Monday, July 19, 2010

श्रद्धा वह प्रकाश हैं जो अंधकार में प्रकाश का सत्य उत्पन्न करता हैं एवं हमारी शांतस्वरूप आत्मा को मंजिल(परमात्मा) तक पहुँचाता हैं। जब मनुष्य लौकिक चमक-दमक के कारण मोहग्रस्त हो जाता हैं तो माता के समान ठण्डे जल से मुँह धुला के जगा देने वाली शक्ति हैं श्रद्धा। श्रद्धा के बल पर ही अशुद्ध चिंतन का त्याग कर मनुष्य बार-बार ईश्वर के ध्यान में मग्न हो जाता हैं और बुद्धि आध्यत्म के पथ पर अग्रसर हो जाती हैं।

No comments:

Post a Comment