Tuesday, April 13, 2010

प्रेम में ही प्राणी का स्वर्ग नीहित हैं, चाहे वह छोटा सा कीट-पंतग ही क्यों न हो प्रेम के लिए सदा लालायित रहता हैं, मनुष्य का जीवन भी प्रेम का ही सुन्दर स्वरूप हैं, एवं प्रेम पर ही टिका हैं। प्रेम की परिकाष्ठा हैं अपने आराध्य(परमात्मा) तक अपनी यह परम अनुभूति अभिव्यक्त करना।

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