Wednesday, March 31, 2010

श्रीमद्‌भागवत में एक प्रसंग आता हैं, जिसमें भगवान कहते हैं कि वैकुंठ वहीं हैं जहाँ मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं। मेरी लीला का, नाम-रूप का, गुणो का गान करते हैं, मैं वहीं विराजमान हूँ एवं ऐसे स्थान के धूल के कण भी पवित्र हो जाते हैं।

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