी आत्मा की पुकार होती हैं और आत्मा परमात्मा का ही तो स्वरूप हैं, तो जब भी किसी काम में दुविधा हो तो अपने अतःकरण की पुकार अवश्य सुनें एवं उसका अनुसरण करें।

Friday, May 21, 2010

जिस तरह ईश्वर स्वयं सबसे सुन्दर हैं उसी प्रकार उनकी बनाई कोई भी कृति कुरूप कैसे हो सकती हैं, अर्थात इस संसार में कोई व्यक्ति या पदार्थ असुंदर नहीं हैं, यह तो हमारा दृष्टिकोण हैं जो किसी भी वस्तु को सुंदर अथवा कुरूप बना देता हैं। सृष्टा ने इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अतिसुंदर एवं स्मपूर्ण रचा हैं, अपनी किसी भी कृति को अपूर्ण छोड़े बिना।

Thursday, May 20, 2010

आज के इस भौतिकवादी युग में भावनाशीलता को अपनाना ही समझदारी हैं, अल्पबुध्दि वाला भावनाशील व्यक्ति भी ईश्वर को पा सकता हैं, कबीर, रैदास जैसे संतो का जीवन इसका जीवंत उदाहरण हैं।

Tuesday, May 18, 2010

अंतःकरण की पवित्रता ही स्वर्ग एवं मलिनता ही नर्क हैं, यदि पाप से बचना हो,आनंद की अनुभूति पानी हो, देवत्व का अनुभव करना हो तो अंतःकरण को परिष्कॄत करना ही होगा। स्वर्ग और नर्क जाना अपने ही हाथ हैं, यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम अपने लिए क्या तय करते है एवं क्या कदम उठाते हैं।

Monday, May 17, 2010

यदि किसी भी काम को अधूरे आत्मविश्वास के साथ किया जाता हैं तो उस काम की करूपता मन की उदासी एवं अधूरेपन के रूप में झलक ही पड़ती हैं, मन की उदासी कहीं बाहर से नहीं आती, किसी घटना से संबंधित नहीं होती। यह तो एक प्रकार का आत्मविश्वास हैं, जिसे मनुष्य अपने स्वभावानुसार घटा-बढ़ा सकता हैं।

Friday, May 14, 2010

यदि भगवान पर अपना प्रेम भाव न्यौछावर करना हो तो भक्त को उनसे यह निवेदन करना चाहिए कि हे भगवन!"मैं आपका हूँ, मेरा सम्पूर्ण जीवन आपके श्री चरणों में अर्पित हैं"। प्रेम के यह दो अक्षर आराध्य को भावविभोर कर सकने में सक्षम हैं।

Thursday, May 13, 2010

मनुष्य के जीवन पर प्रथम अधिकार भगवान हैं, द्वितिय मात्रभूमि का, तीसरा माता-पिता एवं गुरू का एवं फिर स्वयं का, क्योंकि भगवान परम पिता हैं, उन्होंने हमें यह बहुमूल्य मानव जीवन प्रदान किया हैं, एवं मातृभूमि ने अपने उपजे अन्न से हमारा पोषण किया हैं, इस धरती पर हमें जन्म देने वाले माता-पिता के भी हम ऋणी हैं एवं गुरू जिन्होंने हमारा मार्ग प्रशस्त किया हैं, हमें ज्ञान प्रदान किया है, उनका भी हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार हैं।

Wednesday, May 12, 2010

सब कुछ तो इस परम पिता परमेश्वर ने बनाया हैं, उसका बँटवारा करना न केवल बेवकूफी हैं अपितु प्रकति के विरूध्द भी हैं, इस सम्पूर्ण विश्व वैभव की उपयोगिता इसी में हैं कि सब मिल-बाँट कर खाएँ। संसार सब का हैं। अतः जितना अपने लिए आवश्क हैं उतना उपयोग में लाएँ एवं शेष दूसरों के लिए छोड़ दे इसी में दूरदर्शिता है।

Tuesday, May 11, 2010

अपने पर विश्वास यानि आत्मविश्वास,अपने आत्मदेव की अपार शक्तियों पर विश्वास यही हमें जीवन में सफलता एवं महानता की ओर ले जाता हैं। आत्मविश्वास एक ऐसी ज्योति हैं जो मनुष्य जीवन की नैया को भँवसागर के पार पहुँचा देती हैं।

Monday, May 10, 2010

ज्ञान की उपयोगिता तभी हैं यदि वह सचिदानंद तक पहुँचने का मार्ग प्रदर्शित करे। नहीं तो ज्ञान का कोई अर्थ नहीं एवम ईश्वर से जो पृथक करें ऐसा ज्ञान व्यर्थ हैं।

Thursday, May 6, 2010

भगवान ज्ञानी को एकत्व की मुक्ति प्रदान करते हैं परन्तु अपने भक्त को ईश्वर चार तरह की मुक्ति प्रदान करते हैं, साष्टि, सालूक, सारूप और सामीप्य, यानि परमपिता अपने भक्त को अपने लोक में रहने का अधिकार प्रदान करते हैं, वे भक्त को अपना स्वरूप एवं सान्निध भी प्रदान करते हैं।

Wednesday, May 5, 2010

हमारा प्रेम, अनुरक्ति हो तो केवल अपने अंदर बैठे परमात्मा के अंश से हो। परमात्मा विभिन्न रूपों में हमारे आस-पास मौजूद हैं। हमारे प्रेम, सौहाद्र का प्रतिफल हममें विद्यमान परब्रह्म परमात्मा भी हमें महत्व पूर्ण वरदान के रूप में देंगे। वह हैं जीवन के हर कार्य, पुरूषार्थ में योगक्षेम का वहन।

Tuesday, May 4, 2010

Someone has said correctly that "Past is like cancelled cheque, future like promissory note and present like ready cash" so instead of keep thinking about past or future make your present the best because that is still in your hand. Also we know " A bird in hand is better than two in a bush".
सोने का खरा होना आग पर तपने पर ही प्रामाणित होता हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी उपासना की अग्नी में तप कर ही प्रज्वलित होता हैं।

Monday, May 3, 2010

हर मनुष्य जो भी इस दुनिया में आया हैं उसे अपने कर्तव्य की पूर्ति करनी हैं,एवं कर्तव्यपालन का आनन्द ही वास्तविक हैं। प्रतिकूलताओं और कर्तव्य पालन का तो चोली दामन का साथ हैं, परन्तु प्रतिकूलताएँ भी अनुकूलताएँ बन जाती हैं कर्तव्यपालन के आनन्द से।

Friday, April 30, 2010

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में प्रतिमा के रूप में जो भगवान रहते हैं वह बोलते नहीं परन्तु हमारे अतःकरण में रहने वाले भगवान जब भी दर्शन देते हैं तो वे हमसे बात करने के व्याकुल रहते हैं और वह हमसे यह प्रशन करना चाहते हैं कि "मेरे इस अति दुर्लभ, दिव्य, अनुपम मानव जीवन के उपहार का इससे अच्छा उपयोग क्या और कुछ नहीं हो सकता जैसा कि किया जा रहा हैं?"वे इसका उत्तर हम सबसे चाहते हैं, एवं हमें इसका उत्तर जीते-जी या मृत्योपरान्त भगवान को देना ही होगा।

Thursday, April 29, 2010

हमारे सबसे नज़दीक, सबसे करीब, यदि कोई हैं तो वह हैं ईश्वर। हम ईश्वर के बनें एवं उन्हीं के लिए जिएँ, स्वयं को कामनाओ से रिक्त कर दें, एवं ईश्वर की इच्छा और प्रेरणा के आधार पर स्वयं को आत्मसमर्पित कर दें तो स्वयं को परम पिता की कृपा अनुकम्पा से ओत प्रोत पाएँगें।

Wednesday, April 28, 2010

"जो दूसरे को जीते सो वीर जो अपने को जीते सो महावीर"। यानि अपना सुधार कर लेना संसार की सबसे बड़ी सेवा हैं, क्योंकि अधिकतर लोग दूसरे की आँख का तिनका तो देख लेते हैं परन्तु अपनी आँख का शहतीर नहीं देख पाते, अर्थात वे दूसरो की छोटी से छोटी गल्ती भी देख लेते हैं परन्तु स्वयं की बड़ी से बड़ी भूल भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

Tuesday, April 27, 2010

जो इन्सान भगवान को नहीं मानता वह मृत समान हैं एसा कई महापुरूषो ने कहा हैं। भगवान को पाने के लिए ही मनुष्य का इस धरती पर जन्म हुआ हैं, और यदि मनुष्य यहाँ (संसार) की कामनाओ में लीन अपने आराध्य (ईश्वर) को ही भुला दे तो यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल हैं।
जो इन्सान भगवान को नहीं मानता वह मृत समान हैं एसा कई महापुरूषो ने कहा हैं। भगवान को पाने के लिए ही मनुष्य का इस धरती पर जन्म हुआ हैं, और यदि मनुष्य यहाँ (संसार) की कामनाओ में लीन अपने आराध्य (ईश्वर) को ही भुला दे तो यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल हैं।

Monday, April 26, 2010

ज्ञान वह धन हैं जो कोई भी आपसे छीन नहीं सकता। ज्ञान रूपी सीपी में प्रवेश पाकर मनुष्य जीवन मोती बन जाता हैं। जब चारो ओर केवल अंधकार ही अंधकार हो एवं कोई रास्ता न सूझे, तब महापुरूषो द्वारा लिखे गए ग्रंथो का आसरा लें। उत्तम ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता, ज्ञानदेवता का वरदान पाकर मनुष्य निहाल हो जाता हैं।

Friday, April 23, 2010

परमात्मा का विधान सदैव के लिए मंगलदायक होता हैं। वे हमारे परम हितैषी हैं एवं सदा हमारे हित का की विचारते हैं। देह का सुख सोचना हमारी मूर्खता हैं, हमें जन्म से पूर्व एवं मृत्यु के बाद का विचार करना चाहिए। हर पल इस बहूमल्य मनुष्य जीवन के लिए ईश्वर का धन्यवाद करें और सच्चे हॄदय से पूर्ण समर्पण करें।

Thursday, April 22, 2010

उदारमना मनुष्य को सब तरफ उदारता ही बिखरी प्रतीत होती हैं। उदारता मनुष्य को उस सोपान पर पहुँचा देती हैं जहाँ उसे हर इंसान उस परमसत्ता की ही छवि प्रतीत होता हैं।

Wednesday, April 21, 2010

ईश्वर की उपासना प्रतिदिन करनी चाहिए। परन्तु कर्म से भी उपासना करना आवश्यक हैं। लकड़ी काटना, मकान की सफाई करना, पत्थर तोड़ना,खेत से अन्न निकालना भी भगवान की ही स्तुति हैं। कर्तव्य भावना से किए गए कर्म, परोपकारों से भगवान जितना प्रसन्न होते हैं, उतना भजन, कीर्तन से नहीं।

Tuesday, April 20, 2010

There is an old saying "If money is lost nothing is lost, if health is lost something is lost but if character is lost everything is lost". A person who has good character not only gains respect but people also trust him. Thus a good character should be a prime goal in life upon which is dependent the success and prosperity.
मनुष्य के जीवन में सद्‌विचारो का बहुत महत्व हैं, अपने सद्‍विचारों द्वारा मनुष्य चाहे तो बहुत ऊँचा उठ सकता है, एवं मनुष्य के गल्त विचार निश्चित ही उसे पतन के गर्त की ओर धकेलते हैं। अतः उचित यही होगा कि हम अपने मन में सदा सद्‍विचार ही रखें एवं सबका कल्याण ही सोचें।

Monday, April 19, 2010

धार्मिक व्यक्ति वह हैं जो रचयिता(परमात्मा) की छोटी-से छोटी कृति में भी उसी का रूप देखें, जो किसी से द्वेष न रखे, जो सदा सब का शुभचिंतक हो और सदा यही कामना करें कि सदैव सर्वत्र का भला हो।

Saturday, April 17, 2010

गायात्री शब्द का अर्थ हैं- प्राण-रक्षक। "गय" कहते हैं प्राण को ’त्री’ कहते हैं- संरक्षण करने वाली को। जिस शक्ति का आश्रय लेने पर प्राण का, प्रतिभा का, जीवन का संरक्षण होता हैं, उसे गायत्री कहा जाता हैं।

Thursday, April 15, 2010

परिस्थितियाँ सदा हमारे अनुकूल नहीं रहती, परन्तु सच्चा मनुष्य वही है जो विपरीत परिस्थति में भी टूटे नहीं एवं हार न मानें। जिस प्रकार सागर की हिलोरें कितनी ही तेज़ क्यों न हो चट्टान हार नहीं मानती उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन की चुनौतियों से हार न मान सदा सर्घषों से जूझते रहना चाहिए।

Wednesday, April 14, 2010

यदि अति दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त करके भी हम लक्ष्यहीन जीवन व्यतीत करते हैं तो यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा, हमें अपने कर्त्तव्य एवं स्वरूप को समझ अपने सच्चे स्वरूप सच्चिदानंद की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

Tuesday, April 13, 2010

प्रेम में ही प्राणी का स्वर्ग नीहित हैं, चाहे वह छोटा सा कीट-पंतग ही क्यों न हो प्रेम के लिए सदा लालायित रहता हैं, मनुष्य का जीवन भी प्रेम का ही सुन्दर स्वरूप हैं, एवं प्रेम पर ही टिका हैं। प्रेम की परिकाष्ठा हैं अपने आराध्य(परमात्मा) तक अपनी यह परम अनुभूति अभिव्यक्त करना।

Monday, April 12, 2010

पुरूषः स परः पार्थ भक्तया लभ्यस्त्वनन्यया।
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्‌॥
अर्थात उस परमपुरूष (परमात्मा) की प्राप्ति, जिसके भीतर सारे प्राणी स्थित हैं और जिससे सब कुछ व्याप्त हैं, अनन्य्भक्ति द्वारा ही संभव हैं।

Friday, April 9, 2010

अकसर कहा जाता हैं कि दिल से दिल को राहत होती हैं यानि यदि हम किसी को दिल से याद करते हैं तो करोड़ो मील दूर बैठे व्यक्ति के पास हमारे दिल का संदेश पहुँच जाता हैं, ऐसा विज्ञान ने प्रमाणित किया हैं, उसी प्रकार यदि हम परमात्मा को एक बार स्मरण करते हैं तो वे हमें करोड़ बार बुलाते हैं।

Wednesday, April 7, 2010

ज्ञान एवं ध्यान का चोली दामन का साथ हैं। ध्यान से ही ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। ध्यान द्वारा अर्जित संतुलित मनःस्थिति से मनुष्य यदि चाहे तो अपने लिए मोक्ष का द्वार भी खोल सकता हैं।

Tuesday, April 6, 2010

इंसान का सूक्ष्म शरीर उतनी ही बड़ी सच्चाई हैं जितना की परमात्मा की सत्ता, इसी सूक्ष्म शरीर के संचित कर्मो एवं उनके फलानुसार ही ईश्वर हमारा पुर्नजन्म निर्धारित करते हैं।

Monday, April 5, 2010

ईश्वर के दर्शन के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं हैं, परमात्मा को अपने भीतर ही देखना चाहिए जिसके लिए ज़रूरी हैं कि हम अपने भीतर संयम, सद्‌विचार एवं सद्‌भावना का विकास करें, दरसल परिष्कृत आत्मा ही परमात्मा की उपलब्धि हैं।

Friday, April 2, 2010

झूठ नहीं बोलना चाहिए,परन्तु कड़वा एवं अप्रिय सच भी किसी को नहीं बोलना चाहिए। दूसरों को नुकसान न पहुँचे, किसी की भावना को ठेस न पहुँचे ऐसी बात बोलनी चाहिए,ऐसी बोली गई बात झूठ होकर भी सौ सच के बराबर हैं।उसी प्रकार जिस बात से किसी को पीड़ा पहुँचे, किसी का मन आहत हो ऐसी कही गई बात सच होकर भी झूठ के बराबर ही हैं।

Thursday, April 1, 2010

गायत्री महामंत्र की उपासना सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोपरि ही नहीं यह मनुष्य जीवन को बहिरंग एवं अंतरंग दोनो ही नज़रिए से समृध्द और उन्नत बनाने का राजमार्ग हैं।

Wednesday, March 31, 2010

श्रीमद्‌भागवत में एक प्रसंग आता हैं, जिसमें भगवान कहते हैं कि वैकुंठ वहीं हैं जहाँ मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं। मेरी लीला का, नाम-रूप का, गुणो का गान करते हैं, मैं वहीं विराजमान हूँ एवं ऐसे स्थान के धूल के कण भी पवित्र हो जाते हैं।

Monday, March 29, 2010

नास्ति गंगासमं तीर्थं न देवः केशवात्परः।
गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतो न भविष्यति॥
अर्थात गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं,केशव के सामान कोई देवता नहीं, गायत्री से श्रेष्ठ न कभी कोई जप हुआ हैं और न आगे होगा।

Sunday, March 28, 2010

यथा हि पुरूषः शालां, पुनः संप्रविशेन्नवाम्‌।
एवं जीवः शरीराणि, तानि तानि प्रपद्यते॥
अर्थात जिस तरह एक पुरूष नए घर में प्रवेश करता हैं, वैसे ही जीव विभिन्न शरीरों को धारण करता हैं।

Saturday, March 27, 2010

आत्मा की खुराक हैं शुध्द ज्ञान,शुध्द कर्म एवं शुध्द उपासना। यह तीनो आत्मा के लिए उतने ही आवश्क हैं जितना शरीर के लिए भोजन।

Friday, March 26, 2010

ईश्वर की सत्ता का गुणगान शब्दों में करना अति कठिन हैं, ईश्वर सृष्टि के कण-कण में उसी तरह व्याप्त हैं जिस प्रकार दूध में घी, दिव्य चक्षुओं के बिना उन्हें देख पाना असंभव हैं, परन्तु हर पल हर क्षण ईश्वर की कृपा बरसती हुई महसूस करें।

Thursday, March 25, 2010

संसार एक कर्मभूमि हैं, जो जैसा कर्म करता हैं, उसे वैसा ही फल मिलता हैं। यदि कोई किसान बबूल बोकर, गेहूँ की फसल की इच्छा रखे तो यह उसी प्रकार असंभव हैं जिस प्रकार कोई मनुष्य दुष्कर्म करके भगवान से यह आशा रखें कि उसका जीवन सुखी एवं समृद्ध हो। अतः मन में सदैव पवित्र विचार रखें एवं आशापूर्ण विचारधारा रखें।

Wednesday, March 24, 2010

यदि भगवान से कुछ माँगना ही हैं तो केवल दुःख माँगिये, श्रीकृष्ण ने जब अपनी परम भक्त कुंती से वरदान माँगने को कहा तो उन्होंने दुःखो की कामना की। यह अति विलक्षण सत्य हैं कि दुःखो में नित्य- निरंतर मनुष्य ईश्वर को याद करता हैं एवं सुखो के क्षणभंगुर आगमन से वह शाश्वत सत्य(परमात्मा) को ही भूल जाता हैं।
इस मल-मूत्र के पिटारे शरीर पर इतना अभिमान न करें, यह जिन पंच-तत्वो से निर्मित हैं,अंत में इसे उन्हीं में समा जाना हैं अतः अपने जीवन में इस प्रकार के कर्म कर जाएँ कि मृत्यु उपरान्त भी इस जगत में अमर हो जाएँ।

Tuesday, March 23, 2010

हर मनुष्य के जीवन में सफलताएँ और असफलताएँ दोनो ही आती हैं परन्तु मनुष्य को चाहिए कि वह असफलताओं और कष्टों को याद करने की अपेक्षा, उत्साह और उमंग के लिए आवश्क हैं कि जीवन के सुखद क्षण एवं सफलताओ को याद रखा जाए। ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखना भी इसी दिशा की ओर प्रथम कदम हैं।

Monday, March 22, 2010

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते। अर्थात इंद्रियों के स्पर्श से मिलने वाले जितने सुख-भोग हैं,वे सभी परिणाम में दुःख देने वाले हैं। यानि ईश्वर से कुछ माँगना ही हैं तो सुख और भोग नहीं केवल ईश्वर को प्राप्त होने की इच्छा करें यही श्रेष्ठ सुख हैं।

Friday, March 19, 2010

प्रभुप्राप्ति ही राजमार्ग हैं। भगवान बार-बार हमें यह बात भागवत गीता द्वारा बताते हैं कि इसी जीवन में बंधनो से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लो। मोक्ष का अर्थ हैं चेतना का ऊधर्वीकरण, यानि अपना अहं मिटाकर भगवान में लीन हो जाना, ऐसा होने पर परमात्मा हमारी चेतना में कण-कण में निवास करने लगते हैं और सभी दुःख-कष्ट मिट जाते हैं।

Thursday, March 18, 2010

सुःख और दुःख एकदूसरे के पूरक हैं इनकी एकता कोई नहीं तोड़ सकता।सुःख के बाद दुःख, दुःख के बाद सुःख मनुष्य जीवन की नियति ही कही जा सकती हैं। स्वेच्छा से दुःख को गले लगाना ही सुःख को बुलावा देना हैं।

Wednesday, March 17, 2010

ब्रह्ममहूर्त में उठ कर जो ईश्वर को स्मरण करता हैं, ईश्वर उस पर अपनी कृपा दॄष्टि सदैव ही बनाए रखते हैं, एवं यह भक्त भगवन को अत्यन्त प्रिय हैं क्योंकि ईश्वर तो भावना के भूखे हैं,और इस प्रेम-त्याग का मिश्रित भाव परमपिता को भाव विभोर कर देता हैं।

Tuesday, March 16, 2010

महापुरूषों एवं संतो को, उर्दव गति प्राप्त होती हैं यानि वह मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार जिनका वध स्वयं परमात्मा करते हैं चाहे वह दुराचारी एवं अधर्मी ही क्यों न हो परम गति को प्राप्त होते हैं,इस बात का परिमाण हमें रावण, कंस एवं हरिणकश्यप जैसे दुष्टों का अंत ईश्वर द्वारा होने पर मिलता हैं। और अधिकतर मनुष्य जो साधारणतः तो मध्यम गति को प्राप्त होते हैं क्योंकि अपनी अपूर्ण इच्छाओं एवं संचित कर्मो के कारण उनका पुर्नजन्म अवश्यंभावी हैं, परन्तु यदि ऐसे मनुष्य भी अंत समय भगवान को स्मरण करते हैं तो दया एवं करूणा के अथाह सागर(परमात्मा) में लीन हो जाते हैं अर्थात वह आवागमन के चक्रव्यूह से मुक्त हो जाते हैं।हर पल उस परमपिता को याद करें यही परम स्मृति हैं।

Monday, March 15, 2010

यदि भगवान से कुछ माँगना ही हैं तो केवल दुःख माँगिये, श्रीकृष्ण ने जब अपनी परम भक्त कुंती से वरदान माँगने को कहा तो उन्होंने दुःखो की कामना की। यह अति विलक्षण सत्य हैं कि दुःखो में नित्य- निरंतर मनुष्य ईश्वर को याद करता हैं एवं सुखो के क्षणभंगुर आगमन से वह शाश्वत सत्य(परमात्मा) को ही भूल जाता हैं।

Saturday, March 13, 2010

माम्‌ उपेत्य भगवान को प्राप्त हो जाना ही सही मार्ग हैं और शांतिप्राप्ति का एकमात्र उपाय हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं मामुपेत्य पुनर्जन्म न विद्यते अर्थात यह भगवान का आश्वासन हैं कि उन्हें प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता और हम सोहम्‌ सच्चिदानन्दोहम्‌ हो जाते हैं अर्थात हमारी आत्मा परमतत्व में लीन हो जाती हैं एवं हम साक्षात्‌ अविनाशी परमब्रह्म की सत्ता हो जाते हैं

Friday, March 12, 2010

जीवन में पवित्र विचारों का बहुत ही महत्व हैं, बहुत बार एसा कहा जाता हैं कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन, उसी प्रकार जिस तरह के विचार मनुष्य के होगे उसी के अनुरूप वह कर्म करेगा और उसी के अनुसार उसे फल प्राप्त होगें।

Thursday, March 11, 2010

God decides the best for us, He knows for sure how the blessing we are asking might ruin our life thus it is not being granted to us. So our biggest well wisher is The Almighty and have faith He takes care of us all the time.
ईश्वर को पुरूष विषेश की उपाधि दी गई हैं यानि ईश्वर वे हैं जो पुरूषों में विशेष(श्रेष्ठतम) हैं जिन्हें लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवन-मृत्यु कुछ भी विचलित नहीं करती।

Wednesday, March 10, 2010

हर घर में साक्षात भगवान मौजूद हैं माता-पिता के रूप में क्योंकि भगवान हर समय हर जगह रहते तो हैं परन्तु दॄष्टिगत नहीं होते, अतः ईश्वर ने अपना यह काम माता-पिता को सौंपा हैं।

Tuesday, March 9, 2010

जिस प्रकार घी दूध के कण-कण में समाया रहता हैं एवं प्रयत्नपूर्वक उसे बाहर निकाला जाता हैं उसी प्रकार ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं आवश्यकता हैं प्रयत्नपूर्वक उन्हें खोजने की और अपने मन को सुमिरन सीखाने की।

Monday, March 8, 2010

ईश्वर किसी से पक्षपात नहीं करते,वे तो दया एवं करूणा के सागर हैं जो हमारे कर्मोनुसार हमें फल देते हैं।अतः अपने कर्मों द्वारा किसी को दुःख तकलीफ न पहुँचाए।

Sunday, March 7, 2010

जिस प्रकार माता-पिता सदा पुत्र का इंतजार करते है उसी प्रकार परम पिता परमेश्वर सदा प्रतीक्षा करते हैं कि कब हम उनके समीप आए तो ताकि वह करूणा एवं प्रेम की वर्षा हम पर कर सकें तथा हमारा योगक्षेम वहन कर सकें अर्थात हमारा उद्धार कर सकें।

Saturday, March 6, 2010

उस परम ब्रह्म के अंश हैं हम सभी और उसमें समा जाना ही गति हैं(मोक्ष) अतः परम पिता में सदा ध्यान लगाए एवं हरेक प्राणी को उनका ही स्वरूप मानें।

Friday, March 5, 2010

जीवन एक सराय के समान हैं, जितने रिश्ते-नाते हैं सब यहीं छूट जाते हैं, सभी कुछ यहीं रह जाता हैं यह मोह-माया के जाल में जकड़कर आत्मा तड़पती रहती हैं क्योंकि आत्मा को यह शरीर प्रभु प्राप्ति के लिए प्रदान किया गया हैं एवं हर मनुष्य के जीवन का यही लक्ष्य भी हैं,परन्तु मनुष्य इस परम लक्ष्य को छोड़ केवल धन संग्रह और जीवन यापन में लगा हुआ हैं।

Thursday, March 4, 2010

ईश्वर में आस्था रखने वाला मनुष्य हर परिस्थिति से धैर्य और साहस से जूझता हैं एवं उसे सदा यह विश्वास रहता हैं कि सुबह का सूर्य नव हर्षोल्लास लेकर आएगा।

Wednesday, March 3, 2010

आत्मा सत्य है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि एक चोर भी दूसरे से यह अपेक्षा नहीं रखता हैं कि उसके यहाँ कोई चोरी न करें, उसी प्रकार एक दुराचारी व्यक्ति भी दूसरों से सदा सदाचार की ही अपेक्षा रखता हैं, यह बात इस बात का प्रमाण हैं कि हर मनुष्य की आत्मा निष्पाप एवं अटल सत्य हैं एवं वह व्याकुल हैं परमात्मा से मिलन के लिए परन्तु आत्मा को मनुष्य के दुष्कर्मो के चलते आवागमन की चक्की में पिसना पड़ता हैं।

Tuesday, March 2, 2010

जीवन सार्थक होना चाहिए बड़ा नहीं। जीवन को सार्थक बनाने के लिए आवशक हैं कि हम हर पल उस परम पिता को याद करें और परमेश्वर की छवि अपने मन में बसा लें ताकि हर जगह हमें केवल परम पिता की कृपा बरसती हुई प्रतीत हो।

Monday, March 1, 2010

God is omnipresent and He knows everything, He is calling upon you with His both hands streched , you just need to try and keep trying purifying yourself to reach Him.
जीवन का सफर इतना कठिन है कि ईश्वर कृपा के बगैर यह जीवन बिताना बहुत ही मुश्किल हैं। जीवन में आशा और उत्साह के लिए बहुत ही जरूरी है कि मनुष्य का ईश्वर पर अटल विश्वास एवं आस्था हो तभी मनुष्य अपनी विफलताओं और दुर्गमता से जूझ सकता हैं।

Sunday, February 28, 2010

यह माँ का कर्तव्य हैं कि बच्चे को बचपन से ही ईश्वर की ओर प्रेरित करे,जो माँ ऐसा नहीं कर पाती वह अपूर्ण हैं एवं उसे माँ कहलाने का कोई हक नहीं क्योंकि उसने अपने बच्चे को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण सीख नहीं दी।

Friday, February 26, 2010

जीवन को इस तरह जीओ कि हर दिन एक नया सवेरा नवजीवन प्रतीत हो और हर रात इस बात का डर न हो कि मृत्यु की आगोश में जाना नींद का ही तो प्रतीक हैं।

Thursday, February 25, 2010

देवता उन्हें ही कहा जाता हैं जो दूसरो को देते हैं, देने का अर्थ धन नहीं हैं। यदि आप चाहें तो दूसरो को बहुत कुछ दे सकते हैं, आप दूसरो को प्रेम दे सकते हैं,मिठास दे सकते हैं। किसी दूसरे के जीवन को दिशा दे सकते हैं, दूसरों की सेवा कर सकते हैं, दूसरों की सहायता कर सकते हैं। यानि देवता बनना चाहते हैं तो देना सीखिए।

Wednesday, February 24, 2010

अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु दिव्यं ददामि ते चक्षुः।
अर्थात हमारी आँखें दिव्य बनें और जो दिव्यता को देख सके। यह तभी हो सकता हैं यदि हम सर्वश्रएष्ठ देख सकें, शालीनता को तलाश सकें और जो कुछ भी इस संसार में दिव्य हैं,उस दिव्यता को देख सकने में सक्षम हो।

Tuesday, February 23, 2010

भोगा न भुक्ता वयमय भुक्ताः अर्थात भोगों को हम भोग नहीं पाए, लेकिन भोगों ने हमको भोग लिया। यानि यह दर्शाता हैं कि किसी भी मनुष्य की स्मपूर्ण इच्छाएँ कभी पूरी नहीं होती परन्तु इन अतृप्त इच्छाओं के कारण ही हमें इस मृत्युलोक में बार-बार जन्म लेना पड़ता हैं एवं नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं। अतः हम इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाए परन्तु इच्छाओं ने हमारा भोग कर लिया कहना अतिशोयक्ति न होगी।

Monday, February 22, 2010

Do you see God in blooming flowers?
Do you see God in sprinkling showers?
Do you see God in a smiling face?
Do you see God in a cherished pace?
Do you see God in sun and moon?
Do you see God in stars and rain?
God is everywhere in every bit of universe.
You just need your eyes to be open.
With eyes shut you can be just in the world of miseries.
So open your eyes to the world of enlightenment, God
गायत्री मंत्र में सात प्रेरणाएँ हैं- प्राणस्वरूप, सुखस्वरूप, दुःखनाशक, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक एवं देवस्वरूप सविता के स्वर्णिम तेज को हम अंतरात्मा में धारण करें।

Saturday, February 20, 2010

जीवन चलने का नाम हैं, जीवन कहीं भी रुकता नहीं है अपनी गति से चलता ही रहता हैं। ईश्वर का नाम सर्वदा इसे सुचारू रूप में चलने में मदद करता हैं।

Friday, February 19, 2010

परमात्मा सदा गतिशील है और सर्वथा अचल और स्थित भी।वे दूरातिदूर अनुभव होते हैं और अत्यंत समीप भी।इस समग्र सृष्टि में जो कुछ भी दॄश्यमान हैं,वह इन्हीं से परिपूर्ण है और इन्हीं में संव्याप्त भी।
ईशावास्योप्निषद ॥५॥

Thursday, February 18, 2010

जिस प्रकार पुत्र माता-पिता की छवि होता हैं उसी प्रकार हम सभी उस परम तत्व की प्रतिबम्बित छवि ही हैं अर्थात हम सभी प्राणी ईश्वर का अंश है और उसका परम स्वरूप हम अपने अतःकरण में महसूस करते हैं।

Wednesday, February 17, 2010

Ayam Atma Brahmm This self(Atma/Soul) is Brahmm
From: Mandukya Upanisad, Atharva Veda
Ayam, means this, means the consciousness that lies deep within an individual, the innermost core of the personality is same as Brahmm which is everywhere, visible or invisible. Means you and Brahmm are identical and you should find this identity.
चतुर्विंशतिवर्णेर्या गायत्री गुम्फिता श्रुतौ।
रहस्ययुक्तं तत्रापि दिव्यैः रहस्यवादिभिः॥
गायत्री संहिता, ८५
अर्थात वेदों में जो गायत्री चौबीस अक्षरों में गुँथी हुई हैं, विद्वान लोग इन चौबीस अक्षरों में गूँथने में बड़े-बड़े रहस्यों को छिपा बतलाते हैं।

Tuesday, February 16, 2010

प्राथना सरल,निश्चल एवं भावपूर्ण हृदय से ही संभव होती हैं।ऐसी प्राथना से हमारे जीवन के सभी श्रेष्ठ प्रयोजन पूरे होते है। प्रार्थना से गहन तृप्ति मिलती हैं एवं अंतःकरण के सभी अवरोध दूर होते हैं। सबसे आवश्क बात प्रार्थना से हमें मनुष्य जीवन के उद्‍देश्य का भान होता हैं जोकि परम तत्व में लीन हो जाना हैं।

Sunday, February 14, 2010

ज्ञान का सच्चा अर्थ हैं भगवान को बोधपूर्वक अनुभव करना यानि ईश्वर को होशपूर्वक हर पल अनुभव करना ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान हैं।

Saturday, February 13, 2010

हम सभी के अंदर एक आत्मा हैं,जो शांत है,कर्म की दॄष्टि से श्रेष्ठ हैं।परन्तु आत्मा और परमात्मा के इस रहस्य को समझने में बाधक हैं मनुष्य का अंहकार। अहंकार से प्रेरित व्यक्ति कभी यह समझ नहीं पाता कि उस निराकार परमात्मा से ही यह जगत है,सभी प्राणी है,हर छोटे से छोटे कण में परमात्मा सर्वत्र व्याप्त हैं। अतः आवश्यकता है कि इस अंहकार को त्यागकर हम "आत्मा"बन जाएँ, उस परब्रह्म के अंश बन जाएँ।यही मोक्ष हैं।

Friday, February 12, 2010

God has given us so much but we still keep asking for more as beggars instead we must try giving the gift of knowledge, gift of time, gift of serving others, gift of making others happy, then we will lack nothing.
जीवन निष्क्रिय और निरुद्‌देश्य नहीं होना चाहिए। इस बहुमूल्य जीवन का एक-एक क्षण अपने लक्ष्य की प्राप्ति में बिताए, लक्ष्य है अपने आराध्य (परमात्मा) से मिलन का और हमें हर पल उस ओर अग्रसर रहना हैं।

Thursday, February 11, 2010

वेदान्त कहता है कि इस संसार में तीन प्रकार के मूर्ख हैं प्रथम है वह जो व्यर्थ की आशा रखते है, दूसरे है जो व्यर्थ कर्म करते है और जो व्यर्थ का ज्ञान अर्जित करते हैं। अर्थात ईश्वर के अतिरिक्त किसी और से आशा रखने वाला मनुष्य मूर्ख है। जो कर्म ईश्वर को अर्पित नहीं किया वह व्यर्थ है एवं जो ज्ञान हमें ईश्वर की ओर प्रेरित न करे वह व्यर्थ हैं।

Wednesday, February 10, 2010

नर में ही नारायण हैं इसका यह ही अभिप्राय है कि ईश्वर इस सम्पूर्ण सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं और हर जीव में परम तत्व का अंश सम्माहित हैं। मनुष्य की आत्मा भी छ्ल-कपट से परे परमात्मा का ही अंश एवं रूप हैं।

Tuesday, February 9, 2010

श्रम के बिना मनुष्य जीवन निरर्थक हैं। बिना श्रम मनुष्य की कोई पूछ नहीं। ईश्वर ने यह जीवन मनुष्य को श्रम द्वारा सार्थक बनाने के लिए ही प्रदान किया हैं। अतः जब तक जीवित हैं कठिन श्रम कीजिए, इस कठोर श्रम (साधना) द्वारा पारब्रह्म परमेश्वर तक भी पहुँचा जा सकता हैं।

Monday, February 8, 2010

जीवन-मृत्यु का फैसला ईश्वर के हाथ हैं,यह कोई नहीं जानता कि कब उसकी मृत्यु आकर जीवन से उसका हाथ छुड़ा कर ले जाएगी, अतः हर पल, हर छिन उस परमात्मा को स्मरण रखें ताकि अंतसमय तक कुछ स्मरण रहे तो केवल परमात्मा का नाम,शेष सब यहीं रह जाता हैं।

Saturday, February 6, 2010

भगवान प्रसाद/पुष्प के बदले नहीं भावनाओं के बदले प्राप्त किए जाते हैं। भावना ऐसी होनी चाहिए जो सच्चाई की कसौटी पर खरी उतरे, इस कसौटी की परख मनुष्य के त्याग, बलिदान, संयम, सदाचार एवं व्यवहार से होती है।

Friday, February 5, 2010

God has given us so much in life and we are so blessed that sometimes we feel sorry for the ones who are not so blessed so take out some time everyday to thank God for all the blessings and this very precious human birth given by Him as a gift.
ॠतेन गुप्त ऋतुभिश्च सर्वैर्भूतेन गुप्तो भव्येन चाहम्‌।
मा मा प्रापत्‌ पाप्मा मोत मृत्युरन्तर्दधेअहं सलिलेन वाचः॥
(अथर्ववेद,१७/१/२९)
अर्थात सत्यकर्म और धर्माचरण से ही मनुष्य जीवन सुरक्षित रहेगा,इसलिए हम निष्पाप और यशस्वी बनें और सदैव उच्च ज्ञान प्राप्त करते रहें।

Thursday, February 4, 2010

मनुष्य जीवन को उत्कृष्ट बनाने में सबसे बड़ा योगदान हैं ईश्वर के नाम का। परमात्मा के पवित्र पावन नाम से ना केवल हमारा जीवन शुभ एवं शुध्द हो जाता है, हमारा मन प्रतिकूल परिस्थियों में भी आशावादी रहता हैं और बुरे विचार हमारे मन में नहीं आते।

Wednesday, February 3, 2010

This gift of life is the mercy of God and we can make Him proud by having mercy on other living beings.
जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु। परन्तु मृत्यु का अर्थ मुक्ति नहीं,मोक्ष नहीं। महापुरुषों ने सच ही कहा है कि "तन की मौत मन की मौत नहीं"। जिस तरह मनुष्य वस्त्र बदलता हैं आत्मा मृत्युउपरान्त शरीर बदलती हैं,परन्तु मोक्ष केवल परमात्मा की शरण में जाने से प्राप्त होता हैं। अतः पारब्रह्म परमेश्वर से सच्चा प्रेम एवं आस्था ही हमें मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं।

Tuesday, February 2, 2010

भक्ति का अर्थ है भावनाओं की पराकाष्ठा और परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम। यदि किसी दुःखी को देखकर मन में करूणा जागे,किसी लाचार को देखकर मन में उसकी मदद करने की भावना जागे,एवं भूले-भटके को देख उन्हें सही मार्ग पर चलाने की इच्छा जागे, तो यह हृदय ही सच्ची भक्ति के योग्य हैं। ईश्वर की सच्ची उपासना दीन-दुखियों को पर दया कर उनकी सेवा-सश्रुणा करना ही हैं।

Monday, February 1, 2010

Difficulties and hurdles not only makes one wiser but also makes to believe that sucess is somewhere near around.
परिस्तिथियाँ हमेशा हमारे अनुकूल नहीं होती, प्रयत्न द्वारा हम उन्हें अपने अनुकूल बनाते हैं। उसी प्रकार हमें अपने मन को इस तरह सिखाना होगा कि वह परम पिता परमेश्वर की माला में गुथे जाने के अनुकूल हो।

Sunday, January 31, 2010

साधना से ही हमारे चिन्तन, चरित्र और व्यवहार में उत्कृष्टता आती हैं ,साधना से ही साधक के जीवन में वसन्त का आगमन होता है, नवसृजन के अंकुर फूटते है, जीवन संवरता है एवं परमात्मा रूपी लक्ष्य की प्राप्ति होती हैं।

Saturday, January 30, 2010

अनन्य का अर्थ है- अन्य का अन्य न रहना,अनन्य हो जाना यानि परमात्मा से एकाकार होने के लिए आवश्क है अनन्य भक्ति जिसमें की भक्त तल्लीन हो जाता है, प्रभु भक्ति में एवं परमात्मा में एकात्मा का अनुभव करता है।

Friday, January 29, 2010

जीवन में आशा रखना यानि आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर होना। आशावादी मनुष्य को हर जगह परमात्मा की मंगलदायक कृपा बरसती दिखाई देती है।अतः निराशा त्याग कर स्वयं पर आस्था रखने वाले मनुष्य को ही सच्ची शांति, सुख एवं संतोष की प्राप्ति होती हैं।

Thursday, January 28, 2010

God has given us so much in life that even if we thank Him every minute and every second in our life it is less so live helping others and thanking God for everything He has given us.
हर पल हर क्षण परमपिता का ध्यान करें, हर पल हर क्षण ईश्वर को धन्यवाद दें,हर पल हर क्षण जीवन को भरपूर जीएँ, हर पल हर क्षण मानव मात्र की सेवा में लगाएँ, क्या पता कि यह पल यह क्षण फिर आए न आए।

Wednesday, January 27, 2010

पारब्रह्म परमेश्वर हमारे भीतर ही तो हैं परन्तु हम कस्तूरी मृग की भांति ही सुगंध को बाहर खोजते रहते हैं, पर परम सत्य तो यह है कि परमात्मा की सुगंध अर्थात स्वयं परमात्मा हमारे भीतर ही सम्माहित हैं। अतः मृगतृष्णा में न भटके, अपने आराध्य को अपने अंतःकरण में खोजें।

Tuesday, January 26, 2010

हम सबके अंदर भगवान गुप्त रूप में निवास करते हैं। जो समझदार है, ज्ञानी हैं, भगवत्‌ स्वरूप को समझते हैं,वे यह मानते है कि हम सबके अंदर स्थित भगवान ही वह परमप्रकाश की ज्योति है,जिसे हम बाहर परमेश्वर कहकर पूजते हैं। परन्तु इसके विपरीत भ्रमित, अज्ञानी, मोह में उलझे व्यक्ति यह सोचते है कि हम ही सही सोचते है,बाकी सभी गल्त हैं;यहाँ तक की ये भगवान की भी(जिन्होंने हमें यह अमूल्य जीवन प्रदान किया है) उस परब्रह्म परमेश्वर की हर पल अवहेलना करके व्यर्थ के कर्म करते रहते हैं। अतः ऐसे अज्ञानी एवं भ्रमित लोगों की संगत नहीं रखनी चाहिए और हर क्षण भगवान का स्मरण करना चाहिए।

Monday, January 25, 2010

Take a moment to count all your blessings,they have been given by God to you in return of your good actions and deeds for others,so keep up the good work and leave all the rest to God.
भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा हैं- न हि कशिचत्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌।
अर्थात किसी भी क्षण मनुष्य बिना कर्म किए नहीं रह सकता। यानि कि कर्म जीवन की सबसे समर्थ और सार्थक परिभाषा है। हर रोज़ हम जीवन के साथ-साथ कर्म(कार्य) भी करते है। कोई भी क्रिया(कर्म) स्वयं में पाप या पुण्य नहीं होती,इसे यह दरजा उन भावों से मिलता है, जो इसके पीछे सक्रिय है।

Sunday, January 24, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा है- अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥
अर्थात यह मन अभ्यास और वैराग्य से वश में आता है। एक संयमी, शक्तिशाली और स्वस्थ मन को निश्चित ही भगवान का दिव्य वरदान,हर कर्म में उल्लास एवं परमशांति मिलती है।

Saturday, January 23, 2010

प्रभु समर्पित जीवन सभी का होना चाहिए। नित्य-नियमित जितना समय मिले,प्रभु को स्मरण अवश्य करें। थोड़ी देर की प्रार्थना-जप-ध्यान-भावपूर्वक गायत्री मंत्र या ओंकार का नाद हमारे चौबीस घंटे ऊर्जा एवं उल्लास से भर देते है।

Friday, January 22, 2010

जीवन एक ऐसा संग्राम है जिसे भगवान को स्मरण करते हुए ही जीता जा सकता है। निरंतर हर क्षण उस परम पिता को स्मरण करते हुए ही जीवन व्यतीत करें।

Thursday, January 21, 2010

विविध धर्म-सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र का भाव सन्निहित है
हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)

यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)

शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)

पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान्‌ है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।

दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्‍)

जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।

बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)

कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।

ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।

१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)

११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)

१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
 
 

Wednesday, January 20, 2010

परमात्मा एक महाशक्ति एवं महाऊर्जा है जो सम्पूर्ण जगत को संचालित एवं नियंत्रित करती है और घट-घट में, कण-कण में एवं छोटी से छोटी हर कोशिका में विद्यमान है। अतः यह कहना अतिशोयक्ति न होगी कि इस स्मपूर्ण ब्रह्मांड में हर जगह उस परमपिता की ऊर्जा स्ममाहित है।

Tuesday, January 19, 2010

माता-पिता इस संसार में सर्वोपरि है। माता-पिता धरती पर उस परम पिता परमेश्वर का जीवंत रूप है।
माता-पिता सदैव हमारे मंगल की ही कामना करते है, संतान के सदा ही हितैषी रहते है। अत: ईश्वर ने माता-पिता के रूप में हमे अपनी छवि प्रदान की है, उनकी कद्र एवं सेवा हर संतान का परम कर्तव्य है।

Monday, January 18, 2010

अहं का विसर्जन ही भक्ति है। भक्ति ही हमें सिखाती है कि यदि आहुति ही देनी हो तो हृदय रूपी अग्नि कुंड में अहं भाव की आहुति दो। भक्ति ही परम पिता परमेश्वर से मिलने का एकमात्र उपाय है।

Sunday, January 17, 2010

Let us all dwell deep into us and we'll be amazed to find within ourselves the Almighty for whom we are searching everywhere but could not trace Him anywhere!
ईश्वर माता-पिता के भांति ही हमारी देख-रेख करते है, जिस प्रकार माता-पिता को यह ज्ञान होता है कि उनकी संतान की क्या इच्छा है,उसी प्रकार ईश्वर हमारी अभिलाषा से अनभिज्ञ नहीं है,परन्तु परमपिता परमेश्वर सदा ही न्याय करते है एवं हमारे कर्मानुसार ही हमें फल देते है।

Saturday, January 16, 2010

गृहस्थ एक तपोवन है,जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है ।
_ आचार्य श्रीराम शर्मा

Friday, January 15, 2010

भागवत गीता में कहा गया है कि भगवान को प्राप्त करने के तीन सरल उपाय हैं सुमिरन, श्रवण और संकीर्तन- सुमिरन का अर्थ है कि निरंतर प्रभु नाम का जाप करना, श्रवण यानि जहाँ प्रभु की गाथा हो रही हो उसे कानो द्वारा ग्रहण करना एवं संकीर्तन का अर्थ है प्रभु नाम का गुणगान करना और प्रेम से अपने आराध्य को पुकारना।

Thursday, January 14, 2010

भागवत गीता में कहा गया है - अशांतस्य कुतः सुखम्‌ अर्थात अशांत व्यक्ति को सुख कहाँ मिलेगा! यानि शांत प्रवृति अपनाकर ही ईश्वर की शरण में जाना उपयुक्त है।

Wednesday, January 13, 2010

परम पिता परमेश्वर के प्रति सदा हमारे मन में कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। उसने जितना दिया है उसमें सन्तुष्ट रहना चाहिए,न कि एक याचक की भातिं माँगते ही रहना चाहिए,अगर कुछ माँगना ही है तो केवल ईश्वर से उनकी भक्ति एवं प्रेम की ही याचना करें।

Tuesday, January 12, 2010

ॐ भूर्भवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात।
उस प्राण्स्वरूप,दु:खनाशक,सुखस्वरूप,श्रेष्ठ,तेजस्वी,पापनाशक,देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुध्दि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
 
गायत्री मंत्र में धियः अर्थात सद्‌बुध्दि की प्रार्थना की गई है, सद्‍बुध्दि का अर्थ है ऐसी बुध्दि जो हमें उस परम पिता परमेश्वर की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। आत्मा को परमात्मा से मिलाप के लिए सद्‍बुध्दि की परम आवश्यकता है, अतः गायत्री परमात्मा की समीपता का सबसे बड़ा मंत्र है।

Monday, January 11, 2010

धनेन किं यो न ददति याचके,
बलेन किं यश्च रिपुं न बाधते।
श्रुतेन किं यो न च धर्ममाचरेत,
किमात्मना यो न जितेन्द्रियो भवेत्‌॥
अर्थात उस धन से क्या लाभ ,जो याचक को नहीं दिया जाता, उस बल से क्या,जो शत्रु को रोक न सके,उस ज्ञान से क्या लाभ, जो आचरण में न आ सके और उस आत्मा से क्या, जो जितेंद्रिय न बन सके।

Saturday, January 9, 2010

ॐ का नाद ब्रह्म नाद है, ॐ का स्वर परमपिता परमेश्वर का स्वर है,ॐ का निरंतर जाप ईश्वर की ओर बढ़ने का साधन है। ॐ हमारे भीतर एक नवशक्ति का संचार करता है। ॐ की ध्वनि भी भगवान के नाम की तरह ही असीम है।

Friday, January 8, 2010

परमपिता की विभूतियाँ _ पृथ्वी,जल, वायु, आकाश, सूर्य, रात-दिन, औषधियाँ-वनस्पतियाँ, गायें (समस्त प्राणिजगत) सभी पर माधुर्य एवं अमृतत्व की वर्षा करें। सबका कल्याण हो,सभी दिव्य और पवित्र जीवन जीएँ। _ यजुर्वेद १३/२७-२८

Thursday, January 7, 2010

वेदमूर्ति तपोनिष्ठ श्रीराम शर्मा आचार्य के शब्दों में स्वर्ग-नरक हमारे चिंतन एवं दॄष्टिकोण का एक तरीका है। यदि आपको दुनिया में अच्छाई दिखाई पड़ती है। कण-कण में भगवान दिखाई पड़ता है। इसी का नाम स्वर्ग है।

Wednesday, January 6, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- मामनुस्मर युध्य च- मेरा(प्रभु का) निरंतर स्मरण करते हुए युध्द करो, यह निश्चित है कि तुम विजय को प्राप्त होगे।
अर्थात भगवान का स्मरण निरन्तर करते हुए मनुष्य को अपनी विपरीत परिस्थितों से जूझता रहे एवं जीवन रूपी संघर्ष में निरन्तर ईश्वर को याद करते हुए संग्राम करता रहे तो वह निश्चित ही विजयश्री को प्राप्त होता है।

Tuesday, January 5, 2010

भोग और विलास में डूबा हुआ व्यक्ति ये भूल जाता है कि भोग मायाविनी है,अर्थात अपने मोहपाश में जकड़ने वाला है एवं कभी न अंत होने वाला है,यानि अच्छे से अच्छा पहनने, अच्छे से अच्छा खाने पर भी भोग की इच्छा समाप्त नहीं होती बल्कि बढ़ती ही जाती है ।

Monday, January 4, 2010

अपनेआप में आस्था रखने वाला मनुष्य ही आस्थावान कहलाता है, इसका मूल कारण है कि आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप है, अतः जिसकी आस्था स्वयं (आत्मा) में न हो,वह परमात्मा में आस्था रख सकता है, ऐसा सोचना व्यर्थ है।

Sunday, January 3, 2010

अंहकार मनुष्य को प्रेरित करता है कि अपने को महत्वपूर्ण सिध्द करें परन्तु वह यह बात भूल जाता है कि जो इस सम्पूर्ण सृष्टि एवं ब्रह्माड में सबसे महत्वपूर्ण है यानि की स्वयं परमात्मा ने कभी ऐसी चेष्टा नहीं की।