Friday, October 22, 2010

विद्वानों ने कहा है कि आध्यत्मिकता का दूसरा नाम प्रसन्नता हैं, जो प्रफुल्लता से जितना दूर हैं वह ईश्वर से भी उतना ही दूर हैं। वह न तो आत्मा को जानता हैं न ही परमात्मा की सत्ता को। सदैव झल्लाने, खीझने वाले और उदासीन रहने वाले व्यक्तियों को ऋषियों ने नास्तिक ही बताया हैं। जो सदा हँसता-मुस्कुराता हैं वह ईश्वर का ही प्रकाश सब ओर फैलाता हैं। रोना एक अभिशाप हैं और हँसना एक ऐसा वरदान हैं जो जीवन के वर्तमान को तो सँवारता ही हैं,परन्तु भविष्य को भी उज्ज्वल बनाता हैं। भगवान ने जो कुछ भी बनाया और उपजाया हैं वह सभी को खुश रखने के लिए बनाया गया हैं, जो कुछ बुरा और अशुभ हैं वह मनुष्य को प्रखर बनाने के लिए रचा गया हैं ताकि मनुष्य जीवन के संर्घषो से सबक ले सके और अपने अनुभवों से दूसरों को भी सीख दे सके। इसलिए सदा हँसते रहे और दूसरों को हँसाते रहें यही सच्चा आध्यात्म हैं।

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