Friday, May 28, 2010

God has given us everything in Life, can we even repay a single bit of it?
Yes we can by Thanking Him every second of our life.
But even that is very less as compared to the mercy and blessings The Almighty showers on us all the time by providing us all that we need without asking!

Thursday, May 27, 2010

जीवन में निराशा के कितने ही काले बादल क्यों न छा जाए, परन्तु कहीं न कहीं आशा की नन्ही किरण अवश्य टिमटिमाती रहती हैं, मनुष्य की सहायता करने भगवान किसी न किसी रूप में जरूर आते हैं।परन्तु परमात्मा भी उन्ही की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं, यानि जो सब रास्ते बंद होने पर भी हार नहीं मानते एवं निरन्तर ईश्वर पर भरोसा रख संघर्ष करते रहते हैं।

Wednesday, May 26, 2010

देह का बंधन केवल संसार से हैं, देही (आत्मा) का बंधन न केवल देह से हैं वरन परमात्मा से भी अटूट बंधन हैं जो जन्म जन्मान्तरो तक निश्चल रहता है, संसार छूटते ही देह के सभी बंधन यहीं रह जाते हैं परन्तु देही का बंधन ईश्वर से कभी नहीं टूटता।

Tuesday, May 25, 2010

भक्त प्रह्लाद के कथनानुसार किसी को भी ईश्वर का नाम रटाया या जपाया नहीं जा सकता, यह तो ईश्वर की असीम अनुकम्पा होती हैं कि किसी मनुष्य के मुख से ईश्वर का नाम निकलता हैं, अतः भगवान के नाम का जप भी उनकी कृपा बिना असंभव हैं।

Monday, May 24, 2010

हर मनुष्य के अतःकरण के भीतर ईश्वर विद्यमान हैं एवं इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि जो भी व्यक्ति गल्त काम करने लगता हैं उसे उसका अतःकरण अवश्य धिक्कारता हैं क्योंकि वह उसकी आत्मा की पुकार होती हैं और आत्मा परमात्मा का ही तो स्वरूप हैं, तो जब भी किसी काम में दुविधा हो तो अपने अतःकरण की पुकार अवश्य सुनें एवं उसका अनुसरण करें।

Friday, May 21, 2010

जिस तरह ईश्वर स्वयं सबसे सुन्दर हैं उसी प्रकार उनकी बनाई कोई भी कृति कुरूप कैसे हो सकती हैं, अर्थात इस संसार में कोई व्यक्ति या पदार्थ असुंदर नहीं हैं, यह तो हमारा दृष्टिकोण हैं जो किसी भी वस्तु को सुंदर अथवा कुरूप बना देता हैं। सृष्टा ने इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अतिसुंदर एवं स्मपूर्ण रचा हैं, अपनी किसी भी कृति को अपूर्ण छोड़े बिना।

Thursday, May 20, 2010

आज के इस भौतिकवादी युग में भावनाशीलता को अपनाना ही समझदारी हैं, अल्पबुध्दि वाला भावनाशील व्यक्ति भी ईश्वर को पा सकता हैं, कबीर, रैदास जैसे संतो का जीवन इसका जीवंत उदाहरण हैं।

Tuesday, May 18, 2010

अंतःकरण की पवित्रता ही स्वर्ग एवं मलिनता ही नर्क हैं, यदि पाप से बचना हो,आनंद की अनुभूति पानी हो, देवत्व का अनुभव करना हो तो अंतःकरण को परिष्कॄत करना ही होगा। स्वर्ग और नर्क जाना अपने ही हाथ हैं, यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम अपने लिए क्या तय करते है एवं क्या कदम उठाते हैं।

Monday, May 17, 2010

यदि किसी भी काम को अधूरे आत्मविश्वास के साथ किया जाता हैं तो उस काम की करूपता मन की उदासी एवं अधूरेपन के रूप में झलक ही पड़ती हैं, मन की उदासी कहीं बाहर से नहीं आती, किसी घटना से संबंधित नहीं होती। यह तो एक प्रकार का आत्मविश्वास हैं, जिसे मनुष्य अपने स्वभावानुसार घटा-बढ़ा सकता हैं।

Friday, May 14, 2010

यदि भगवान पर अपना प्रेम भाव न्यौछावर करना हो तो भक्त को उनसे यह निवेदन करना चाहिए कि हे भगवन!"मैं आपका हूँ, मेरा सम्पूर्ण जीवन आपके श्री चरणों में अर्पित हैं"। प्रेम के यह दो अक्षर आराध्य को भावविभोर कर सकने में सक्षम हैं।

Thursday, May 13, 2010

मनुष्य के जीवन पर प्रथम अधिकार भगवान हैं, द्वितिय मात्रभूमि का, तीसरा माता-पिता एवं गुरू का एवं फिर स्वयं का, क्योंकि भगवान परम पिता हैं, उन्होंने हमें यह बहुमूल्य मानव जीवन प्रदान किया हैं, एवं मातृभूमि ने अपने उपजे अन्न से हमारा पोषण किया हैं, इस धरती पर हमें जन्म देने वाले माता-पिता के भी हम ऋणी हैं एवं गुरू जिन्होंने हमारा मार्ग प्रशस्त किया हैं, हमें ज्ञान प्रदान किया है, उनका भी हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार हैं।

Wednesday, May 12, 2010

सब कुछ तो इस परम पिता परमेश्वर ने बनाया हैं, उसका बँटवारा करना न केवल बेवकूफी हैं अपितु प्रकति के विरूध्द भी हैं, इस सम्पूर्ण विश्व वैभव की उपयोगिता इसी में हैं कि सब मिल-बाँट कर खाएँ। संसार सब का हैं। अतः जितना अपने लिए आवश्क हैं उतना उपयोग में लाएँ एवं शेष दूसरों के लिए छोड़ दे इसी में दूरदर्शिता है।

Tuesday, May 11, 2010

अपने पर विश्वास यानि आत्मविश्वास,अपने आत्मदेव की अपार शक्तियों पर विश्वास यही हमें जीवन में सफलता एवं महानता की ओर ले जाता हैं। आत्मविश्वास एक ऐसी ज्योति हैं जो मनुष्य जीवन की नैया को भँवसागर के पार पहुँचा देती हैं।

Monday, May 10, 2010

ज्ञान की उपयोगिता तभी हैं यदि वह सचिदानंद तक पहुँचने का मार्ग प्रदर्शित करे। नहीं तो ज्ञान का कोई अर्थ नहीं एवम ईश्वर से जो पृथक करें ऐसा ज्ञान व्यर्थ हैं।

Thursday, May 6, 2010

भगवान ज्ञानी को एकत्व की मुक्ति प्रदान करते हैं परन्तु अपने भक्त को ईश्वर चार तरह की मुक्ति प्रदान करते हैं, साष्टि, सालूक, सारूप और सामीप्य, यानि परमपिता अपने भक्त को अपने लोक में रहने का अधिकार प्रदान करते हैं, वे भक्त को अपना स्वरूप एवं सान्निध भी प्रदान करते हैं।

Wednesday, May 5, 2010

हमारा प्रेम, अनुरक्ति हो तो केवल अपने अंदर बैठे परमात्मा के अंश से हो। परमात्मा विभिन्न रूपों में हमारे आस-पास मौजूद हैं। हमारे प्रेम, सौहाद्र का प्रतिफल हममें विद्यमान परब्रह्म परमात्मा भी हमें महत्व पूर्ण वरदान के रूप में देंगे। वह हैं जीवन के हर कार्य, पुरूषार्थ में योगक्षेम का वहन।

Tuesday, May 4, 2010

Someone has said correctly that "Past is like cancelled cheque, future like promissory note and present like ready cash" so instead of keep thinking about past or future make your present the best because that is still in your hand. Also we know " A bird in hand is better than two in a bush".
सोने का खरा होना आग पर तपने पर ही प्रामाणित होता हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी उपासना की अग्नी में तप कर ही प्रज्वलित होता हैं।

Monday, May 3, 2010

हर मनुष्य जो भी इस दुनिया में आया हैं उसे अपने कर्तव्य की पूर्ति करनी हैं,एवं कर्तव्यपालन का आनन्द ही वास्तविक हैं। प्रतिकूलताओं और कर्तव्य पालन का तो चोली दामन का साथ हैं, परन्तु प्रतिकूलताएँ भी अनुकूलताएँ बन जाती हैं कर्तव्यपालन के आनन्द से।