Friday, December 31, 2010

प्रभु भक्ति में आत्मसमर्पण के अतिरिक्त और कुछ भी शेष नहीं है। यदि ईश्वर से कुछ माँगने की इच्छा रख के प्रार्थना की जाती हैं तो वह ईश्वर प्रेम नहीं पाखंड ही कहलाता हैं। भक्ति में कुछ लेने की इच्छा नहीं रह जाती बल्कि सभी कुछ भगवान पर न्यौछावर करने की अभिलाषा होती हैं। यही सच्चा प्रभु प्रेम हैं।

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