Monday, April 5, 2010

ईश्वर के दर्शन के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं हैं, परमात्मा को अपने भीतर ही देखना चाहिए जिसके लिए ज़रूरी हैं कि हम अपने भीतर संयम, सद्‌विचार एवं सद्‌भावना का विकास करें, दरसल परिष्कृत आत्मा ही परमात्मा की उपलब्धि हैं।

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