Thursday, December 23, 2010

मनुष्य इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड का अल्प स्वरूप है। परमात्मा का अंश है, परन्तु इस बात से कितना अनभिज्ञ हैं। अपनी ही मृग मरीचिका में जीवन जी रहा है, पेट और प्रजनन के आगे उसे कुछ नहीं सूझता, वह जीवन की सबसे बड़ी जरूरत ईश्वर को ही भुला बैठा जिसने उसे जीवन जीने की सभी नियामतें प्रदान की। मनुष्य ने अपनी एक ऐसी दुनिया बना ली जिसमें ईश्वर का कोई स्थान नहीं और पैसा ही सब कुछ है, पर मनुष्य को यह बात समझनी ही होगी की ईश्वर प्रेम और भक्ति से बड़ा जीवन में और कुछ भी नहीं है।

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