Friday, July 16, 2010

जिस प्रकार सोने में निखार लाने के लिए उसे आग में तपना पड़ता हैं उसी प्रकार अपनी पात्रता साबित करने के लिए हर मनुष्य को कठिनाइयों और असुविधायों की अग्नि परीक्षा देनी पड़ती हैं, परन्तु जो व्यक्ति कठिन से कठिन मार्ग पर भी अपने कर्तव्यों से विचलित नहीं होता एवं सच्चाई और निष्ठा का मार्ग नहीं त्यागता वास्तव में वही नर-रत्न कहलाता हैं और ईश्वरीय भण्डार की विभूतियों से विभूषित किया जाता हैं परन्तु वह मनुष्य जो धन लोलुप, स्वार्थी, आलसी एवं इन्द्रियों का दास हैं वह ईश्वरीय प्रसादो का उसी प्रकार अनधिकारी हैं जिस प्रकार कौआ यज्ञ भाग का।

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