Tuesday, May 18, 2010

अंतःकरण की पवित्रता ही स्वर्ग एवं मलिनता ही नर्क हैं, यदि पाप से बचना हो,आनंद की अनुभूति पानी हो, देवत्व का अनुभव करना हो तो अंतःकरण को परिष्कॄत करना ही होगा। स्वर्ग और नर्क जाना अपने ही हाथ हैं, यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम अपने लिए क्या तय करते है एवं क्या कदम उठाते हैं।

1 comment:

  1. wonderful thought!I was expecting a comment on the poem written for Prem Uncle.

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