Thursday, June 9, 2011

परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिंतनम्‌।
वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम्‌॥
मनुस्मृति १२/५
अर्थात परधन के लेने की इच्छा, मन में किसी का अनिष्ट चिंतन करना, नास्तिकता __ ये तीन प्रकार के मानसिक पाप हैं।

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