Tuesday, August 10, 2010

जीवन का अभिप्राय हैं दिव्य प्रेम- प्रेम हर उस प्राणी से, हर फूल-पत्ते से, हरेक जानवर से चाहे वो कीट-पंतग ही क्यों न हो और ईश्वर के ही बनाए हर एक मनुष्य से चाहे वह किसी भी जाति, सामप्रदाय, मज़हब या देश का क्यों न हो, केवल हर जगह, हर प्राणी में उस परम पिता परमेश्वर की ही कल्पना कीजिए तभी वो प्रेम दिव्य प्रेम बन पाएगा।

Monday, August 9, 2010

मनुष्य को जीवन में किसी भी बात पर अंहकार नहीं करना चाहिए, इतिहास गवाह हैं कि घमंडी का सिर सदा ही झुकता हैं इसीलिए रूप-गुण, संपत्ति, साधन, सर्मथन, विद्या-बुद्धि किसी भी बात पर घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा सब कुछ पाकर भी सच्चा, विनम्र, शालीन, सभ्य एवं सुशील बनें रहना चाहिए।

Friday, August 6, 2010

ईश्वर को सदैव सत्कर्म करने वाले मनुष्य ही प्रिय हैं, ईश्वर ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य की रचना इसी उद्देश्य से की हैं कि वह यह समझे कि "अहम्‌ ब्रह्म,द्वितिय न अस्ति" अर्थात मनुष्य स्वयं कोई और नहीं ब्रह्म ही हैं और यह बात वो तभी समझ सकता हैं जब वह प्रमाद, आलस्य और अज्ञानता का त्याग कर जागरण का वरण करें और प्रकाश एवं पावनता की ओर अग्रसर हो, इसी प्रकार वह जीवत्व से बढ़ता हुआ ईश्वरत्व तक पहुँच सकता हैं। यह सभी कुछ तभी संभव हैं जब मनुष्य स्वयं को परमपिता परमात्मा का पुत्र एवं प्रतिनिधि अनुभव करे।

Thursday, August 5, 2010

Count your blessings,name them one by one, Count your many blessings see what God has done! Your blessings are your good deeds and God wants to give them to you.

Wednesday, August 4, 2010

देह की शक्ति समाप्त होते ही सारी आसक्तियाँ आप से आप ही छूट जाती हैं, जिन बंधनो से बंध कर हम जीवन जीते है, मोह माया, प्रेम-विलाप सब प्राण के शरीर से निकलने पर स्वयं ही अंत हो जाता हैं, परन्तु परमात्मा से हमारा बंधन एसा शाश्वत है जो कि सदा ही बना रहता हैं और कभी नहीं टूटता।

Tuesday, August 3, 2010

मनुष्य की पूर्णता का चिन्ह यह हैं कि उसमें कितनी उत्कृष्ट भावनाओं का विकास हुआ हैं, मनुष्य उस दिन सही मायने में पूर्णता की परिधि में प्रवेश कर जाएगा जिस दिन उसका स्वार्थ परमार्थ बन जाएगा, उसके अधिकार कर्तव्य बन जाएँगे,उसका अपना सुख, दूसरे के सुख से संतुष्ट हो जाएगा एवं उसकी आत्मा परमात्मा में लीन हो जाएगी।

Monday, August 2, 2010

God is never partial towards anyone, whatever we sow, so shall we reap, so do not be harsh to others if you don't want harshness in your life, also treat everyone equal as the smallest and weakest creature of the earth is also a part of the Almighty.