Saturday, February 13, 2010

हम सभी के अंदर एक आत्मा हैं,जो शांत है,कर्म की दॄष्टि से श्रेष्ठ हैं।परन्तु आत्मा और परमात्मा के इस रहस्य को समझने में बाधक हैं मनुष्य का अंहकार। अहंकार से प्रेरित व्यक्ति कभी यह समझ नहीं पाता कि उस निराकार परमात्मा से ही यह जगत है,सभी प्राणी है,हर छोटे से छोटे कण में परमात्मा सर्वत्र व्याप्त हैं। अतः आवश्यकता है कि इस अंहकार को त्यागकर हम "आत्मा"बन जाएँ, उस परब्रह्म के अंश बन जाएँ।यही मोक्ष हैं।

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