Sunday, January 31, 2010

साधना से ही हमारे चिन्तन, चरित्र और व्यवहार में उत्कृष्टता आती हैं ,साधना से ही साधक के जीवन में वसन्त का आगमन होता है, नवसृजन के अंकुर फूटते है, जीवन संवरता है एवं परमात्मा रूपी लक्ष्य की प्राप्ति होती हैं।

Saturday, January 30, 2010

अनन्य का अर्थ है- अन्य का अन्य न रहना,अनन्य हो जाना यानि परमात्मा से एकाकार होने के लिए आवश्क है अनन्य भक्ति जिसमें की भक्त तल्लीन हो जाता है, प्रभु भक्ति में एवं परमात्मा में एकात्मा का अनुभव करता है।

Friday, January 29, 2010

जीवन में आशा रखना यानि आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर होना। आशावादी मनुष्य को हर जगह परमात्मा की मंगलदायक कृपा बरसती दिखाई देती है।अतः निराशा त्याग कर स्वयं पर आस्था रखने वाले मनुष्य को ही सच्ची शांति, सुख एवं संतोष की प्राप्ति होती हैं।

Thursday, January 28, 2010

God has given us so much in life that even if we thank Him every minute and every second in our life it is less so live helping others and thanking God for everything He has given us.
हर पल हर क्षण परमपिता का ध्यान करें, हर पल हर क्षण ईश्वर को धन्यवाद दें,हर पल हर क्षण जीवन को भरपूर जीएँ, हर पल हर क्षण मानव मात्र की सेवा में लगाएँ, क्या पता कि यह पल यह क्षण फिर आए न आए।

Wednesday, January 27, 2010

पारब्रह्म परमेश्वर हमारे भीतर ही तो हैं परन्तु हम कस्तूरी मृग की भांति ही सुगंध को बाहर खोजते रहते हैं, पर परम सत्य तो यह है कि परमात्मा की सुगंध अर्थात स्वयं परमात्मा हमारे भीतर ही सम्माहित हैं। अतः मृगतृष्णा में न भटके, अपने आराध्य को अपने अंतःकरण में खोजें।

Tuesday, January 26, 2010

हम सबके अंदर भगवान गुप्त रूप में निवास करते हैं। जो समझदार है, ज्ञानी हैं, भगवत्‌ स्वरूप को समझते हैं,वे यह मानते है कि हम सबके अंदर स्थित भगवान ही वह परमप्रकाश की ज्योति है,जिसे हम बाहर परमेश्वर कहकर पूजते हैं। परन्तु इसके विपरीत भ्रमित, अज्ञानी, मोह में उलझे व्यक्ति यह सोचते है कि हम ही सही सोचते है,बाकी सभी गल्त हैं;यहाँ तक की ये भगवान की भी(जिन्होंने हमें यह अमूल्य जीवन प्रदान किया है) उस परब्रह्म परमेश्वर की हर पल अवहेलना करके व्यर्थ के कर्म करते रहते हैं। अतः ऐसे अज्ञानी एवं भ्रमित लोगों की संगत नहीं रखनी चाहिए और हर क्षण भगवान का स्मरण करना चाहिए।

Monday, January 25, 2010

Take a moment to count all your blessings,they have been given by God to you in return of your good actions and deeds for others,so keep up the good work and leave all the rest to God.
भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा हैं- न हि कशिचत्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌।
अर्थात किसी भी क्षण मनुष्य बिना कर्म किए नहीं रह सकता। यानि कि कर्म जीवन की सबसे समर्थ और सार्थक परिभाषा है। हर रोज़ हम जीवन के साथ-साथ कर्म(कार्य) भी करते है। कोई भी क्रिया(कर्म) स्वयं में पाप या पुण्य नहीं होती,इसे यह दरजा उन भावों से मिलता है, जो इसके पीछे सक्रिय है।

Sunday, January 24, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा है- अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥
अर्थात यह मन अभ्यास और वैराग्य से वश में आता है। एक संयमी, शक्तिशाली और स्वस्थ मन को निश्चित ही भगवान का दिव्य वरदान,हर कर्म में उल्लास एवं परमशांति मिलती है।

Saturday, January 23, 2010

प्रभु समर्पित जीवन सभी का होना चाहिए। नित्य-नियमित जितना समय मिले,प्रभु को स्मरण अवश्य करें। थोड़ी देर की प्रार्थना-जप-ध्यान-भावपूर्वक गायत्री मंत्र या ओंकार का नाद हमारे चौबीस घंटे ऊर्जा एवं उल्लास से भर देते है।

Friday, January 22, 2010

जीवन एक ऐसा संग्राम है जिसे भगवान को स्मरण करते हुए ही जीता जा सकता है। निरंतर हर क्षण उस परम पिता को स्मरण करते हुए ही जीवन व्यतीत करें।

Thursday, January 21, 2010

विविध धर्म-सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र का भाव सन्निहित है
हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)

यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)

शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)

पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान्‌ है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।

दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्‍)

जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।

बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)

कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।

ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।

१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)

११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)

१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
 
 

Wednesday, January 20, 2010

परमात्मा एक महाशक्ति एवं महाऊर्जा है जो सम्पूर्ण जगत को संचालित एवं नियंत्रित करती है और घट-घट में, कण-कण में एवं छोटी से छोटी हर कोशिका में विद्यमान है। अतः यह कहना अतिशोयक्ति न होगी कि इस स्मपूर्ण ब्रह्मांड में हर जगह उस परमपिता की ऊर्जा स्ममाहित है।

Tuesday, January 19, 2010

माता-पिता इस संसार में सर्वोपरि है। माता-पिता धरती पर उस परम पिता परमेश्वर का जीवंत रूप है।
माता-पिता सदैव हमारे मंगल की ही कामना करते है, संतान के सदा ही हितैषी रहते है। अत: ईश्वर ने माता-पिता के रूप में हमे अपनी छवि प्रदान की है, उनकी कद्र एवं सेवा हर संतान का परम कर्तव्य है।

Monday, January 18, 2010

अहं का विसर्जन ही भक्ति है। भक्ति ही हमें सिखाती है कि यदि आहुति ही देनी हो तो हृदय रूपी अग्नि कुंड में अहं भाव की आहुति दो। भक्ति ही परम पिता परमेश्वर से मिलने का एकमात्र उपाय है।

Sunday, January 17, 2010

Let us all dwell deep into us and we'll be amazed to find within ourselves the Almighty for whom we are searching everywhere but could not trace Him anywhere!
ईश्वर माता-पिता के भांति ही हमारी देख-रेख करते है, जिस प्रकार माता-पिता को यह ज्ञान होता है कि उनकी संतान की क्या इच्छा है,उसी प्रकार ईश्वर हमारी अभिलाषा से अनभिज्ञ नहीं है,परन्तु परमपिता परमेश्वर सदा ही न्याय करते है एवं हमारे कर्मानुसार ही हमें फल देते है।

Saturday, January 16, 2010

गृहस्थ एक तपोवन है,जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है ।
_ आचार्य श्रीराम शर्मा

Friday, January 15, 2010

भागवत गीता में कहा गया है कि भगवान को प्राप्त करने के तीन सरल उपाय हैं सुमिरन, श्रवण और संकीर्तन- सुमिरन का अर्थ है कि निरंतर प्रभु नाम का जाप करना, श्रवण यानि जहाँ प्रभु की गाथा हो रही हो उसे कानो द्वारा ग्रहण करना एवं संकीर्तन का अर्थ है प्रभु नाम का गुणगान करना और प्रेम से अपने आराध्य को पुकारना।

Thursday, January 14, 2010

भागवत गीता में कहा गया है - अशांतस्य कुतः सुखम्‌ अर्थात अशांत व्यक्ति को सुख कहाँ मिलेगा! यानि शांत प्रवृति अपनाकर ही ईश्वर की शरण में जाना उपयुक्त है।

Wednesday, January 13, 2010

परम पिता परमेश्वर के प्रति सदा हमारे मन में कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। उसने जितना दिया है उसमें सन्तुष्ट रहना चाहिए,न कि एक याचक की भातिं माँगते ही रहना चाहिए,अगर कुछ माँगना ही है तो केवल ईश्वर से उनकी भक्ति एवं प्रेम की ही याचना करें।

Tuesday, January 12, 2010

ॐ भूर्भवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात।
उस प्राण्स्वरूप,दु:खनाशक,सुखस्वरूप,श्रेष्ठ,तेजस्वी,पापनाशक,देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुध्दि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
 
गायत्री मंत्र में धियः अर्थात सद्‌बुध्दि की प्रार्थना की गई है, सद्‍बुध्दि का अर्थ है ऐसी बुध्दि जो हमें उस परम पिता परमेश्वर की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। आत्मा को परमात्मा से मिलाप के लिए सद्‍बुध्दि की परम आवश्यकता है, अतः गायत्री परमात्मा की समीपता का सबसे बड़ा मंत्र है।

Monday, January 11, 2010

धनेन किं यो न ददति याचके,
बलेन किं यश्च रिपुं न बाधते।
श्रुतेन किं यो न च धर्ममाचरेत,
किमात्मना यो न जितेन्द्रियो भवेत्‌॥
अर्थात उस धन से क्या लाभ ,जो याचक को नहीं दिया जाता, उस बल से क्या,जो शत्रु को रोक न सके,उस ज्ञान से क्या लाभ, जो आचरण में न आ सके और उस आत्मा से क्या, जो जितेंद्रिय न बन सके।

Saturday, January 9, 2010

ॐ का नाद ब्रह्म नाद है, ॐ का स्वर परमपिता परमेश्वर का स्वर है,ॐ का निरंतर जाप ईश्वर की ओर बढ़ने का साधन है। ॐ हमारे भीतर एक नवशक्ति का संचार करता है। ॐ की ध्वनि भी भगवान के नाम की तरह ही असीम है।

Friday, January 8, 2010

परमपिता की विभूतियाँ _ पृथ्वी,जल, वायु, आकाश, सूर्य, रात-दिन, औषधियाँ-वनस्पतियाँ, गायें (समस्त प्राणिजगत) सभी पर माधुर्य एवं अमृतत्व की वर्षा करें। सबका कल्याण हो,सभी दिव्य और पवित्र जीवन जीएँ। _ यजुर्वेद १३/२७-२८

Thursday, January 7, 2010

वेदमूर्ति तपोनिष्ठ श्रीराम शर्मा आचार्य के शब्दों में स्वर्ग-नरक हमारे चिंतन एवं दॄष्टिकोण का एक तरीका है। यदि आपको दुनिया में अच्छाई दिखाई पड़ती है। कण-कण में भगवान दिखाई पड़ता है। इसी का नाम स्वर्ग है।

Wednesday, January 6, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- मामनुस्मर युध्य च- मेरा(प्रभु का) निरंतर स्मरण करते हुए युध्द करो, यह निश्चित है कि तुम विजय को प्राप्त होगे।
अर्थात भगवान का स्मरण निरन्तर करते हुए मनुष्य को अपनी विपरीत परिस्थितों से जूझता रहे एवं जीवन रूपी संघर्ष में निरन्तर ईश्वर को याद करते हुए संग्राम करता रहे तो वह निश्चित ही विजयश्री को प्राप्त होता है।

Tuesday, January 5, 2010

भोग और विलास में डूबा हुआ व्यक्ति ये भूल जाता है कि भोग मायाविनी है,अर्थात अपने मोहपाश में जकड़ने वाला है एवं कभी न अंत होने वाला है,यानि अच्छे से अच्छा पहनने, अच्छे से अच्छा खाने पर भी भोग की इच्छा समाप्त नहीं होती बल्कि बढ़ती ही जाती है ।

Monday, January 4, 2010

अपनेआप में आस्था रखने वाला मनुष्य ही आस्थावान कहलाता है, इसका मूल कारण है कि आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप है, अतः जिसकी आस्था स्वयं (आत्मा) में न हो,वह परमात्मा में आस्था रख सकता है, ऐसा सोचना व्यर्थ है।

Sunday, January 3, 2010

अंहकार मनुष्य को प्रेरित करता है कि अपने को महत्वपूर्ण सिध्द करें परन्तु वह यह बात भूल जाता है कि जो इस सम्पूर्ण सृष्टि एवं ब्रह्माड में सबसे महत्वपूर्ण है यानि की स्वयं परमात्मा ने कभी ऐसी चेष्टा नहीं की।