Friday, July 30, 2010

Let the goodness of helping others shine upon you and the day is not far when you'll shine like a bright star in this world and beyond that !!

Thursday, July 29, 2010

Live your life with faith in God and you will see that how it becomes more easy to live with faith in Him as Faith gives us the courage to withstand all the odds that happen in our life and surrender to Him for all your deeds.

Wednesday, July 28, 2010

हर मनुष्य को एक सीमित एवं और अन्जान अवधि का जीवन रूपी वरदान ईश्वर से मिला हैं जिसे सुन्दर से सुन्दर ढंग से व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को उलझन और अशांति से दूर ही रहना चाहिए और सदा विवेकपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे स्वयं तो अपना जीवन अच्छे से बिताना ही चाहिए साथ ही साथ दूसरों की बेहतर जीवन बीताने में सहायता भी करनी चाहिए तभी उसके जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा।

Tuesday, July 27, 2010

जो मनुष्य पुरूषार्थी है उसे इसका फल अवशय ही मिलता हैं एसा विधि का विधान है जिसे ईश्वर को भी मानना ही पड़ता है क्योंकि जो नियम ईश्वर ने स्वयं बनाए हैं उनका पालन करना उनके लिए भी परम आवश्यक हैं यानि सम्पूर्ण सृष्टि नियम की धुरी पर ही टिकी हैं इसीलिए ईश्वर कोई अपवाद न रखते हुए उसका पालन दृढ़ता के साथ स्वयं भी करते हैं।

Monday, July 26, 2010

ईश्वर यदि हमें कुछ संदेश देना चाहते तो केवल यही कहते " मेरी सेवा मत करो, गरीबों और दीनो की सेवा-सश्रुषा करो, क्योंकि जब दुखी-गरीब प्रसन्न होते हैं तब मैं प्रसन्न होता हूँ, इसलिए यदि मेरी सच्ची पूजा करनी हो तो किसी का दिल न दुखाओ, सभी से प्रेम करो एवं सदैव सबका भला करो।

Saturday, July 24, 2010

सच्चा आध्यत्मिक व्यक्ति अखण्ड आस्तिक होता हैं, वह हर कण में व्याप्त ईश्वर के सच्चे दर्शन करता हैं,उसे ज्ञात है कि ईश्वर हर प्राणी, हर फूल-पत्ते, हर मनुष्य में सदैव मौजूद हैं इसी कारण वह कोई भी काम गल्त कर ही नहीं सकता, ईश्वर का आस्तित्व मान कर भी जो व्यक्ति दुष्कर्म करता हैं एवं दूसरों के प्रति दुर्भाव रखता है, वह तो उस नास्तिक से भी गया गुज़रा हैं जो ईश्वर के आस्तित्व में विश्वास नहीं रखता और ऐसे आस्तिक बनाम नास्तिक को सौ वर्ष की तपस्या के बाद भी माफ नहीं किया जा सकता।

Friday, July 23, 2010

Light is Knowledge, Ignorance is Darkness. God is Light, When we move towards Him we let go of ignorance, thereby darkness and our soul is illuminated from within and life becomes Lighted.

Thursday, July 22, 2010

"जीवतं सफलं तस्य, य़ः परार्थोद्यतः सदा" अर्थात जीवन उसी का सफल और सार्थक हैं जो सदा परोपकार में संल्गन रहता हैं, परोपकारी को किसी चीज़ का भय नहीं रहता न पाप का और न ही पतन का, उसे तो केवल लोक-परलोक दोनो में ही जयजयकार ही मिलती हैं एवं परोपकारी व्यक्ति सदा ही पूज्यनीय हैं।

Wednesday, July 21, 2010

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं कि "आत्मा की आत्मा का बंधु और आत्मा ही आत्मा का शत्रु हैं"अर्थात हम स्वयं ही अपने मित्र और स्वयं ही अपने शत्रु हैं,कोई दूसरा हमारा मित्र या शत्रु नहीं हैं, जितना ही हम अपने अंदर के परमतत्व के अनुकूल होते जाएँगे, उतना ही हमारा जगत के प्रति और जगत का हमारे प्रति मित्र भाव बढ़ता जाएगा और जितना ही हम इसकी विपरीत दिशा में आचरण करेगें उतना ही शत्रु भाव बढ़ता चला जाएगा। अंहकार और भौतिक जगत में उसी की भांति हो जाना दुःखो का मूल कारण हैं, यदि सुख पाना हो तो आध्यत्म भावना से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सच्चा प्रयत्न कीजिए।

Tuesday, July 20, 2010

उपासना का मनुष्य के विकास से अद्वितिय सम्बन्ध है,क्योंकि शुद्ध हृदय से भजन कीर्तन करना, प्रभु के समीप बैठ उन्हें निहारना एवं नाम जपने से मनुष्य के तन, मन के वह सूक्ष्म संस्थान जागृत होते हैं जो मनुष्य को सफल, दूरदर्शी और सद्‍गुणी बनाते हैं, परन्तु केवल भजन करने या माला फेरने से भगवान प्रसन्न नहीं होते, हमारा कर्म भी भगवान की पूजा का एक आधार हैं क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं एवं सर्वदा क्रियाशील हैं इसीलिए अपना कर्म को धर्म समझ कर करने वाले सभी मनुष्य ईश्वर को अत्यन्त प्रिय हैं चाहे वह खेत में काम करने वाला किसान हो या पत्थर तोड़ने वाला मज़दूर। कर्तव्य भावना से किए गए कर्म से भगवान उतने ही प्रसन्न होते हैं जितना कि भजन कीर्तन से।

Monday, July 19, 2010

श्रद्धा वह प्रकाश हैं जो अंधकार में प्रकाश का सत्य उत्पन्न करता हैं एवं हमारी शांतस्वरूप आत्मा को मंजिल(परमात्मा) तक पहुँचाता हैं। जब मनुष्य लौकिक चमक-दमक के कारण मोहग्रस्त हो जाता हैं तो माता के समान ठण्डे जल से मुँह धुला के जगा देने वाली शक्ति हैं श्रद्धा। श्रद्धा के बल पर ही अशुद्ध चिंतन का त्याग कर मनुष्य बार-बार ईश्वर के ध्यान में मग्न हो जाता हैं और बुद्धि आध्यत्म के पथ पर अग्रसर हो जाती हैं।

Friday, July 16, 2010

जिस प्रकार सोने में निखार लाने के लिए उसे आग में तपना पड़ता हैं उसी प्रकार अपनी पात्रता साबित करने के लिए हर मनुष्य को कठिनाइयों और असुविधायों की अग्नि परीक्षा देनी पड़ती हैं, परन्तु जो व्यक्ति कठिन से कठिन मार्ग पर भी अपने कर्तव्यों से विचलित नहीं होता एवं सच्चाई और निष्ठा का मार्ग नहीं त्यागता वास्तव में वही नर-रत्न कहलाता हैं और ईश्वरीय भण्डार की विभूतियों से विभूषित किया जाता हैं परन्तु वह मनुष्य जो धन लोलुप, स्वार्थी, आलसी एवं इन्द्रियों का दास हैं वह ईश्वरीय प्रसादो का उसी प्रकार अनधिकारी हैं जिस प्रकार कौआ यज्ञ भाग का।

Thursday, July 15, 2010

अधिकतर लोग ज़रा सी विपत्ति आने पर ही घबरा जाते हैं और हाय-हाय करने लगते है एवं ईश्वर के प्रति अनास्थावान होने लगते है,परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार में रहते हुए तो दुख-तकलीफें आना अवश्यंभावी हैं इसीलिए उनसे विचलित न होके उन्हें परमपिता का खेल समझना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों के साथ खेलते हैं,मुख पर डरावना मुखौटा लगाके बच्चो से ठिठोली करते हैं उसी प्रकार परमेश्वर जो हम सभी के पिता हैं और हम उनकी संतान हमें कठिनाइयों से अभ्यस्त बनाने के लिए समय-समय पर हमारे जीवन में चुनौतियाँ उत्पन्न करते है ताकि हम संसार के हर संकट का सामना कर सकें,अतः आपत्तियों को परमात्मा का खेल समझ उन्हें स्वीकार करना चाहिए एवं सदा ईश्वर में अपनी आस्था बनाए रखनी चाहिए।

Wednesday, July 14, 2010

अपने सांसारिक कर्तव्यों की पूर्ति करते-करते मनुष्य को अपने शेष समय को अपनी आत्मा की खोज के लिए आध्यत्म मार्ग में लगाना चाहिए ताकि उसके लोक-परलोक एक साथ बनते चलें, इस द्विमुखी साधना में साधक को ज़रा भी कठिनाई नहीं होती क्योंकि परमात्मा की कृपा उसका नाम जपने वालो पर सदा बनी रहती हैं।

Tuesday, July 13, 2010

अंहकार में वशीभूत हो मनुष्य शारीरिक सुख को ही सब कुछ मान बैठता हैं,परन्तु जीवन की साँझ आते-आते उसे इस बात का आभास हो जाता है कि जीवन क्षणभंगुर हैं, वो आत्मा की हैं जो कि शाश्वत सत्य हैं पर उस समय तक बहुत देर हो चुकती हैं एवं मनुष्य के हाथ सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं रह जाता क्योंकि यह बहूमुल्य मानव जीवन तो वह गवाँ चुकता हैं।

Monday, July 12, 2010

जीवन की सफलता और महत्ता मनुष्य की आत्मिक प्रगति पर ही निर्भर हैं, भौतिक वस्तुएँ तभी तक सुख देने वाली प्रतीत होती हैं जब तक उनकी प्राप्ति नहीं होती। सच्चा एवं चिरस्थाई सुख मनुष्य की आत्मिक प्रगति पर ही निर्भर हैं,एवं उसी की प्राप्ति के लिए ही यह मनुष्य जीवन भगवान से मिला हैं।

Friday, July 9, 2010

आत्मशांति यानि मन की शांति भौतिक वस्तुयों के भोग द्वारा मिलना असंभव हैं, वह तो केवल मन की श्रेष्ठता से मिलती हैं जो कि स्वयं मनुष्य के भीतर हैं, जिस प्रकार सोना आग में तप के और निखरता हैं उसी प्रकार मनुष्य जीवन रूपी ज्वार भाटे में हिचकोले खाकर ही मंजिल(परमात्मा) तक पहुँच सकता हैं।

Thursday, July 8, 2010

सभी महापुरूषो एवं संतो ने बार-बार सभी तरह की धार्मिक ग्रंथो में बारम्बार उस परमसत्ता का गुणगान किया हैं जो कि सृष्टि के हर नन्हें कण में व्याप्त हैं। ईश्वर हरेक के हृदय में विराजमान हैं इसीलिए हमें प्रत्येक व्यक्ति का समान रूप से आदर करना चाहिए एवं किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए।

Wednesday, July 7, 2010

संसार के हरेक कार्य को यह सोच ही करना चाहिए कि इसमें ईश्वर की इच्छा विद्यमान है, तभी मनुष्य उस कार्य को सफलता पूर्वक समाप्त कर सकता हैं, अन्यथा वह सदा ही खिन्न प्रवृति से कार्य करेगा और अंत में निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा। सिर्फ उपल्बधियों का ध्यान न रख प्रतिकूलताओं पर भी नितांत विचार करें।

Tuesday, July 6, 2010

आपने पाला हमें भी, उसे भी
हम जानते हैं हर वो पल जिसमें आपने जीवन सँवारा हमारा
वो तो सब भुला बैठे!
हम कभी भूल न पाए जो प्यार-दुलार मिला आपसे
वो तो सब गवा बैठे!
पर एक बागबान(ईश्वर) है कि वह दोनो से ही करता हैं
बेतहाशा प्रेम!

Monday, July 5, 2010

माँ शब्द एक ऐसी सुदंर अनुभूति हैं कि जो सोचते ही होठों पर एक मधुर मुस्कान आ जाती हैं, माँ वो है जो बच्चे की हर पीड़ा हर वेदना समझती हैं, माँ वह है जो अपना सब कुछ वार बच्चो पर न्यौछावर कर देती है, पर जो बच्चे माँ को नहीं समझ सकते, उसके प्रेम को नहीं जान पाते वह न सिर्फ नादान हैं बल्कि जीवन के हर रिश्ते से अनिभिज्ञ एवं उदासीन हैं एवं उन्हें ईश्वर भी माफ नहीं कर पाते क्योंकि जो बच्चे माँ की कदर करना नहीं जानते उनकी किस्मत में ठोकरों के अलावा कुछ नहीं रखा हैं जोकि देर या सवेर उन्हें मिल कर ही रहेंगी।

Friday, July 2, 2010

जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने के लिए अपना पूरा प्रयत्न, पूरी शक्ति एवं आयु लगानी पड़ती हैं, तब कहीं जाकर सफलता प्राप्त होती हैं, परन्तु कुछ लोग तो बगैर प्रयत्न करे ही सफलता की अपेक्षा करते हैं एवं अनितिपूर्ण व्यवहार अपनाते हैं जो कि सर्वथा अनुचित हैं, मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी समूची ताकत से अपने कर्तव्य की पूर्ति करें एवं सही समय आने पर सफलता की प्राप्ति निश्चित हैं।

Thursday, July 1, 2010

जिस प्रकार भोर होने से पहले रात्रि का अंतिम प्रहर गहन कालिमा से परिपूर्ण होता हैं उसी प्रकार वर्तमान युग की स्थिति भी निरंतर बुरी होती जा रही हैं, परन्तु हमें ईश्वर पर भरोसा रख सदा संघर्ष जारी रखना चाहिए कि नव युग का निर्माण अब दूर नहीं, और उस श्रेष्ठ एवं नवीन युग की स्थापना से पूर्व सभी बुराईयों का सपष्ट होना नितांत आवश्यक हैं।