Wednesday, February 10, 2010

नर में ही नारायण हैं इसका यह ही अभिप्राय है कि ईश्वर इस सम्पूर्ण सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं और हर जीव में परम तत्व का अंश सम्माहित हैं। मनुष्य की आत्मा भी छ्ल-कपट से परे परमात्मा का ही अंश एवं रूप हैं।

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