Tuesday, December 22, 2009

दारिद्र‌यरोगदुःखानि बन्धनव्यसनानि च।
आत्मापराधवॄक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्‌॥
(चाण्क्य नीति १४.२)
दरिद्रता,रोग,दुःख,बंधन और विपत्तियाँ ये सब मनुष्यों के अपने ही दुष्कर्मरूपी वृक्ष के फल है।

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