Sunday, January 24, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा है- अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥
अर्थात यह मन अभ्यास और वैराग्य से वश में आता है। एक संयमी, शक्तिशाली और स्वस्थ मन को निश्चित ही भगवान का दिव्य वरदान,हर कर्म में उल्लास एवं परमशांति मिलती है।

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