Wednesday, June 30, 2010

केवल अपने लिए जीना, खाना-खेलना और मर जाना, मानव जीवन का निकृष्टतम दुरूपयोग हैं, ऐसा व्यक्ति भले ही स्वयं को सफ़ल माने परन्तु वह असफ़ल ही माना जाएगा।क्योंकि भगवान ने इस सृष्टि को इस प्रकार रचा हैं कि सभी एक दूसरे का परोपकार करें, गाय माता दूध देकर हमारा पोषण करतीं हैं, बादल समुद्र से जल लाते हैं एवं प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं, सूर्य और चन्द्रमा समय पर उग इस धरती पर नवजीवन का संचार करते हैं, हो कहीं अपनी सिनग्ध चाँदनी से ठंडक प्रदान करते हैं, यानि छोटे से छोटा कीट-पंतग भी परोपकार का व्रत लिए जीवन जीता हैं तो क्या मनुष्य जो ईश्वर की सर्वोतम रचना हैं, उसे क्या स्वार्थपरकता शोभा देती हैं स्वयं विचार करें।

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