Friday, February 25, 2011

जीवन में सभी को सभी कुछ प्राप्त नहीं होता यह परम सत्य हैं। हरेक के कर्म भिन्न है और उन्हीं के अनुसार मनुष्य को उसका जीवन मिला है, जितना मिला है, जो मिला है उसे भगवान का प्रसाद समझ ग्रहण कीजिए और अपना कर्म करते हुए हर पल ईश्वर को स्मरण कीजिए जिससे कि मन शांत हो और कर्म के गल्त होने का संशय मन से निकल जाए। जो कर्म किसी के भले के लिए किया जाता है उस कर्म में छिपी भावना का बहुत महत्व है, और दुरभावना से किए गए कर्म के लिए दण्ड पाने को भी मनुष्य को तैयार रहना चाहिए।

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