Friday, December 31, 2010

प्रभु भक्ति में आत्मसमर्पण के अतिरिक्त और कुछ भी शेष नहीं है। यदि ईश्वर से कुछ माँगने की इच्छा रख के प्रार्थना की जाती हैं तो वह ईश्वर प्रेम नहीं पाखंड ही कहलाता हैं। भक्ति में कुछ लेने की इच्छा नहीं रह जाती बल्कि सभी कुछ भगवान पर न्यौछावर करने की अभिलाषा होती हैं। यही सच्चा प्रभु प्रेम हैं।

Thursday, December 30, 2010

"सादा जीवन उच्च विचार" ही जीवन का सिध्दांत होना चाहिए। जीवन में समय प्रबंधन नितांत आवश्यक हैं, समय बहुत ही कीमती हैं इसका एक भी क्षण व्यर्थ न गवाएँ।
समय के साथ ही पैसे की एक पाई भी व्यर्थ न जाए इस बात का ख़्याल रखें क्योंकि पैसे की बरबादी यानि श्रम की बरबादी और पैसे की बरबादी अंत में सभी विपत्तियों को दावत देती है।
इसके साथ-साथ इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी बहुत ही जरूरी हैं, जब आवश्यकता हो तभी खाएँ, मनुष्य इस प्रवृति का जानवर हैं कि भूख न होने पर भी उसे जीभ के चटोरेपन के कारण कुछ न कुछ खाने की आदत हैं। अनावश्यक आकर्षण एवं कामुकता से भी स्वयं को बचा कर रखें।

Wednesday, December 29, 2010

आध्यात्म का सच्चा अर्थ हैं अपने भीतर के ईश्वर को जाग्रत और जीवंत बनाना और जो तभी संभव हैं जब अंर्तमुखी बन अपने मन में ईश्वर ने जो भी देवत्व गुण दिए हैं उन्हें विकसित करना और जो असुरी प्रवृतियाँ हैं उनके संहार के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए।

Tuesday, December 28, 2010

यह नितांत आवश्यक हैं कि मन में जो भी विचार उठे वह इस स्तर के हो कि आपको प्रेरित करें बजाय इसके कि आपको गर्त में धकेल दें इसी लिए सदा सद्‌विचार ही रखें और सदैव सबका भला करें यदि भूल से भी किसी के प्रति राग-द्वेश का भाव जागे तो उसे त्याग कर ईश्वर में मन लगाए एवं स्रष्टा के बनाए इस संसार की प्रंशसा कीजिए।

Monday, December 27, 2010

हम मनुष्य पशु-पक्षियों को देख बहुत कुछ सीख सकते हैं, पशु-पक्षी इतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं जिसमें वह स्वयं समा सके एवं उतना ही दाना चुगते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता हैं, वह इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि स्रष्टा के साम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं, जब जिसकी जितनी जरूरत हैं आसानी से मिल जाता है,तो फिर संग्रह क्यों किया जाए? इसी प्रकार यदि हम भी उतना ही लें जिसकी आवश्यकता हैं और संग्रह की मनोवृति त्याग दें तो हम भी सुखी होगें और बाकी सब भी। अनावश्यक कलह की स्थिति अनावश्क संग्रह के कारण ही पनपती हैं इस बात को सदा ध्यान में रखें।

Friday, December 24, 2010

आँखे भगवान की सबसे बड़ी नियामत हैं। आँखो के होने के कारण ही हम इस परमपिता की उत्कृष्ट कृतियों को देख सकते हैं। परन्तु जो व्यक्ति आँखे होने पर भी अदूरदर्शी हैं यानि जीवन जैसे अमूल्य हीरे को काँच समझ कर जी रहा हैं और भविष्य के उज्ज्वल सपने देख उनका निर्माण नहीं कर सकता वह परमात्मा की दी हुई इस अमूल्य निधि को गवाँ रहा हैं।

Thursday, December 23, 2010

मनुष्य इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड का अल्प स्वरूप है। परमात्मा का अंश है, परन्तु इस बात से कितना अनभिज्ञ हैं। अपनी ही मृग मरीचिका में जीवन जी रहा है, पेट और प्रजनन के आगे उसे कुछ नहीं सूझता, वह जीवन की सबसे बड़ी जरूरत ईश्वर को ही भुला बैठा जिसने उसे जीवन जीने की सभी नियामतें प्रदान की। मनुष्य ने अपनी एक ऐसी दुनिया बना ली जिसमें ईश्वर का कोई स्थान नहीं और पैसा ही सब कुछ है, पर मनुष्य को यह बात समझनी ही होगी की ईश्वर प्रेम और भक्ति से बड़ा जीवन में और कुछ भी नहीं है।

Wednesday, December 22, 2010

ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, याचना नहीं। भगवान से जीवन के हर संघर्ष से लड़ने की शक्ति माँगिए, जब भी किसी दुविधा में हो तो ईश्वर से मदद लीजिए क्योंकि वह तो परमपिता हैं और हम उनकी संतान परन्तु याचक मत बनिए, यदि कुछ माँगना ही हैं तो आत्मबल की कामना कीजिए, इसी आत्मबल के सहारे और ईश्वर में सच्ची आस्था रख आप जीवन की किसी भी परीक्षा से जूझ सकते हैं।

Tuesday, December 21, 2010

दान पुण्य का सौदा हैं, घाटे का नहीं, यदि किसी दीन-दुखी को हमारी सेवा-सश्रुणा से लाभ पहुँचता है तो उसकी दुआओं का असर कई गुणा होकर हम तक पहुँचता हैं। ईश्वर से तो कुछ भी छिपा नहीं हैं,वह सब देखते हैं और दीन-दुखियों की सहायता करने वालो को अपने ढंग से पुरस्कारित भी करते हैं।

Monday, December 20, 2010

जो काम अभी हो सकता हैं, उसे घंटे भर बाद करने की मनोवृति आलस्य की निशानी है।एक-एक कार्य हाथ में ले निपटाते जाए जिससे समय भी सुचारू रूप से बीत जाए और काम भी समय पर हो जाए। अतः ध्यान रखें कि जो कार्य अभी हो सकता है, उसे कल पर न छोड़े और तत्काल करें।

Saturday, December 18, 2010

ईश्वर को सबसे प्रिय हैं दुःख और इसे संभाल कर रखने के लिए वह देते हैं केवल अपने सबसे प्रिय भक्तों को क्योंकि ज्यादातर लोग कष्ट को मजबूरी की तरह सहते हैं। कुछ ही भक्त हैं जो यह जानते हैं कि दुख हमारी आत्मा को पवित्र करने की प्रक्रिया हैं एवं नितांत आवश्यक हैं। जिस प्रकार सोने को आग में तपना जरूरी है, उसी प्रकार दुख ईश्वर की धरोहर हैं और वह इसलिए मिलते हैं ताकि दुख मिलने के बाद भी यदि भक्त के आनंद, उल्लास और उत्साह में कभी कोई कमी न आए तो वही सच्चा भक्त हैं।

Thursday, December 16, 2010

"करमण्येवाधिकारस्ते" अर्थात भागवतगीता में कहा गया हैं कि कर्म पर अपना अधिकार है,फल पर नही। इस बात को जो समझ गया वह व्यक्ति जीवन में कभी निराश या उदास नहीं होता और असफलता मिलने पर भी अपनी हिम्मत टूटने नहीं देता, वह तो सदा ही बढता रहता हैं और अंततः सफलता उसे ही प्राप्त होती हैं।

Wednesday, December 15, 2010

विद्‌वान ऋषि कहते है- "तद्‌विज्ञाने न परिप यन्ति धीरा आनंद रूपमर्भृतम्‌।" अर्थात ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अंतःकरण में विराजमान उस आनंदरूपी ब्रहं का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों से भी परम-ज्ञानी हो जाते हैं। यानि सम्पूर्ण ब्रहांड का ज्ञान परमात्मा के रूप में हमारे भीतर हैं, केवल खोजने की आवश्यकता हैं।

Tuesday, December 14, 2010

परमात्मा’ शब्द में ही जीवन का सत्य छिपा हैं, जिसने ईश्वर को नहीं समझा उसने जीवन से कुछ नहीं सीखा, जो व्यक्ति यह महसूस करता हैं कि हर पल हर क्षण वह ईश्वर को ही स्मरण करता हैं, उसकी कोई भी खुशी प्रभु बिन अधूरी है, उसे जिसे जीवन का कोई सुख परमात्मा के नाम से जुदा नहीं कर सकता और जो हरेक प्राणी में उस परम तत्व को ही ढूढ़ता हैं वही ईश्वर को समझ सकने का दम भर सकता हैं, केवल आडम्बर और दिखावा कर प्रभू को पाना असंभव हैं। भगवान भक्त का प्रेम देखते हैं, उसके पूजा-अर्चना का तरीका चाहे जैसा हो,चाहे साधनों का आभाव ही क्यों न हो, भगवान चढावे के रूप में भक्त के आँखो से बहे प्रेम भरे अश्रुओं को भी ग्रहण करते हैं।

Monday, December 13, 2010

जो मनुष्य जीवन की कठिनाइयों से डर कर पलायन का मार्ग अपनाए वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं हैं, परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही इतना सर्मथ दिया हैं कि वह हर परिस्थिति से जूझ सके और यह ही प्रकृति का नियम भी हैं कि जो गलता हैं वही उगता हैं। प्रसव पीड़ा के बाद ही संतान सुख की प्राप्ति होती हैं, कच्चे मिट्टी के बर्तन पानी की एक बूंद भी सहन नहीं कर पाते परन्तु जो बर्तन आग की तपिश में पक कर तैयार किए जाते हैं उनकी उपयोगिता और शोभा और स्थिरता बनी रहती हैं।पूर्ण मनुष्य बनने के लिए जीवन रूपी भट्टी में तपना ही होगा, और ईश्वर को भी स्मपूर्ण मनुष्य स्वीकारणीय हैं।

Friday, December 10, 2010

"Silence is Golden". Sometimes what words can't say silence can. Silence is the sound of God, listen carefully what He wants to say in Silence.Sometimes Silence can calm you much better than soothing music.Silence can nurture relations which words sometimes cannot.Silent prayers are always answered by God.In essence Silence is not only golden it's magical.

Thursday, December 9, 2010

यदि मनुष्य स्वयं को सुधारना चाहे तो लोक से लेकर परलोक तक सुधार का मौका होता हैं पर जरूरत है पहल करने की, यदि मनुष्य एक कदम ईश्वर की ओर बढाता है तो ईश्वर हज़ारो हाथो से उसका स्वागत करते हैं। यह बात हमें सर्वदा स्मरण रहनी चाहिए कि आध्यात्म का लक्ष्य केवल आत्मकल्याण एवं मोक्ष प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि स्वयं सत्‌मार्ग पर चल औरों को भी प्रेरित करना हैं।

Wednesday, December 8, 2010

बच्चे अपने माता-पिता को उनके हाल पर छोड़ सकते हैं परन्तु माँ-बाप ऐसा कभी नहीं कर सकते, उन्हें तो हर हाल में अपने बच्चों की ही चिन्ता सताती हैं। बच्चे स्वार्थी हो अपनी अलग दुनिया बसा सकते हैं पर माता-पिता के लिए तो उनकी दुनिया उनके बच्चे ही होते हैं। इसी तरह हम सभी परमपिता की संतान हैं और ईश्वर हमें सदैव स्मरण रखते हैं।

Tuesday, December 7, 2010

जीवन में यदि कभी मन बहुत घबरा जाए और गल्त विचारो से उद्विघ्न हो जाए तो बजाय इधर-उधर भागने के ईश्वर में मन लगाओ आप देखेगें मन न केवल शांत हो जाएगा और उसमें प्रभु भक्ति द्वारा उत्पन्न विचारो से हमें प्रेरणा भी मिलेगी। यानि प्रभु नाम एक कवच हैं जो हमें जीवन के उतार-चढाव से सुरक्षित रखता हैं।

Monday, December 6, 2010

जीवन में कितनी ही असफलताएँ क्यों न आएँ परन्तु एक न एक मार्ग ऐसा अवश्य होता है जहाँ रोशनी की नन्हीं किरण टिमटिमाती रहती हैं और वह रास्ता हैं प्रभु में आस्था का परन्तु इसका भावार्थ यह नहीं कि जब जीवन में मुश्किल आए तभी ईश्वर को याद करें यहाँ कबीर का दोहा बहुत ही सटीक हैं कि दुख में सिमरन सब करे सुख में करे न कोई, जो सुख में सिमरन करे तो दुख काए को होए॥

Friday, December 3, 2010

God please make my life so meaningful that it is only meant for others as I have realized that you have given me this life so as I make other's life worth living and can help others.

Thursday, December 2, 2010

पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, नदियाँ एवं जलाश्य अपना पानी स्वयं नहीं पीते, सूर्य-चन्द्रमा अपने प्रकाश और शीतलता से औरों को सनिग्ध करते हैं उसी प्रकार मनुष्य का जन्म भी इस धरती पर परोपकार के लिए हुआ है। भगवान जब मनुष्य के कर्मो का लेखा-जोखा करता हैं तब इसी बात का आकलन किया जाता हैं कि मनुष्य ने अपने जीवन का कितना भाग परोपकार में बिताया हैं, यदि मनुष्य ने सौ झूठ बोलकर भी किसी की भलाई की हो तो वह परमपिता के अनुसार क्षमाशील हैं। जितना संभव हो अपना जीवन परोपकार में लगाएँ क्योंकि अपने लिए तो पशु भी जीते है, इंसान वही हैं जो औरों के लिए जिए।

Wednesday, December 1, 2010

प्रभु नाम एक अनुपम निधि हैं, जो कि खर्चने से और बढ़ती है, खर्चने का मतलब इससे हैं कि हम जितना ही प्रभु नाम लेगें और उसका प्रचार करेंगे वो चौगुना होकर हमें प्राप्त होगा और जीवन के सबसे बड़े सत्य से हमें अवगत करवा देगा कि ईश्वर ही हमारे सबसे बड़े सम्बन्धी हैं और अंनत तक केवल उनके ही साथ हमारा सम्बन्ध बना रहेगा बाकी सभी दुनियावी रिश्ते इसी दुनिया में समाप्त हो जाएँगे।