Monday, December 13, 2010

जो मनुष्य जीवन की कठिनाइयों से डर कर पलायन का मार्ग अपनाए वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं हैं, परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही इतना सर्मथ दिया हैं कि वह हर परिस्थिति से जूझ सके और यह ही प्रकृति का नियम भी हैं कि जो गलता हैं वही उगता हैं। प्रसव पीड़ा के बाद ही संतान सुख की प्राप्ति होती हैं, कच्चे मिट्टी के बर्तन पानी की एक बूंद भी सहन नहीं कर पाते परन्तु जो बर्तन आग की तपिश में पक कर तैयार किए जाते हैं उनकी उपयोगिता और शोभा और स्थिरता बनी रहती हैं।पूर्ण मनुष्य बनने के लिए जीवन रूपी भट्टी में तपना ही होगा, और ईश्वर को भी स्मपूर्ण मनुष्य स्वीकारणीय हैं।

No comments:

Post a Comment