Friday, August 6, 2010

ईश्वर को सदैव सत्कर्म करने वाले मनुष्य ही प्रिय हैं, ईश्वर ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य की रचना इसी उद्देश्य से की हैं कि वह यह समझे कि "अहम्‌ ब्रह्म,द्वितिय न अस्ति" अर्थात मनुष्य स्वयं कोई और नहीं ब्रह्म ही हैं और यह बात वो तभी समझ सकता हैं जब वह प्रमाद, आलस्य और अज्ञानता का त्याग कर जागरण का वरण करें और प्रकाश एवं पावनता की ओर अग्रसर हो, इसी प्रकार वह जीवत्व से बढ़ता हुआ ईश्वरत्व तक पहुँच सकता हैं। यह सभी कुछ तभी संभव हैं जब मनुष्य स्वयं को परमपिता परमात्मा का पुत्र एवं प्रतिनिधि अनुभव करे।

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