Tuesday, December 27, 2011
Sunday, December 25, 2011
Saturday, December 24, 2011
Friday, December 23, 2011
Thursday, December 22, 2011
Wednesday, December 21, 2011
Tuesday, December 20, 2011
Monday, December 19, 2011
Saturday, December 17, 2011
Thursday, December 15, 2011
Wednesday, December 14, 2011
Tuesday, December 13, 2011
Monday, December 12, 2011
Saturday, December 10, 2011
Thursday, December 8, 2011
Monday, December 5, 2011
Friday, December 2, 2011
Wednesday, November 30, 2011
Tuesday, November 29, 2011
Monday, November 28, 2011
Thursday, November 24, 2011
Tuesday, November 22, 2011
Monday, November 21, 2011
Friday, November 18, 2011
Thursday, November 17, 2011
Wednesday, November 16, 2011
Tuesday, November 15, 2011
Wednesday, November 9, 2011
Tuesday, November 8, 2011
Monday, November 7, 2011
Friday, November 4, 2011
Thursday, November 3, 2011
Tuesday, November 1, 2011
Monday, October 31, 2011
Wednesday, October 26, 2011
Tuesday, October 25, 2011
Friday, October 21, 2011
Thursday, October 20, 2011
Wednesday, October 19, 2011
Tuesday, October 18, 2011
Friday, October 14, 2011
Thursday, October 13, 2011
Wednesday, October 12, 2011
Tuesday, October 11, 2011
Monday, October 10, 2011
Friday, October 7, 2011
Thursday, October 6, 2011
Wednesday, October 5, 2011
Tuesday, October 4, 2011
Friday, September 30, 2011
Thursday, September 29, 2011
Tuesday, September 27, 2011
Monday, September 26, 2011
Friday, September 23, 2011
Thursday, September 22, 2011
Wednesday, September 21, 2011
Tuesday, September 20, 2011
Monday, September 19, 2011
Wednesday, September 14, 2011
Tuesday, September 13, 2011
Friday, September 9, 2011
Wednesday, September 7, 2011
Tuesday, September 6, 2011
Monday, September 5, 2011
Friday, September 2, 2011
Tuesday, August 30, 2011
Friday, August 26, 2011
Wednesday, August 24, 2011
Tuesday, August 23, 2011
Monday, August 22, 2011
गोविंदा आला रे आला, मेरा मुरली मनोहर नंदलाला ....... आओ भगवान श्री कृष्ण के पावन जन्म के अवसर पर हम आज के कृष्णा श्री अन्ना जी का हर मुमकिन समर्थन करें और भागवत गीता के हर श्लोक को सही मयाने में समझे एवं इस प्रासंगिक महापुराण की शिक्षा अपने हर शिशु को प्रदान करें, आओ हम सब मिलकर एक नई ज्न्माष्टमी मनाएँ।
Saturday, August 20, 2011
Thursday, August 18, 2011
Wednesday, August 17, 2011
Tuesday, August 16, 2011
Monday, August 15, 2011
Friday, August 12, 2011
Thursday, August 11, 2011
Wednesday, August 10, 2011
Tuesday, August 9, 2011
Monday, August 8, 2011
Thursday, August 4, 2011
Wednesday, August 3, 2011
Tuesday, August 2, 2011
Monday, August 1, 2011
Sunday, July 31, 2011
Friday, July 29, 2011
Thursday, July 28, 2011
Monday, July 25, 2011
माता-पिता हर घर में हो ऐसी मेरी प्रार्थना है ईश्वर से क्योंकि जिस घर में माता-पिता रहते हैं वहाँ ईश्वर भी स्वयं मौज़ूद होते हैं। माता-पिता हर परिस्थिति में संतान का भला ही चाहते हैं एवं ईश्वर के सामान ही उनके द्वारा दिया गया प्यार-दुलार अतुलनीय हैं। इस दुनिया में आने पर जो हमें अपने खून-दूध से सींचते है, बिना कुछ इच्छा किए अपना सब-कुछ हम पर न्यौछावर कर देते हैं और सदा ही हमारे हितैषी रहते हैं वो तो सिर्फ माता-पिता ही हैं। मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद है परमात्मा को जिन्होंने हमें माता-पिता(अपना स्वरूप) प्रदान किए।
Friday, July 22, 2011
Thursday, July 21, 2011
Wednesday, July 20, 2011
Tuesday, July 19, 2011
यदि जीवन में कभी भी ऐसा महसूस हो कि आप नाकामयाब हो रहें हैं और कोई भी रास्ता न मिल रहा हो तो अपने सबसे सच्चे एवं अच्छे मित्र ईश्वर को स्मरण कीजिए, कोई न कोई रास्ता आपको अवश्य मिलेगा, केवल नाकामयाब होने पर ही नहीं हर पल सच्चे हृदय से उस परमपिता को जरूर याद करें जिन्होंने यह जीवन और उससे जुड़े सभी अनुभव हमें प्रदान किए हैं।
Monday, July 18, 2011
Friday, July 15, 2011
Thursday, July 14, 2011
Wednesday, July 13, 2011
Tuesday, July 12, 2011
Monday, July 11, 2011
Friday, July 8, 2011
"गायत्री भगवान सूर्यनारायण का आवाहन मंत्र है।गायत्री मंत्र का उच्चारण होते ही जप करने वाले के ऊपर प्रकाश की एक शक्तिशाली झलक स्थूल सूर्य से आती है। जिस प्रकार सूर्य की किरणो से इन्द्रधनुष बनता है एवं अपने मनमोहक सात रंगो से सबका मन मोह लेता है,उसी प्रकार गायत्री मन्त्र के जप से सूर्य से सात किरणें उत्पन्न होती है,जिनका शुभप्रभाव अनगिनत जीवो पर पड़ता है ।
Thursday, July 7, 2011
Wednesday, July 6, 2011
ईश्वर ने यह दुनिया बड़ी ही विचित्र बनाई हैं, इसमें भांति-भांति के लोग बनाए हैं, परन्तु सबको समान दॄष्टि से ही बनाया है, किसी से भी किसी तरह का पक्षपात नहीं किया क्योंकि परमपिता की नज़र में सबका समान स्थान है, कोई भी बड़ा या छोटा नहीं हैं तो फिर हम मनुष्य जो प्रभू की सर्वोतम कृति है, इस जात-पात के जंजाल में क्यों फँसे बैठे हैं?
Monday, July 4, 2011
आपको जब कभी ऐसा लगे कि आपको किसी ने आवाज़ दी हैं परन्तु यह पता न चले कि किसने पुकारा हैं तो निश्चित रूप से समझ लीजिए कि यह अपनी ही अंतरात्मा की पुकार है जो मनुष्य को सचेत कर रही हैं कि यह बहूमूल्य जीवन धीरे-धीरे हाथ से निकलता जा रहा हैं और यदि ऐसा ही चलता रहा तो परमपिता का यह अमूल्य अनुदान व्यर्थ न चला जाए।
Friday, July 1, 2011
Thursday, June 30, 2011
Wednesday, June 29, 2011
Tuesday, June 28, 2011
Parents attend to their child with unconditional love & affection and we call them with loving names just like God.....Parents are someone that you'll get only once in a lifetime and every moment spent with them is cherished long.Love your parents, they need your love, just as you need their's. No other but God is only capable of making "Parents" who are loving angels and makes us feel & believe the presence of God everyday and everywhere.
Monday, June 27, 2011
ईश्वर सब तरफ विराजमान हैं, न तो वह किसी से पक्षपात करते हैं और न ही पूजा-अर्चना का दिखावा करने से प्रसन्न होते हैं, उन्होंने तो मानव को केवल एक ही काम सौंपा है कि वह दूसरों की सेवा करें, उनके दुख-दर्द में काम आए और मानवता के कल्याण में ही अपना जीवन व्यतीत करे, परन्तु मनुष्य तो केवल अपने ही कल्याण में(धन अर्जन) में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देता है और यह सोचता हैं कि प्रभू भजन और मानव सेवा के लिए तो बुढ़ापा ही काफी हैं परन्तु जीवन की संध्याकाल आने पर सिवा पछ्तावे के और कुछ हाथ नहीं लगता। अतः समय रहते ही सचेत हो जाओ और जिस मकसद से परमात्मा ने इस धरती पर जन्म दिया हैं उसे पूर्ण करो।
Friday, June 24, 2011
Thursday, June 23, 2011
Wednesday, June 22, 2011
Friday, June 17, 2011
सब ओर ईश्वर की ही तो सत्ता विराजमान हैं, भगवान ही माता-पिता के रूप में हमारा जीवन सँवारते हैं, भाई-बहन बन हमारे साथ खेलते हैं, मित्र बन हमें मुश्किलों से उबारते हैं, साथी बन हर सुख-दुख में हमारा साथ निभाते हैं, शत्रु बन हमें विपत्तियों से जूझना भी प्रभू ही सिखाते हैं सब उस परमपिता के ही तो रूप हैं,केवल हमें भिन्न दिखते हैं क्योंकि हमारा देखने का नज़रिया अलग है। सही मायने में धरती- आकाश सब ओर जहाँ भी हमारी दृष्टि जाती है इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता और निर्माता और कण-कण में विराजमान केवल मेरे प्रभू जी ही तो हैं।
Thursday, June 16, 2011
Wednesday, June 15, 2011
जीवन परमात्मा की दी हुई अमूल्य कृति है, इसे व्यर्थ न गवाएँ क्योंकि जीवन का हर क्षण बहूमूल्य है जो एक बार बीत जाता है उसे फिर हम कितना भी चाहें पा नहीं सकते। ईश्वर जो हम सभी के पिता हैं वह दया के सागर हैं उन्होने हमें इतना कुछ प्रदान किया हैं कि यदि हर पल भी हम उनका धन्यवाद करें तो वह कम है। उनकी संतान होने के नाते हम सभी उनके ईश्वरीय गुणों से परिपूर्ण है, कोशिश करनी हैं उन गुणो को निखारने की और संवारने की ।
Tuesday, June 14, 2011
Monday, June 13, 2011
Friday, June 10, 2011
Thursday, June 9, 2011
Tuesday, June 7, 2011
Thursday, June 2, 2011
Wednesday, June 1, 2011
हे परमात्मा आपका किन ल्वज़ो में शुक्रिया अदा करूँ कि आपने मुझे सारे जहान की खुशियाँ प्रदान की हैं मुझे मेरे जन्मदाता से साक्षातकार करा उनके जीवन की महानतम खुशी में शामिल होने का मौका प्रदान किया, इस खुशी से बड़ी खुशी को देने के लिए हे ईश्वर मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूँ और आज अपने जन्मदिन पर बारम्बार आपको प्रणाम और आपका स्वरूप ले जिन्होंने जन्म दिया उन माता-पिता को कोटि-कोटि नमन करती हूँ। हे परमात्मा आप ही कि तरह मेरा संबंध मेरे माता-पिता से अटूट हो और जन्म जन्मातर का हो ऐसा आर्शीवाद मैं आपसे चाहती हूँ।
Tuesday, May 31, 2011
Sunday, May 22, 2011
Thursday, May 19, 2011
Tuesday, May 17, 2011
Sunday, May 15, 2011
Friday, May 6, 2011
Thursday, May 5, 2011
Wednesday, May 4, 2011
भगवान ही माता-पिता का रूप ले हमें जन्म देते हैं, गुरू बन हमें शिक्षा प्रदान करते हैं, हम सब और यह सम्पूर्ण ब्रहांड उस परमात्मा का ही तो सगुण साकार रूप हैं। जिस ओर भी आपकी दृष्टि जाती है सब ओर ईश्वर का ही ऐश्वर्य व्याप्त हैं, किसी फूल की सुंदरता हो या किसी जीव की चंचलता सबमें वह निराकार ही तो समाये हैं। अतः सबका सम्मान कीजिए और किसी को आहत मत कीजिए।
Tuesday, May 3, 2011
Monday, May 2, 2011
भगवान ही माता-पिता का रूप ले हमें जन्म देते हैं, गुरू बन हमें शिक्षा प्रदान करते हैं, हम सब और यह सम्पूर्ण ब्रहांड उस परमात्मा का ही तो सगुण साकार रूप हैं। जिस ओर भी आपकी दृष्टि जाती है सब ओर ईश्वर का ही ऐश्वर्य व्याप्त हैं, किसी फूल की सुंदरता हो या किसी जीव की चंचलता सबमें वह निराकार ही तो समाये हैं। अतः सबका सम्मान कीजिए और किसी को आहत मत कीजिए।
Friday, April 29, 2011
अपना जीवन संचालित कीजिए, सदा सच का साथ दीजिए क्योंकि आप शरीर नहीं आत्मा है, आत्मा में सारे गुण है, वह तो परमात्मा के ही समान सर्वशक्तिमान हैं, उसमें वो सभी शक्तियाँ है जो परमात्मा ने हमें प्रदान की हैं और यदि हम चाहें तो अपनी उन शक्तियों को विकसित कर हम परमात्मा को भी प्राप्त कर सकते हैं, एवं इस मानव जीवन का ध्येय पूरा कर सकते हैं।
Thursday, April 28, 2011
अच्छा या बुरा तय करने वाले हम कौन होते हैं हमें किसने यह हक प्रदान किया हैं?भगवान ने जो कुछ रचा है अच्छा ही रचा है, ईश्वर की रचना से ज्यादा सुन्दर और अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता, परन्तु यदि हमें कुछ गल्त भी लगता है तो वो केवल इसीलिए रचा गया है ताकि हम उससे कुछ सीख सकें और अपने जीवन में और बेहतर बन सके।
Wednesday, April 27, 2011
Tuesday, April 26, 2011
Monday, April 25, 2011
Friday, April 22, 2011
हमारी स्थूल पाँच कर्म-इन्द्रियों के साथ-साथ हमारी तीन सूक्ष्म इन्द्रियाँ मन, बुद्धि और संस्कार भी हमारे वश में आ जाते है यदि हम आत्मा को प्रधानता देते है, क्योंकि आत्मा को चलाने वाले परमात्मा हैं और आत्मा है जो शरीर को चलाती है, यदि हम यह बात समझ ले कि हमें आत्मा को महत्ता देनी है तो जीवन बहुत सरल हो जाएगा और हम उन परमपिता से अपना रिश्ता सदैव कायम रख पाएँगे, जो हमारा स्रोत भी है और अंत भी।
Thursday, April 21, 2011
ये जीवन प्रभू कृपा के बगैर जीना नामुमकिन हैं, पग-पग पर जीवन के हर कदम पर ईश्वर किसी न किसी रूप में आपका आसरा बनते हैं,आपको ज्ञात ही नहीं होता कि किस प्रकार वो आपको इस भवसागर को पार कराने वाले खैवया बन जाते हैं और आपकी नैया पार लगा देते हैं, आपका प्रभू की ओर पूर्ण समर्पण ही है जो आपको इस जगत में तार सकता है।
Wednesday, April 20, 2011
Tuesday, April 19, 2011
Monday, April 18, 2011
Friday, April 15, 2011
यह जीवन आपादाओं और विपत्तियों से भरा है और बिना प्रभु कृपा से इस भवसागर से पार पाना नामुमकिन है, जीवन की किसी भी परिस्थिति में हम हार सकते हैं और जीत भी सकते है यदि हम प्रभू से शक्ति लें कार्य करें तो कुछ भी नामुमकिन नहीं और परमपिता का अंश होने के कारण ऐसा कुछ भी नहीं जो हमारे सामर्थ में न हो, हमारी आत्मा का सामर्थ हमारी सोच से कई गुणा बड़ा है और उसकी शक्ति का पार पाना नामुमकिन।
Thursday, April 14, 2011
Wednesday, April 13, 2011
Tuesday, April 12, 2011
Monday, April 11, 2011
Friday, April 8, 2011
Thursday, April 7, 2011
केवल अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीता हैं वो ही मनुष्य है। परमात्मा की बनाई इस पवित्र सृष्टि में सभी ओर पवित्रता और आनन्द व्याप्त है। जो मनुष्य सब ओर इस पवित्रता को अनुभव करता है और ईश्वरीय श्रेष्ठताओं को विकसित एवं प्रचलित करता है, वह देव-दृष्टि धारण करता है और वह देव-कर्म करता हैं।
Wednesday, April 6, 2011
जिसने कभी अंधेरा नहीं देखा वह रोशनी(उजाले) का अधिकारी नहीं, जिसका कभी अपमान न हुआ वह सम्मान का हकदार नहीं, जिसने कभी अभाव नहीं देखा वे वैभव का हिस्सेदार नहीं, जिसके मन में संतोष नहीं वह सुख का ज्ञाता नहीं। जीवन की हरेक अवस्था में केवल ईश्वर को ही स्मरण करें, सुख-दुख तो आते जाते ही रहेगें परन्तु जिसे प्रभु प्रेम का आसरा है वो हर हाल में समृद्ध हैं।
Tuesday, April 5, 2011
Monday, April 4, 2011
Friday, April 1, 2011
Thursday, March 31, 2011
माता-पिता हर घर में हो ऐसी मेरी प्रार्थना है ईश्वर से क्योंकि जिस घर में माता-पिता रहते हैं वहाँ ईश्वर भी स्वयं मौज़ूद होते हैं। माता-पिता हर परिस्थिति में संतान का भला ही चाहते हैं एवं ईश्वर के सामान ही उनके द्वारा दिया गया प्यार-दुलार अतुलनीय हैं। इस दुनिया में आने पर जो हमें अपने खून-दूध से सींचते है, बिना कुछ इच्छा किए अपना सब-कुछ हम पर न्यौछावर कर देते हैं और सदा ही हमारे हितैषी रहते हैं वो तो सिर्फ माता-पिता ही हैं। मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद है परमात्मा को जिन्होंने हमें माता-पिता(अपना स्वरूप) प्रदान किए।
Wednesday, March 30, 2011
Tuesday, March 29, 2011
Monday, March 28, 2011
Friday, March 25, 2011
Thursday, March 24, 2011
जिस प्रभू ने हमें सभी कुछ दिया है वो हमें स्वयं दिखाई नहीं देते परन्तु उनका स्वरूप हम सृष्टि में सब ओर देख सकते हैं, जिस ओर भी प्रेम और शांति दिखे समझ लीजिए ईश्वर वहीं निवास करते हैं, जहाँ मौन में भी सकून है मेरे परमात्मा वहीं रहते हैं। हर तरफ परमात्मा को ही ढूढ़े और उन्हीं का ही विचार करें, वह तो हरेक के अतःकरण में विचरते हैं।
Wednesday, March 23, 2011
Tuesday, March 22, 2011
Monday, March 21, 2011
इस सम्पूर्ण सृष्टि में जहाँ तक भी आपकी नज़र जाती है सब ओर उस सर्वव्याप्यी ईश्वर का आस्तित्व फैला हुआ दिखाई देता है, ईश्वर ने इस तरह की सृष्टि बनाई है जिसमें सभी कुछ सुंदर एवं सम्मोहित करने वाला है, ज़रा सोचिए इस सृष्टि को रचने वाले परमात्मा में ही यह सारा सौन्दर्य समाया है तभी तो यह सुन्दरता हमें दृष्टिगोचर होती है।
Friday, March 18, 2011
जीवन भगवान की अराधना का नाम है। जीवन तो सभी जीते हैं परन्तु हर समय ईश्वर को ध्यान में रख विरले लोग ही जीवन जीते है, जीवन जीने का सही ढ़ग भी वो ही लोग जानते है जो कि यह बात समझते हैं कि ईश्वर को वो लोग प्यारे हैं जो आपना कर्म भगवान की पूजा मान कर करते हैं और कर्म करते हुए सदा भगवान को याद रखते है, इस प्रकार कर्म करने से उसमें त्रुटि होने की आंशका नहीं रह जाती।
Thursday, March 17, 2011
Wednesday, March 16, 2011
भोग अज्ञान के मार्ग की ओर ले जाता है और पलायन अपने कर्तव्य से हटाता है इसीलिए न तो पलायन कीजिए और न ही भोग के मार्ग पर जाइए, अपने को ईश्वर का निमित्त मात्र जानकर केवल अपने कर्तव्य की पूर्ति करते जाइए और बाकी सब ईश्वर के हाथ छोड़ दीजिए और भगवान पर भरोसा रखिए कि जो भी होगा अच्छा ही होगा। यही जीवन जीने का सही ढ़ग है।
Tuesday, March 15, 2011
ईश्वर आपके सबसे सच्चे और विश्वसनीय मित्र हैं, यदि आप यह बात समझ ले तो कभी स्वयं को अकेला नहीं पाएँगे, आपने जब इस धरती पर जन्म लिया तो ईश्वर ने आपको बहूमूल्य भेंट के रूप में यह मानव शरीर दिया, इस विश्वास पर कि आप इसका सदुपयोग कर औरों के दुख-तकलीफ दूर करेंगे परन्तु आप केवल माया के जाल में फँस के रह गए, बाकी सब कुछ बिसार दिया, परन्तु आप अपने सबसे प्रिय मित्र और उनके प्रति अपने कर्तव्य को न बिसरा कर उन्हें पूरा करें, नहीं तो जीवन के अंत समय पछताना होगा और बीता वक्त फिर लौट के न आएगा।
Monday, March 14, 2011
ईश्वर जो शांति और प्रेम का अथाह सागर हैं उन्हें जिन्हे आप कुछ दे नहीं सकते और न वह कुछ आपसे चाहते हैं, वह केवल आपको आपका सम्बन्ध जो कि आपका परमपिता से सदैव का है आपको याद कराना चाहते है, ब्रहं-महूर्त में उठ भगवान को याद करें, उस शांत वातावरण में ईश्वर को सच्चे मन से पुकारें, उनकी शक्ति महसूस करें। आप देखेगें कि पहले आपका दिमाग शांत होगा और फिर मन और इस शांति में आप इतनी खुशी महसूस करेंगे जो सारे जहान की दौलत से भी ज्यादा कीमती है। अपने को ईश्वर को सौंप के तो देखिए आपका जीवन ही बदल जाएगा।
Friday, March 11, 2011
आज से ही संकल्प लें कि किसी चीज़ की खव्वाहिश नहीं करेंगे क्योकि यही कामना मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देती उससे उसका देवत्व छीन लेती है और उसे ले जाती है चोरी और झूठ के मार्ग पर और जो धन झूठ या चोरी के मार्ग से अर्जित किया जाता है उससे खरीदे गए अन्न से मन पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा यह बात आप स्वयं ही निश्चित कर सकते हैं।
Thursday, March 10, 2011
जब आप इस दुनिया में आए तो ईश्वर ने आपको जीवन दान दिया, जो भी मिला यहीं से मिला और इसे यहीं छोड़ के दुनिया से विदा लेनी होगी, केवल आपके कर्म ही तो हैं जो आपके साथ जाएँगे और आपका अगला जन्म निर्धारित करेगें तो क्यों न आप अपने कर्म सुधारें जिन्हे आपके साथ जाना है बाकी सब तो यहीं छूट जाना है तो फिर यह संग्रह किसलिए? इच्छाएँ न कभी पूरी होती हैं और न कभी होगीं तो उनके पीछे यह बहूमूल्य ईश्वर की देन को क्यों व्यर्थ गवाएँ निर्णय आपका है?
Wednesday, March 9, 2011
Tuesday, March 8, 2011
Monday, March 7, 2011
Friday, March 4, 2011
Thursday, March 3, 2011
Wednesday, March 2, 2011
Tuesday, March 1, 2011
मनुष्य का शरीर भगवान की बहूमूल्य देन है। इंसान का एक- एक अंग कई कड़ोरो का हैं परन्तु इस पर भी वह भगवान का धन्यवाद नहीं करता बल्कि हमेशा यही चेष्टा करता है कि उसे हर समय भगवान कुछ न कुछ देते ही रहें और इसके लिए ही वह भगवान को रिश्वत भी देता है, परन्तु मनुष्य एक बात भूल जाता है कि उस विश्वविधाता को जो सर्वगुण सम्पन्न और परिपूर्ण है उन्हे वह रिश्वत के बलबूते पर नहीं केवल अपने प्रेम और भक्ति के बलबूते पर प्राप्त कर सकता है। ईश्वर प्राप्ति ही जीवन की उत्कृष्टा है और सर्वोपरि हैं।
Monday, February 28, 2011
Friday, February 25, 2011
जीवन में सभी को सभी कुछ प्राप्त नहीं होता यह परम सत्य हैं। हरेक के कर्म भिन्न है और उन्हीं के अनुसार मनुष्य को उसका जीवन मिला है, जितना मिला है, जो मिला है उसे भगवान का प्रसाद समझ ग्रहण कीजिए और अपना कर्म करते हुए हर पल ईश्वर को स्मरण कीजिए जिससे कि मन शांत हो और कर्म के गल्त होने का संशय मन से निकल जाए। जो कर्म किसी के भले के लिए किया जाता है उस कर्म में छिपी भावना का बहुत महत्व है, और दुरभावना से किए गए कर्म के लिए दण्ड पाने को भी मनुष्य को तैयार रहना चाहिए।
Thursday, February 24, 2011
Wednesday, February 23, 2011
यदि कोई आपका अपना आपसे इतना दूर चला जाए कि उसके लौटने की कोई उम्मीद न हो तो उसके लिए इतना न रोएँ और शोक न करें कि उसे अपने नए जीवन से आपके पास दोबारा लौट के आना पड़े क्योंकि मौत तो एक ऐसी सच्चाई है कि जिसे कभी न कभी हरेक के जीवन में घटित होना है और जितना आप अपने प्रिय जन को बार-बार बुलाएँगे तो आत्मा (अनश्वर)अपने नए शरीर में स्थापित नहीं हो पाएगा और पुराने शरीर में भी वापिस नहीं आ पाएगा, इसीलिए अपने प्रिय जन की आत्मा की शांति के लिए उसे केवल प्रेम और शांति की तंरगे प्रवाहित करें, दुख और रुदन की नहीं ताकि आपके प्रिय जन की आत्मा अपने नए जीवन में स्थापित हो सके।
Tuesday, February 22, 2011
Monday, February 21, 2011
जीवन को कितना सुदंर बनाना है यह इंसान के अपने हाथ में है किसी के भी कहने में न आकर केवल अपना कर्म करते जाएँ और बाकी सभी कुछ ईश्वर के हाथों में सौंप दें। क्योंकि मनुष्य के हाथ तो केवल वर्तमान है केवल ईश्वर ही भविष्य जानते हैं अतः सर्वस्व परमपिता को अर्पित कर दें फिर चाहे वह जो भी चाहें आपके हित में ही होगा एवं भगवान आपका योगक्षेम वहन करेगें यानि आपका भार स्वयं पर ले लेगें।
Friday, February 18, 2011
Thursday, February 17, 2011
Wednesday, February 16, 2011
जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं यदि मन में इच्छा प्रबल हो और ईश्वर पर अखण्ड आस्था तो सभी मुश्किलें आसान हो जाती हैं और यही तो हर जीवन का मर्म है। सभी के जीवन में कोई न कोई परेशानी या मुसीबत तो है ही परन्तु उनसे डर के जीवन जीना तो कायरता के अतिरिक्त और कुछ नहीं। जीवन है तो कठिनाइयाँ तो आती ही रहेंगी पर उन्हें सुलझाना मनुष्य और भगवान के हाथ है। अतः भगवान पर भरोसा रखकर अपनी सम्पूर्ण शक्ति से कार्य करें और परिणाम परम पिता परमात्मा को तय करने दें।
Tuesday, February 15, 2011
धर्म क्या है इसका आशय तो केवल यह है कि हर सामप्रदाय में जो कुछ भी श्रेष्ठ है, सुन्दर है और सत्य है उसका ही अनुसरण किया जाए क्योंकि हर धर्म अच्छा ही सीखाता है। हर एक व्यक्ति चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से सम्पर्क रखता हो हरेक में केवल ईश्वर ही तो निवास करते हैं तो फिर जाति-मज़हब को लेकर यह सारे फसाद क्यों?
Friday, February 11, 2011
यदि किसी से प्रेम ही करना है तो उनसे कीजिए जिन्हें सभी ने दुत्कारा है और जो सदा जीवन में प्रेम से वंचित रहे हैं क्योंकि प्यार वो अनुभूति है जो हृदय की चोट को भुला सकने में मदद करती है और मरहम का लेप भी लगाती है इसीलिए दीन-दुखियों को अपना प्रेम-सौहार्द अवश्य दें। उनसे प्रेम करना ही ईश्वर से प्रेम करना है।
Thursday, February 10, 2011
ज्यादातर लोग संकट आते ही घबरा जाते हैं और हाय-हाय करने लगते हैं परन्तु यह वही लोग करते हैं जिनकी भगवान में आस्था नहीं होती और उनके लिए कोई भी आपत्ति बहुत ही भयावह होती है। परन्तु ईश्वर में विश्वास रखने वाले हर आपत्ति को परमपिता का अपने बच्चों को सिखाने का एक तरीका है यह जनाते है और किसी भी विपत्ति से डरे बिना उससे जूझने में लग जाते हैं।
Wednesday, February 9, 2011
Tuesday, February 8, 2011
जिस प्रकार एक बीज डालने से वो पहले पौधा और फिर वृक्ष बनता है उसी प्रकार हर मनुष्य का मूल केवल और केवल परम पिता परमेश्वर हैं। जब मनुष्य अपने इस मूल से विमुख हो जाता है तभी उसका जीवन अशांत और उथल-पुथल हो जाता है उसे सदा मृत्यु का भय लगा रहता है। परन्तु अपने मूल स्रोत ईश्वर से एकाकार होने पर मनुष्य के सभी डर मिट जाते हैं और उसे हर निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है यही सार्थकता है अपने मूल स्रोत से संबंध बनाए रखने की क्योंकि अंतिम संबंध तो उन्ही से जुड़ा रहेगा और सभी से बिछुड़ जाना है।
Monday, February 7, 2011
ईश्वर ही वे हैं जिन्हें पूर्ण पुरूष कहा जाता है, ईश्वर ही हैं जो परिपूर्ण हैं,उत्कृष्ट है। हम सभी अपूर्ण है और हमें पूर्णता केवल ईश्वर ही प्रदान कर सकते हैं और यही उत्कृष्टा प्राप्त करना ही तो बहूमूल्य मानव जीवन का लक्ष्य है जोकि केवल प्रभु की समीपता से संभव है। सच्चा संतोष एवं आन्नद कभी दुनियावी चीज़ो से प्राप्त नहीं होता। मन को सच्चे आन्नद से भर दे ऐसा सुख केवल ईश्वर के पास है और वो हमे केवल और केवल उपासना और साधना से मिल सकता है।
Friday, February 4, 2011
भौतिक सफलताएँ उतनी देर ही सुख देती हैं जब तक उनकी प्राप्ति नहीं होती जैसे ही वह प्राप्त हो जाती हैं उनकी महत्ता समाप्त हो जाती है। परन्तु आत्मिक प्रगति जिनके लिए ही हमें यह मानव शरीर मिला है चिरस्थाई रहती हैं और जीवन को श्रेष्ठ और सफल बनाती हैं और जो उपासना एवं साधना द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
Thursday, February 3, 2011
पेट-प्रजनन तक ही मानव जीवन को सीमित रखने वाले यह बात भूल जाते है कि मनुष्य को यह बहूमूल्य जीवन इसीलिए मिला है कि वह स्वार्थ सिध्दी के लिए नहीं परमार्थ के लिए जीएँ। परमार्थ भले ही किसी भी स्तर पर हो उससे दूसरों का भला अवश्य ही होता है और भगवान जो सबके हैं व सबका ही सदैव हित ही चाहते हैं वो जब यह देखते हैं कि आपके किए गए कार्य से यदि किसी प्राणी का भला होता है तो ईश्वर आपसे प्रसन्न होते हैं।
Wednesday, February 2, 2011
मनुष्य ज्ञान के ही कारण विकसित होता है, ज्ञान के स्वरूप को समझने के बाद ही उसे अहसास होता है कि उसकी सत्ता परमात्मा से भिन्न नहीं बल्कि वह स्वयं ही ईश्वर का अभिन्न अंग है। ज्ञान की उपल्बधि इसीलिए बहुत ही आवश्यक है, यही ज्ञान और विवेक ही तो है जो मनुष्य को पशु-पक्षियों से पृथक बनाते हैं और सद्ज्ञान के बलबूते पर ही मनुष्य परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग ढ़ूढ सकता है।
Tuesday, February 1, 2011
अपनेआप को पहचानना इतना आसान नहीं हमारी चेतन पहचान जब हमें समझ में आती है तभी हमें परमात्मा मिलते हैं, परन्तु वह पहचान कामनाओं और मोह-माया के जाल में जकड़ कर अपनी वास्तविकता भूल जाती है और बार-बार अपने जीवन लक्ष्य से विचलित हो जाती है। श्रद्धा एकमात्र ही वह प्रकाश है जो आत्मा को परमात्मा से मिलाती है और ईश्वर तक जाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है। श्रद्धा ही वह माध्यम है जो हमारे मन और बुद्धि को भगवान से जोड़ती है।
Monday, January 31, 2011
आत्मशांति कभी भी संसार के किसी भी पदार्थ या सुखों के भोग से संभव नहीं। आत्मशांति तो आत्मा की धरोहर है और वो हर आत्मा के पास है परन्तु उसे जाग्रत करना पड़ता है, आत्मा इस काम में सक्षम भी है केवल ज़रूरत है उसे ईश्वरीय प्रेम और सहारे की जोकि हमें केवल ईश्वर के समीप जाने से ही प्राप्त होगा और ईश्वर तो हर जगह हैं केवल उनसे साक्षातकार करने की इच्छा हमारे मन में होनी चाहिए।
Friday, January 28, 2011
जीवन इस ढ़ग से जिएँ कि आपको मरनोपरान्त भी सब याद रखें क्योंकि अपने लिए केवल रोजी-रोटी का जुगाड़ तो निकृष्ट पशु-पक्षी भी करते हैं तो यदि मनुष्य भी यही करता रहा तो उनमें और मनुष्य में भेद करना मुश्किल हो जाएगा इसीलिए अपने जीवन के यदि कुछ क्षण भी औरों के लिए कुछ किया जाए तो वो ही आपको मनुष्य की उपाधि दिलाने में सक्षम हैं।
Wednesday, January 26, 2011
संसार के सभी दुखों का कारण है अज्ञान। अपने अज्ञान के कारण ही मनुष्य दुखी है उसे पता ही नहीं कि भगवान ने जो उसके लिए सोचा है वो सबसे बेहतर है, वह जिस स्थिति में है वो उसके लिए सबसे बहेतर है नहीं तो वह उससे भी बदत्तर हालात में होता, इसीलिए हे बन्दे खुदा की रज़ा में ही अपनी भलाई समझ और उसके खिलाफ जाने की गल्ती मत कर।
Tuesday, January 25, 2011
जब भी ईश्वर से प्रार्थना करने बैठे तो एक ही बात बार-बार दोहराएँ कि मैं एक शांत-स्वरूप आत्मा हूँ और परमात्मा से मेरा सबसे घनिष्ठ संबंध है बाकी सभी संबंध तो दुनियावी हैं और यहीं रह जाएँगे परन्तु परमात्मा आपके साथ सदा से हैं और सदैव ही आपके पास/साथ हैं केवल उन्हें महसूस कीजिए तब आपको सबकुछ प्रभुमय लगेगा।
Monday, January 24, 2011
यदि बच्चों के सही मित्र बनना चाहते हैं तो उनसे उनकी ही भाषा में बात करें, हमेशा संवाद की स्थिति बनाए रखें एवं इस बात को भी तूल दें कि बच्चा भी समझ रखता है। अंग्रेजी मे कहावत है कि "Child is a father of man" परन्तु हम यह बात भूल जाते हैं और अपनी ही राय बच्चे पर लादना चाहते हैं जिससे वह स्वयं को बाधित महसूस करता है और जीवन में अपने फैसले करना वह कभी नहीं सीखता।
Friday, January 21, 2011
यदि इस संसार में प्रसन्न रहना चाहते हैं तो हर घटना को ईश्वरीय आदेश समझ अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए। क्योंकि जो मनुष्य केवल अनुकूलताओं में खुश रहता है और प्रतिकूलता आते ही दुखी हो जाता है वास्तव में वह कभी तरक्की नहीं कर सकता। किन्तु जो व्यक्ति विषादों में भी मुस्कुरता है और सुख मिले या दुख सदैव प्रसन्न रहता है वह अवश्य ही उन्नति के शिखर पर पहुँचता है। ऐसा होना उसी व्यक्ति के लिए संभव है जो भगवान पर अडिग विश्वास रखता हो और संसार में होने वाली हर घटना को प्रभू इच्छा ही मानें।
Thursday, January 20, 2011
जो व्यक्ति अपने और दूसरों के प्रति उच्च विचार रखता है वही प्रगति की राह पर जा सकता है, क्योंकि सफलता के लिए बहुत ज़रूरी है कि अपने पर पूर्ण आत्मविश्वास हो जो तभी संभव है जब व्यक्ति को भगवान पर विश्वास हो। अपनी स्मपूर्ण शक्ति एकत्र करके आध्यत्म भाव से जीवन जीएँ और सदा अग्रसर रहें। जो सफलता एक आध्यत्मिक व्यक्ति पाता है वह स्थाई होती है और नास्तिक की सफलता का कोई महत्व नहीं होता।
Wednesday, January 19, 2011
मानव सेवा से बड़ा और कोई धर्म नहीं। मेरे परमात्मा सभी के दिल में निवास करते हैं किसी जीव का दिल परमात्मा के बिना निर्मित नहीं हो सकता इसीलिए हरेक में भगवान ही बसते हैं यदिे ऐसा आपका विश्वास होगा तो आप सबसे प्रेम और सौहार्द का व्यवहार करेंगे। जो व्यक्ति दूसरे को व्यक्ति न समझ कर केवल कमाई और शोषण का साधन समझते हैं वह केवल आस्तिक होने का पाखंड करते हैं, सच में उनसे बड़ा नास्तिक कोई नहीं।
Tuesday, January 18, 2011
जिसने भी मनुष्य रूप में जन्म लिया है ईश्वर ने उन्हें आत्मा के समीप रखा है,परन्तु उनमें से भी कुछ ही हैं जो आत्मा में प्रवेश कर पाते हैं। मनुष्य अपनी आत्मा को जान कर ही परमात्मा के समीप पहुँच सकता है क्योंकि हमारी आत्मा ही है जो परमात्मा का अंश है, शरीर तो नश्वर है और समाप्त हो ही जाना है परन्तु आत्मा भी परमात्मा के समान अनश्वर है और परमतत्व तक पहुँचने का ज़रिया भी।
Friday, January 14, 2011
जो लोग गल्त ढ़ग से पैसा कमाते हैं उनकी आत्मा उन्हें सदा ही कटोचती रहती है और वह कभी सुख-शांति के अधिकारी नहीं होते। गल्त काम से कमाया हुआ पैसा मनुष्य के मन, बुद्धि और आत्मा को आहत करता है और मनुष्य कायर बन जाता है। आत्मविश्वास रख के उचित आदर्शों के साथ अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए और समय आने पर सफलता अपनेआप उपलब्ध हो जाती है।
Thursday, January 13, 2011
परमात्मा का दुर्बल रूप है मनुष्य। हम सभी परमतत्व का ही अंश है और उसी में लीन हो जाना है,मनुष्य संसार में आने से पूर्व परमात्मा से विनती करता है कि मनुष्य रूप में जन्म लेने के बाद वह सिर्फ और सिर्फ परमात्मा को ही स्मरण करेगा परन्तु जन्म लेते ही वह यह बात भूल जाता है और दुनिया की माया में फँस कर रह जाता है, पैसे की होड़ उसे कहीं सुख-चैन नहीं लेने देती और न ही उसकी इच्छाओं का कोई अन्त रहता है। इस सारी दौड़-धूप में वह सबसे ज़रूरी कर्म यानि परमात्मा को ही भूल जाता है और अपना मानव जीवन व्यर्थ गवाँ देता है।
Wednesday, January 12, 2011
जीवन में व्यक्ति कई तरह के अनुभव पाता है कुछ अच्छे और कुछ बुरे, बेहतर यादें और दुखदायी यादें परन्तु यदि हम केवल बेहतर अनुभवों को याद रखें तो यह हमारे हित में होगा क्योंकि दुखदायी क्षण आज भी हमे दुख ही देगें और हमारे जीवन को दुखदायी बना देगें। जीवन अमूल्य देन है जो हमे भगवान ने इसलिए प्रदान किया है ताकि हम ईश्वर की ओर अपने यह कदम बढ़ा सकें और उनको पा सकें।
Tuesday, January 11, 2011
सभी धार्मिक ग्रंथ यही कहते हैं कि माँसाहार न करें और यही जीवन जीने की कला भी है कि ईश्वर ने जब इतना वनस्पति बनाया है तो बेचारे मूक जानवरों की हत्या क्यों की जाए और क्यों उनकी बददुआ ली जाए। भय के साए में काटा और पका भोजन क्या हमें कुछ भी पोषण प्रदान करेगा? इसका निर्णय आप स्वयं ही ले सकते हैं। ईश्वर ने हमारे शरीर की रचना ही इस प्रकार की है जो कि केवल शाकाहारी आहार के लिए उपयुक्त है और यदि हम फिर भी भगवान के बनाए इस मंदिर में कूड़ा करकट डालना चाहते हैं तो आगे सज़ा भुगतने के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए।
Monday, January 10, 2011
मनुष्य को इस बात से अवगत रहना चाहिए कि किसी के भी सामने अपना दुखड़ा न रोए क्योंकि किसी के भी आगे रोने से दुनिया वाले को मज़ाक ही बनाएगें यदि दुख इतना तीव्र हो जाए और रोना ही हो तो ईश्वर के आगे ही रोएँ क्योंकि इस प्रकार आप ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पित भी हो जाएँगे और उसी के आगे रोएँगे जो सही मायने में आपके दुख से पूर्ण परिचित हैं और आपके सबसे बड़े हितैषी भी ।
Friday, January 7, 2011
उनसे प्रेम करें जिन्हें दुनिया ने सदा दुत्कारा है, उनसे जिन्हें सदा ही इस जग से दुख के अलावा कुछ नहीं मिला क्योंकि जिनके पास सब कुछ है उनसे तो सभी प्रेम का दिखावा करते हैं, परन्तु जो भगवान का सच्चा भक्त है वो ईश्वर के बनाए गरीब-अनाथों से भी प्रेम करता है। आज आपके पास सभी कुछ है यदि कल न भी रहे तो भी ईश्वर को सदा स्मरण रखिए क्योंकि जिनके साथ ईश्वर है वो ही सबसे भाग्यशाली हैं।
Thursday, January 6, 2011
इस दुनिया में हर तरह के लोग रहते हैं कुछ सज्जन और कुछ दुर्जन। सज्जनो के साथ उदारता और समझदारी की नीति ही अपनाई जाती है परन्तु दुर्जनो को दंड भय के अलावा समझाने का कोई चारा नहीं, उनके साथ उदारता से नहीं बल्कि असहयोग, और विरोध का मार्ग अपनाना पड़ता है। जिस प्रकार पाप और पुण्य में अंतर होता है उसी प्रकार मनुष्य, मनुष्य में भी भिन्नता होती है, इसलिए स्थिति और स्तर के अनुरूप ही व्यवहार करना उचित रहता है।
Wednesday, January 5, 2011
स्वस्थ जीवन के लिए बहुत आवश्यक है कि मन से शत्रुता, ईर्ष्या,अशांति, द्वेष, घृणा,आशंका के भाव दूर भगा दिए जाएँ और ईश्वर पर अंनत विश्वास रख हिम्मत और साहस बटोरना चाहिए। सदैव हँसते- मुस्कुराते रहें, स्वयं भी खुश रहें और दूसरों को भी प्रसन्न रखें, सदा सात्विक विचार और आचरण रखें यही स्वस्थ जीवन की कुंजी है और सफल जीवन का राज़।
Tuesday, January 4, 2011
Monday, January 3, 2011
मनुष्य के लिए सबसे बहूमूल्य वस्तु है जीवन,जो ईश्वर की सबसे बड़ी सौगात है और जिसकी कीमत हीरे से भी ज्यादा हैं क्योंकि हीरा जिस प्रकार कोयले से ही बनता है पर वह कोयले का सुगढ़ रूप है उसी प्रकार जीवन अनगढ़ों के लिए सोने और खाने से ज़्यादा और कोई महत्व नहीं रखता। इसी दुनिया में वह सुगढ़ भी हैं जिनके लिए इन पंचतत्वों से निर्मित यह जीवन इतना महत्वपूर्ण है कि उनके जीने के ढंग से यह झलकता है कि "जीना इसी का नाम है" और वह स्वयं देवत्व का ही उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
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