Wednesday, May 5, 2010

हमारा प्रेम, अनुरक्ति हो तो केवल अपने अंदर बैठे परमात्मा के अंश से हो। परमात्मा विभिन्न रूपों में हमारे आस-पास मौजूद हैं। हमारे प्रेम, सौहाद्र का प्रतिफल हममें विद्यमान परब्रह्म परमात्मा भी हमें महत्व पूर्ण वरदान के रूप में देंगे। वह हैं जीवन के हर कार्य, पुरूषार्थ में योगक्षेम का वहन।

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