Friday, December 31, 2010
Thursday, December 30, 2010
"सादा जीवन उच्च विचार" ही जीवन का सिध्दांत होना चाहिए। जीवन में समय प्रबंधन नितांत आवश्यक हैं, समय बहुत ही कीमती हैं इसका एक भी क्षण व्यर्थ न गवाएँ।
समय के साथ ही पैसे की एक पाई भी व्यर्थ न जाए इस बात का ख़्याल रखें क्योंकि पैसे की बरबादी यानि श्रम की बरबादी और पैसे की बरबादी अंत में सभी विपत्तियों को दावत देती है।
इसके साथ-साथ इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी बहुत ही जरूरी हैं, जब आवश्यकता हो तभी खाएँ, मनुष्य इस प्रवृति का जानवर हैं कि भूख न होने पर भी उसे जीभ के चटोरेपन के कारण कुछ न कुछ खाने की आदत हैं। अनावश्यक आकर्षण एवं कामुकता से भी स्वयं को बचा कर रखें।
समय के साथ ही पैसे की एक पाई भी व्यर्थ न जाए इस बात का ख़्याल रखें क्योंकि पैसे की बरबादी यानि श्रम की बरबादी और पैसे की बरबादी अंत में सभी विपत्तियों को दावत देती है।
इसके साथ-साथ इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी बहुत ही जरूरी हैं, जब आवश्यकता हो तभी खाएँ, मनुष्य इस प्रवृति का जानवर हैं कि भूख न होने पर भी उसे जीभ के चटोरेपन के कारण कुछ न कुछ खाने की आदत हैं। अनावश्यक आकर्षण एवं कामुकता से भी स्वयं को बचा कर रखें।
Wednesday, December 29, 2010
Tuesday, December 28, 2010
यह नितांत आवश्यक हैं कि मन में जो भी विचार उठे वह इस स्तर के हो कि आपको प्रेरित करें बजाय इसके कि आपको गर्त में धकेल दें इसी लिए सदा सद्विचार ही रखें और सदैव सबका भला करें यदि भूल से भी किसी के प्रति राग-द्वेश का भाव जागे तो उसे त्याग कर ईश्वर में मन लगाए एवं स्रष्टा के बनाए इस संसार की प्रंशसा कीजिए।
Monday, December 27, 2010
हम मनुष्य पशु-पक्षियों को देख बहुत कुछ सीख सकते हैं, पशु-पक्षी इतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं जिसमें वह स्वयं समा सके एवं उतना ही दाना चुगते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता हैं, वह इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि स्रष्टा के साम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं, जब जिसकी जितनी जरूरत हैं आसानी से मिल जाता है,तो फिर संग्रह क्यों किया जाए? इसी प्रकार यदि हम भी उतना ही लें जिसकी आवश्यकता हैं और संग्रह की मनोवृति त्याग दें तो हम भी सुखी होगें और बाकी सब भी। अनावश्यक कलह की स्थिति अनावश्क संग्रह के कारण ही पनपती हैं इस बात को सदा ध्यान में रखें।
Friday, December 24, 2010
आँखे भगवान की सबसे बड़ी नियामत हैं। आँखो के होने के कारण ही हम इस परमपिता की उत्कृष्ट कृतियों को देख सकते हैं। परन्तु जो व्यक्ति आँखे होने पर भी अदूरदर्शी हैं यानि जीवन जैसे अमूल्य हीरे को काँच समझ कर जी रहा हैं और भविष्य के उज्ज्वल सपने देख उनका निर्माण नहीं कर सकता वह परमात्मा की दी हुई इस अमूल्य निधि को गवाँ रहा हैं।
Thursday, December 23, 2010
मनुष्य इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड का अल्प स्वरूप है। परमात्मा का अंश है, परन्तु इस बात से कितना अनभिज्ञ हैं। अपनी ही मृग मरीचिका में जीवन जी रहा है, पेट और प्रजनन के आगे उसे कुछ नहीं सूझता, वह जीवन की सबसे बड़ी जरूरत ईश्वर को ही भुला बैठा जिसने उसे जीवन जीने की सभी नियामतें प्रदान की। मनुष्य ने अपनी एक ऐसी दुनिया बना ली जिसमें ईश्वर का कोई स्थान नहीं और पैसा ही सब कुछ है, पर मनुष्य को यह बात समझनी ही होगी की ईश्वर प्रेम और भक्ति से बड़ा जीवन में और कुछ भी नहीं है।
Wednesday, December 22, 2010
ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, याचना नहीं। भगवान से जीवन के हर संघर्ष से लड़ने की शक्ति माँगिए, जब भी किसी दुविधा में हो तो ईश्वर से मदद लीजिए क्योंकि वह तो परमपिता हैं और हम उनकी संतान परन्तु याचक मत बनिए, यदि कुछ माँगना ही हैं तो आत्मबल की कामना कीजिए, इसी आत्मबल के सहारे और ईश्वर में सच्ची आस्था रख आप जीवन की किसी भी परीक्षा से जूझ सकते हैं।
Tuesday, December 21, 2010
Monday, December 20, 2010
Saturday, December 18, 2010
ईश्वर को सबसे प्रिय हैं दुःख और इसे संभाल कर रखने के लिए वह देते हैं केवल अपने सबसे प्रिय भक्तों को क्योंकि ज्यादातर लोग कष्ट को मजबूरी की तरह सहते हैं। कुछ ही भक्त हैं जो यह जानते हैं कि दुख हमारी आत्मा को पवित्र करने की प्रक्रिया हैं एवं नितांत आवश्यक हैं। जिस प्रकार सोने को आग में तपना जरूरी है, उसी प्रकार दुख ईश्वर की धरोहर हैं और वह इसलिए मिलते हैं ताकि दुख मिलने के बाद भी यदि भक्त के आनंद, उल्लास और उत्साह में कभी कोई कमी न आए तो वही सच्चा भक्त हैं।
Thursday, December 16, 2010
Wednesday, December 15, 2010
विद्वान ऋषि कहते है- "तद्विज्ञाने न परिप यन्ति धीरा आनंद रूपमर्भृतम्।" अर्थात ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अंतःकरण में विराजमान उस आनंदरूपी ब्रहं का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों से भी परम-ज्ञानी हो जाते हैं। यानि सम्पूर्ण ब्रहांड का ज्ञान परमात्मा के रूप में हमारे भीतर हैं, केवल खोजने की आवश्यकता हैं।
Tuesday, December 14, 2010
परमात्मा’ शब्द में ही जीवन का सत्य छिपा हैं, जिसने ईश्वर को नहीं समझा उसने जीवन से कुछ नहीं सीखा, जो व्यक्ति यह महसूस करता हैं कि हर पल हर क्षण वह ईश्वर को ही स्मरण करता हैं, उसकी कोई भी खुशी प्रभु बिन अधूरी है, उसे जिसे जीवन का कोई सुख परमात्मा के नाम से जुदा नहीं कर सकता और जो हरेक प्राणी में उस परम तत्व को ही ढूढ़ता हैं वही ईश्वर को समझ सकने का दम भर सकता हैं, केवल आडम्बर और दिखावा कर प्रभू को पाना असंभव हैं। भगवान भक्त का प्रेम देखते हैं, उसके पूजा-अर्चना का तरीका चाहे जैसा हो,चाहे साधनों का आभाव ही क्यों न हो, भगवान चढावे के रूप में भक्त के आँखो से बहे प्रेम भरे अश्रुओं को भी ग्रहण करते हैं।
Monday, December 13, 2010
जो मनुष्य जीवन की कठिनाइयों से डर कर पलायन का मार्ग अपनाए वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं हैं, परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही इतना सर्मथ दिया हैं कि वह हर परिस्थिति से जूझ सके और यह ही प्रकृति का नियम भी हैं कि जो गलता हैं वही उगता हैं। प्रसव पीड़ा के बाद ही संतान सुख की प्राप्ति होती हैं, कच्चे मिट्टी के बर्तन पानी की एक बूंद भी सहन नहीं कर पाते परन्तु जो बर्तन आग की तपिश में पक कर तैयार किए जाते हैं उनकी उपयोगिता और शोभा और स्थिरता बनी रहती हैं।पूर्ण मनुष्य बनने के लिए जीवन रूपी भट्टी में तपना ही होगा, और ईश्वर को भी स्मपूर्ण मनुष्य स्वीकारणीय हैं।
Friday, December 10, 2010
"Silence is Golden". Sometimes what words can't say silence can. Silence is the sound of God, listen carefully what He wants to say in Silence.Sometimes Silence can calm you much better than soothing music.Silence can nurture relations which words sometimes cannot.Silent prayers are always answered by God.In essence Silence is not only golden it's magical.
Thursday, December 9, 2010
यदि मनुष्य स्वयं को सुधारना चाहे तो लोक से लेकर परलोक तक सुधार का मौका होता हैं पर जरूरत है पहल करने की, यदि मनुष्य एक कदम ईश्वर की ओर बढाता है तो ईश्वर हज़ारो हाथो से उसका स्वागत करते हैं। यह बात हमें सर्वदा स्मरण रहनी चाहिए कि आध्यात्म का लक्ष्य केवल आत्मकल्याण एवं मोक्ष प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि स्वयं सत्मार्ग पर चल औरों को भी प्रेरित करना हैं।
Wednesday, December 8, 2010
बच्चे अपने माता-पिता को उनके हाल पर छोड़ सकते हैं परन्तु माँ-बाप ऐसा कभी नहीं कर सकते, उन्हें तो हर हाल में अपने बच्चों की ही चिन्ता सताती हैं। बच्चे स्वार्थी हो अपनी अलग दुनिया बसा सकते हैं पर माता-पिता के लिए तो उनकी दुनिया उनके बच्चे ही होते हैं। इसी तरह हम सभी परमपिता की संतान हैं और ईश्वर हमें सदैव स्मरण रखते हैं।
Tuesday, December 7, 2010
Monday, December 6, 2010
जीवन में कितनी ही असफलताएँ क्यों न आएँ परन्तु एक न एक मार्ग ऐसा अवश्य होता है जहाँ रोशनी की नन्हीं किरण टिमटिमाती रहती हैं और वह रास्ता हैं प्रभु में आस्था का परन्तु इसका भावार्थ यह नहीं कि जब जीवन में मुश्किल आए तभी ईश्वर को याद करें यहाँ कबीर का दोहा बहुत ही सटीक हैं कि दुख में सिमरन सब करे सुख में करे न कोई, जो सुख में सिमरन करे तो दुख काए को होए॥
Friday, December 3, 2010
Thursday, December 2, 2010
पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, नदियाँ एवं जलाश्य अपना पानी स्वयं नहीं पीते, सूर्य-चन्द्रमा अपने प्रकाश और शीतलता से औरों को सनिग्ध करते हैं उसी प्रकार मनुष्य का जन्म भी इस धरती पर परोपकार के लिए हुआ है। भगवान जब मनुष्य के कर्मो का लेखा-जोखा करता हैं तब इसी बात का आकलन किया जाता हैं कि मनुष्य ने अपने जीवन का कितना भाग परोपकार में बिताया हैं, यदि मनुष्य ने सौ झूठ बोलकर भी किसी की भलाई की हो तो वह परमपिता के अनुसार क्षमाशील हैं। जितना संभव हो अपना जीवन परोपकार में लगाएँ क्योंकि अपने लिए तो पशु भी जीते है, इंसान वही हैं जो औरों के लिए जिए।
Wednesday, December 1, 2010
प्रभु नाम एक अनुपम निधि हैं, जो कि खर्चने से और बढ़ती है, खर्चने का मतलब इससे हैं कि हम जितना ही प्रभु नाम लेगें और उसका प्रचार करेंगे वो चौगुना होकर हमें प्राप्त होगा और जीवन के सबसे बड़े सत्य से हमें अवगत करवा देगा कि ईश्वर ही हमारे सबसे बड़े सम्बन्धी हैं और अंनत तक केवल उनके ही साथ हमारा सम्बन्ध बना रहेगा बाकी सभी दुनियावी रिश्ते इसी दुनिया में समाप्त हो जाएँगे।
Tuesday, November 30, 2010
कुछ लोग जीवन में सदा रोते ही रहते हैं या भगवान को दोष देते रहते हैं कि भगवान ने उन्हें यह नहीं दिया, वह नहीं दिया, परन्तु इस दोषारोपण से पहले वह भूल जाते हैं कि परमपिता ने सभी को समान सामर्थ और समान इन्द्रियाँ दी हैं, शरीर के सभी अंग जो ईश्वर ने हमें दिए हैं वह अमूल्य हैं और सबसे बड़ी शक्ति जो परमात्मा ने हमें दी हैं वह हैं प्रार्थना करने की अमूल्य निधि जिसकी तुलना सारे जग की सम्पति से भी नहीं की जा सकती। मन को ईश्वर प्रेम और भक्ति में लगाए रखना ही मानव की अतुलनीय संपदा हैं।
Monday, November 29, 2010
Wednesday, November 24, 2010
Tuesday, November 23, 2010
मनुष्य के जीवन पर सर्वप्रथम अधिकार ईश्वर का होता है, दिव्तिय उस मातृभूमि का जिसमें मनुष्य ने जन्म लिया, तीसरा माता-पिता का जिनकी वजह से यह संसार दिखा और अंतिम स्वयं मनुष्य का खुद पर।
जिस परमपिता ने जीवन जैसा अमूल्य उपहार प्रदान किया वह हर क्षण वंदनीय हैं।
मातृभूमि जिसमें हमारे पोषण के लिए अन्न उपजा उसका उपकार हम कभी नहीं उतार सकते।
माता-पिता जो कुछ भी संतान के लिए करते हैं वह अतुलनीय हैं, उसकी एकमात्र तुलना हैं ईश्वर प्रेम, जिस प्रकार ईश्वर कोई भेदभाव नहीं करते और अपनी सभी संतानो से समभाव से प्रेम करते है, उसी प्रकार माता-पिता अपना दुलार हम पर लुटाते हैं।
अंतिम हक मनुष्य का स्वयं के जीवन पर हैं।
जिस परमपिता ने जीवन जैसा अमूल्य उपहार प्रदान किया वह हर क्षण वंदनीय हैं।
मातृभूमि जिसमें हमारे पोषण के लिए अन्न उपजा उसका उपकार हम कभी नहीं उतार सकते।
माता-पिता जो कुछ भी संतान के लिए करते हैं वह अतुलनीय हैं, उसकी एकमात्र तुलना हैं ईश्वर प्रेम, जिस प्रकार ईश्वर कोई भेदभाव नहीं करते और अपनी सभी संतानो से समभाव से प्रेम करते है, उसी प्रकार माता-पिता अपना दुलार हम पर लुटाते हैं।
अंतिम हक मनुष्य का स्वयं के जीवन पर हैं।
Monday, November 22, 2010
Friday, November 19, 2010
भगवान हर जगह जगह हैं परन्तु वह हमें दिखाई नहीं देते, हर कण में व्याप्त हैं परन्तु उनके होने का अहसास हम इस बात से लगा सकते हैं कि हर घर में ईश्वर ने अपने प्रतिनिधि माता-पिता हर किसी को दिए हैं, बहुत खुशकिस्मत हैं वो बच्चे जिन्हें उनके माता-पिता का प्रेम और दुलार मिला हैं, दुनिया का हर रिश्ता इस प्रेम के आगे फीका हैं क्योंकि जिस तरह माता-पिता हमसे अनन्त प्रेम करते हैं परमपिता भी अपनी हर कृति से स्नेह रखते हैं और अपनी हर संतान की कामना पूरी करते हैं बशर्ते उस मनुष्य ने अपनी कामना के अनुसार कर्म किए हैं।
किसी ने सच ही कहा है कि भगवान होते हुए भी हमसे अनभिज्ञ हैं और पृथ्वी पर माता-पिता ही उस विधाता की पहचान हैं।" हे परमात्मा मैं आपको आपकी सर्वोतम कृति माता-पिता को रचने के लिए शत्-शत् प्रणाम एवं धन्यवाद करती हूँ।"
किसी ने सच ही कहा है कि भगवान होते हुए भी हमसे अनभिज्ञ हैं और पृथ्वी पर माता-पिता ही उस विधाता की पहचान हैं।" हे परमात्मा मैं आपको आपकी सर्वोतम कृति माता-पिता को रचने के लिए शत्-शत् प्रणाम एवं धन्यवाद करती हूँ।"
Thursday, November 18, 2010
जीवन लम्बा नहीं ईश्वर प्रेम से ओत-प्रोत होना चाहिए, जो तभी संभव हैं जब मनुष्य धरती की हरेक वस्तु में केवल परमानन्द को ही देखें, क्योंकि हर जगह सृष्टि के कण-कण में परमपिता का ही रूप ही तो व्याप्त हैं, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, आकाश, वन-उद्यान, पशु-पक्षी सभी कुछ प्रभु ने ही तो रचा हैं और ईश्वर की महानतम रचना हैं मानव जिसको भगवान ने विवेक दिया हैं, मानव शरीर और बुद्धि को इतना प्रखर बनाया हैं कि खुद मनुष्य भी यदि चाहे तो देवता बन सकता हैं।
Wednesday, November 17, 2010
अंधकार विशाल होता हैं,वह शक्तिवान एवं भयावह होता हैं, यह तो नींद को धन्यवाद हैं कि वह हमें विस्मृति में धकेल देती है, नहीं तो रात की यह अवधि पर्वत के समान भारी लगे। परंतु इस विशालमय रात को एक नन्हा सा दीपक चुनौती दे यह कहता हैं कि दिन का उजाला अब ज्यादा दूर नहीं। इसी प्रकार मनुष्य जीवन अंधकारमय और भयावह चुनौतियों से भरपूर हैं और ईश्वर में आस्था वह नन्हा दीपक जो हमें संदेश देता हैं कि उज्ज्वल सुनहरी सुबह नज़दीक ही हैं।
Tuesday, November 16, 2010
भगवान को पाना हैं तो निरंतर प्रयास करना होगा, मन को इस तरह से सिखाना होगा कि भगवान का ध्यान छोड़ मन कहीं और न रमे क्योंकि जिस संसार में हम रहते हैं और उसको सच समझ लेते हैं वह तो ईश्वर की रची माया के अलावा कुछ भी नहीं, इस दुनिया में परमपिता से ज्यादा कोई हमारा सगा नहीं, यह बात हम जिस दिन महसूस करने लगेगें उसी क्षण हमारे सर्वत्र कष्ट मिट जाएँगे और अपना जीवन हमें वरदान स्वरूप लगने लगेगा।
Monday, November 15, 2010
जीवन की शुरूआत रोते हुए भले हो पर जीवन का अंत हमेशा हँसते हुए करें,क्योंकि हम जब दुनिया में आते हैं तो नादान छोटे बच्चे होतें हैं परन्तु दुनिया से जाते हैं परिपक्व एवं समझदार हो कर, जीवन के सभी अनुभव लेकर, ईश्वर की अराधना हमें न सिर्फ महामानव बल्कि देवत्व तक ले जाती हैं और हर मानव के जीवन का यही तो गहन मर्म हैं।
Friday, November 12, 2010
Thursday, November 11, 2010
Wednesday, November 10, 2010
जिदंगी और मौत दोनो परमात्मा के हाथ हैं,न जाने कब जीवन की डोर खिंच जाए इसीलिए जो अनमोल जीवन परमपिता का महान अनुदान हैं उसका एक भी क्षण व्यर्थ न गवाएँ, हर पल यह ही चेष्टा करें कि आप समाज के प्रति कुछ योगदान अवश्य करें। चाहे वह गरीब अनाथ की सेवा हो या भूखे को अन्नदान,जितना हो सके अपने स्तर पर ज़रूर करें।
Tuesday, November 9, 2010
यदि परमात्मा पर विश्वास हो तो सभी कुछ कितना सरल हो जाता हैं यह तो एक आस्तिक ही बता सकता हैं, जीवन में कोई शंका शेष नहीं रह जाती, आस्तिक का योगक्षेम वहन स्वयं ईश्वर ही करते हैं, भक्त की हर व्यथा उसकी अपनी न रह कर समाप्त हो जाती हैं। ईश्वर से प्रेम हो जाने पर स्वतः ही सारी दुनिया आपको अपनी सी लगने लगती हैं और सच ही तो हैं इस सम्पूर्ण विश्व का रचयिता परमात्मा ही तो आपके सबसे अपने हैं, उनके सिवा कोई भी नहीं जो सर्वदा आपके साथ हैं।
Monday, November 8, 2010
आपको जब कभी ऐसा लगे कि आपको किसी ने आवाज़ दी हैं परन्तु यह पता न चले कि किसने पुकारा हैं तो निश्चित रूप से समझ लीजिए कि यह अपनी ही अंतरात्मा की पुकार है जो मनुष्य को सचेत कर रही हैं कि यह बहूमूल्य जीवन धीरे-धीरे हाथ से निकलता जा रहा हैं और यदि ऐसा ही चलता रहा तो परमपिता का यह अमूल्य अनुदान व्यर्थ न चला जाए।
Friday, November 5, 2010
By the grace of God we have Festivals to celebrate which gives us utmost faith that God is present everywhere and anywhere. So do all your karmas which put you to the right path of spirituality and do not hurt others as all the festivals give only one message that Goodness prevails. So be the true child of God and be good to others.
Thursday, November 4, 2010
जीवन के अच्छे कर्म ही मनुष्य को देवता बना देते हैं,अपने समर्थ के अनुसार सबकी सहायता करने की कोशिश करें,चाहे वह सहायता किसी एक व्यक्ति तक ही सीमित क्यों न हो, क्योंकि हर एक मनुष्य उस विराट जगत विधाता का अंश ही तो हैं, इसलिए जो सेवा आप किसी के लिए करते हैं वह परमात्मा तक ही पहुँचती हैं।सबकी सेवा करें यही परमार्थ हैं।
Wednesday, November 3, 2010
Have you ever felt all alone in this big wide world?
Have you ever felt there is nobody to help you throughout the way?
Have you ever felt that smile dosen't reach your face often no matter how festive it is?
Have you ever felt that there is no shoulder upon which you may cry?
If Yes
Then Surrender Yourself to the Almighty and you'll never feel alone in this world,and all your worries are His but mind you "Prayer is not a spare Wheel that you pull out when in trouble but It is the steering wheel that guides you to the right direction throughout."
Have you ever felt there is nobody to help you throughout the way?
Have you ever felt that smile dosen't reach your face often no matter how festive it is?
Have you ever felt that there is no shoulder upon which you may cry?
If Yes
Then Surrender Yourself to the Almighty and you'll never feel alone in this world,and all your worries are His but mind you "Prayer is not a spare Wheel that you pull out when in trouble but It is the steering wheel that guides you to the right direction throughout."
Tuesday, November 2, 2010
यह जीवन यदि व्यर्थ चला गया तो फिर पीछे पछताने के अलावा कोई चारा न रह जाएगा क्योंकि एक बार हाथ से निकल गया तो न जाने फिर कितनी योनियाँ भुगतने के बाद ही यह बहूमूल्य मानव जीवन प्राप्त होगा इसीलिए समय रहते ही सचेत हो जाने में समझदारी हैं, देर करने से नुकसान केवल हमारा हैं। अपने इस बेशकीमती जीवन को अर्थपूर्ण बनाएँ, मानवता की सेवा करें।
Monday, November 1, 2010
भगवान ने यह अमूल्य मानव जीवन इसीलिए प्रदान किया हैं कि इसको वाकई अमूल्य बनाया जाए, व्यर्थ की बातों में समय न गवाँ कर हमेशा इस तरह अपना समय व्यवस्थित करें कि प्रभु नाम के साथ-साथ दूसरों का भला करने का भी पूरा मौका मिल सके और मानव जीवन जो बहुत मुश्किलों के बाद हमें मिला हैं वो कहीं व्यर्थ न चला जाए और परमपिता की ओर हमारा कर्तव्य कहीं अधूरा न रह जाए।
Friday, October 29, 2010
भगवान के वरिष्ठ राजकुमार होने के नाते विश्व की समस्त वस्तुओं पर आपका समान अधिकार हैं, पहाड़ आपके, नदियाँ आपकी, वन-उद्यान अपने, बशर्ते कि आप संग्रह न करें,जितना आवश्यकता हो उतना ले लें और बाकी दूसरों के उपयोग के लिए छोड़ दें क्योंकि मिल-बाँट कर खाने की नीति ही सुखकर हैं और सबको सुख देना ही तो परमात्मा चाहते हैं, क्योंकि वह परमपिता हैं और अपनी संतान का सदैव सुख ही चाहते हैं।
Thursday, October 28, 2010
इस सरस्वती की प्रतिनिधि जिह्वा से सात्विक अस्वाद भोजन और मधुर हितकारी वचन बोलने की साधना करनी चाहिए तभी तो हम सचमुच में माँ का वरदान सही अर्थों में पा सकेगें क्योंकि जिस प्रकार अन्य देवी-देवताओ से प्रार्थना करते हैं और वरदान प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारी जबान को भी बिना नमक और चीनी का भोजन और मधुर वचन बोलने की साधना भी करनी चाहिए।
Tuesday, October 26, 2010
Monday, October 25, 2010
जीवन ईश्वर की अमूल्य देन हैं इसे दूसरों की भलाई,बुराई में न बिताएँ।सबकी अच्छाई ही देखें और जिस प्रकार अपनी बुराईयाँ नज़र अंदास करते हैं उसी तरह हर व्यक्ति को उसकी बुराईयों एवं कमियो के साथ ही अपनाएँ। सम्पूर्ण ब्रह्माड स्वयं ईश्वर और उनका स्वरूप ही तो हैं, जरूरत हैं उनके हर रूप को अपनाने की जो तभी संभव हैं जब आप सिर्फ हर मनुष्य को अपने ही समान परमात्मा का वरिष्ठ राजकुमार ही मानें।
Friday, October 22, 2010
विद्वानों ने कहा है कि आध्यत्मिकता का दूसरा नाम प्रसन्नता हैं, जो प्रफुल्लता से जितना दूर हैं वह ईश्वर से भी उतना ही दूर हैं। वह न तो आत्मा को जानता हैं न ही परमात्मा की सत्ता को। सदैव झल्लाने, खीझने वाले और उदासीन रहने वाले व्यक्तियों को ऋषियों ने नास्तिक ही बताया हैं। जो सदा हँसता-मुस्कुराता हैं वह ईश्वर का ही प्रकाश सब ओर फैलाता हैं। रोना एक अभिशाप हैं और हँसना एक ऐसा वरदान हैं जो जीवन के वर्तमान को तो सँवारता ही हैं,परन्तु भविष्य को भी उज्ज्वल बनाता हैं। भगवान ने जो कुछ भी बनाया और उपजाया हैं वह सभी को खुश रखने के लिए बनाया गया हैं, जो कुछ बुरा और अशुभ हैं वह मनुष्य को प्रखर बनाने के लिए रचा गया हैं ताकि मनुष्य जीवन के संर्घषो से सबक ले सके और अपने अनुभवों से दूसरों को भी सीख दे सके। इसलिए सदा हँसते रहे और दूसरों को हँसाते रहें यही सच्चा आध्यात्म हैं।
Thursday, October 21, 2010
दुनिया में दो ही तरह के लोग सुखी रह सकते है एक जो है मूढ़तम या दूसरे बहुत ही प्रखर बुद्धि वाले। मूढ़तम वह जो पेट-प्रजनन के ऊपर कुछ सोच ही नहीं सकते और प्रखर बु्द्धि वह जो विचार संपदा के आधार पर मिलने वाली रिद्धि-सिद्धियो को पाकर समाज एवं देश के
मार्गदर्शक बनते हैं। ऐसे ही व्यक्ति सबका श्रेय-सम्मान पाते हैं और हर किसी को परांगत बुद्धि प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए।
मार्गदर्शक बनते हैं। ऐसे ही व्यक्ति सबका श्रेय-सम्मान पाते हैं और हर किसी को परांगत बुद्धि प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए।
Wednesday, October 20, 2010
आपकी बहुत कृपा है भगवान कि अपने ही रूप में आपने हमें हमारे पिता प्रदान किए जिन्होने जीवन में सदा हमे सही मार्ग पर ही चलना बताया,एक गुरू बन जिन्होने हमें आपसे(परमात्मा) जोड़ दिया और हमारे जीवन को दिया एक सच्चा अर्थ जो हैं केवल ईश्वर से जुड़ कर उनके सम ही बन जाना।
जिस प्रकार महापुरूषों का जन्मदिवस किसी विषेश दिन होता हैं उसी प्रकार भगवान ने आपको इस समर्थ बनाया हैं कि आपका जन्मदिन भी किसी दिन विषेश(दिवाली, दशहरा) पर होता हैं जो कि ईश्वर का हम सभी को संकेत हैं कि आप इस जग में एक महान आत्मा(संत) हैं। हमारा जीवन सौभाग्यशाली हैं कि आपसे जुड़ा हैं एवं इसके लिए हम परमात्मा को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
आपको कुछ भेंट दे इस कामना से ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि आपके जीवन का हर क्षण ईश्वर के सान्निध में बीते एवं आपके महान कार्यों से हम सदा हम प्रेरणा ले।
Tuesday, October 19, 2010
All the other dad's give gifts to their children on festivals and occassions but mine gives us the most precious gift of knowledge and wisdom everyday. His sharing time with us are the most cherished moments for us. May God bless him and blesses us that we are his children for every human birth we get .
Friday, October 15, 2010
स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। ईश्वर ने यह संसार असीम बनाया हैं कोई भी समग्र रूप से इसकी सेवा कर सके ऐसा लगभग असंभव ही हैं क्योंकि कई तरह की बाधाएँ जैसे समय की कमी, योग्यता की कमी, साधनो की कमी, कभी भाषा अलग होने के कारण समस्त संसार की सेवा संभव नहीं। अतः अपने संपर्क और प्रभाव क्षेत्र में ही कुछ करते-धरते बन पड़ सकता हैं। यदि सीमित स्तर में भी यह करा जाए तो समाज का बहुत सुधार हो सकता है। इसकी न्यूनतम परिधि स्वयं की सुधारसेवा तक भी सीमित हो सकती हैं।
Thursday, October 14, 2010
कटुवचन बिच्छु के दंश के समान ही जहरीले एवं कष्टदायक होते हैं, यदि कटुवचन बोलने वाला निर्दोष ही क्यों न हो परन्तु सभी उसे ही दोषी ठहराते है और कोई उससे सहानुभूति नहीं रखता इसीलिए किसी को भी कटुवचन बोलने से परहेज़ करें और जीवन में किसी का भी दिल दुखाने से पहले सौ बार सोचें क्योंकि जिस प्रकार निकला हुआ तीर कमान में वापिस नहीं आ सकता उसी प्रकार कही हुई दुखदायी बात से आप पीछे नहीं हट सकते।
Tuesday, October 12, 2010
जीवन में सभी को सभी कुछ नहीं मिलता इसलिए दूसरों की निन्दा की परवाह किए बिना ही अपने पथ पर निरंतर चलते रहें। जीभ हरेक की अपनी है और उसे किसी को कुछ भी कहने की छूट हैं अतः अच्छा यही होगा कि उथले लोगों द्वारा कहे गए भले-बुरे पर ध्यान न दिया जाए। चाहे कोई हिमालय के समान महान ही क्यों न हो परन्तु उअस पर भी सिर ऊचाँ उठा के रहने एवं घमंडी होने का दोष लगेगा, समुद्र के सामान विशाल क्यों न हो,पर उसे भी खारा होने का कलंक झेलना ही पड़ेगा। जिस प्रकार काला चश्मा पहनने वाले को सब ओर काला ही नज़र आता हैं उसी प्रकार हर मनुष्य दूसरे को अपने ही तराजू में तोलता हैं और बुरा देखने वाले को कभी भला नज़र ही नहीं आ सकता।
Monday, October 11, 2010
Friday, October 8, 2010
जीवन में जो भी काम करें वह ईश्वर की साधना समझ कर कीजिए, यदि स्नान करें तो लगे कि ईश्वर का अभिषेक कर रहें हैं, यदि राह में किसी व्यक्ति से बात करें तो उसे ईश्वर की असीम परमसत्ता का अंश समझ उस पर अपने पुष्प रूपी बातें एवं मुस्कान बिखेर कर उसका अभिनंदन परमात्मा के समान करें, यदि शयन करना हो तो इस प्रकार के भाव से करें कि हे! ईश्वर आपका हर काम मैं पूर्णता से कर पाऊँ इसीलिए मुझे इस निद्रा की परम आवश्यकता हैं। अर्थात जीवन का हर कर्म साधना से जुड़ा हो और जीवन प्रभू की आरधना बन जाए तथा ईश्वरमय हो जाए।
Thursday, October 7, 2010
यदि ईश्वर की कृपा न होती तो आप इस अमूल्य मानव जीवन को न पा सकते
जीवन में जो कुछ मिला हैं,जैसा मिला हैं उसे ईश्वर की परम कृपा समझ स्वीकार करें और हर पल परम पिता को उनकी दयालुता के लिए धन्यवाद करें, आदर्शवादी जीवन का यही तो मर्म हैं। इस पथ पर चलते रहने से न केवल आप ईश्वर की परम कृपा के अधिकारी होगें,मोक्ष को भी प्राप्त होगें।
जीवन में जो कुछ मिला हैं,जैसा मिला हैं उसे ईश्वर की परम कृपा समझ स्वीकार करें और हर पल परम पिता को उनकी दयालुता के लिए धन्यवाद करें, आदर्शवादी जीवन का यही तो मर्म हैं। इस पथ पर चलते रहने से न केवल आप ईश्वर की परम कृपा के अधिकारी होगें,मोक्ष को भी प्राप्त होगें।
Wednesday, October 6, 2010
यदि परमात्मा पर सच्चा एवं अटूट विश्वास हो तो जीवन में सुख आए या दुख सभी एक चलचित्र की भांति लगता हैं क्योंकि जो भी हम पर बीत रहा हैं वह हमारे स्वयं के संचित कर्मो का ही तो फल है।
अतः विचलित हुए बिना अपनी आस्था ईश्वर में लगाए रखें और जो घटित हो रहा हैं उसे होने दें यही प्रभु की रज़ा हैं सोच खुले दिल और शांत मस्तिष्क से हर नयी सुबह का स्वागत करें।
अतः विचलित हुए बिना अपनी आस्था ईश्वर में लगाए रखें और जो घटित हो रहा हैं उसे होने दें यही प्रभु की रज़ा हैं सोच खुले दिल और शांत मस्तिष्क से हर नयी सुबह का स्वागत करें।
Tuesday, October 5, 2010
Monday, October 4, 2010
Friday, October 1, 2010
Thursday, September 30, 2010
Wednesday, September 29, 2010
प्रकृति का सूक्ष्म शरीर अदृश्य हैं। ध्वनि, प्रकाश, चुबंक की किरणें जब किसी के सम्पर्क में आते है तभी अपना बोध कराते हैं। उसी प्रकार अत्यत्न शक्तिशाली लेसर किरणें भी अदृश्य हैं। इसी तरह मनुष्य पशु वर्ग का एक प्राणी हैं, यदि स्थूल रूप से देखा जाए तो मनुष्य एक हाड़-माँस का पुतला ही तो हैं परन्तु उसकी सूक्ष्म क्षमता का कोई ओर-छोर नहीं है। अपनी सूक्ष्मता का ज्ञान होते ही मनुष्य में देवत्व का प्रवेश हो जाता है और उसका सामर्थ्य स्वयं परमात्मा के समतुल्य हो जाता हैं।
Tuesday, September 28, 2010
Monday, September 27, 2010
Friday, September 24, 2010
Thursday, September 23, 2010
हम परमपिता परमेश्वर की संतान है। सृजेता(ईश्वर) मे हमें इस संसार में जन्म दिया है और हमारे भविष्य का सम्पूर्ण भार उन्हीं पर निर्भर हैं। जिस प्रकार माता-पिता हमें जन्म दे हमें हमारे हाल पर भटकने के लिए नहीं छोड़ देते, बल्कि ताउम्र हमसे प्रेम रखते हैं और सदा ही हमारा हित सोचते हैं तो फिर परमपिता जो सर्वश्रेष्ठ पिता हैं वह हमसे विमुख कैसे हो सकते हैं? हमारे जीवन में जो भी अंधकार एवं आभाव हैं वह इसी कारण हैं क्योंकि हम यह भूल जाते हैं कि हम उस परमब्रह्म की इस विराट सृष्टि का एक अंग है जिसकी सुरक्षा एवं देखभाल का सम्पूर्ण दायित्व स्वयं भगवन ने अपने ऊपर ले रखा हैं और यदि हम अपने पंतग रूपी जीवन की डो़र ईश्वर के हाथ छोड़ देगें तो उनका निश्चल प्रेम हमारी नैया को भवसागर पार करा ही देगा ।
Wednesday, September 22, 2010
महान ऋषियों एवम् संतो ने कहा हैं कि मनुष्य जीवन से बहुमूल्य इस संसार में कुछ भी नहीं। जो मनुष्य मानव जीवन की इस गरिमा को नहीं समझते उनके लिए मानव जीवन और पशु-जीवन में कुछ खास अंतर नहीं हैं जिस प्रकार पशुयों में चैतन्यता का आभाव होने के कारण उनके लिए बहुमूल्य पदार्थो की कीमत भी दो कौड़ी की होती हैं, उसी प्रकार अचेतन मनुष्य भी आत्मगरिमा से उदासीन रहते हैं, अपने सभी सामर्थ्यों को कोयला बना हाथ मलते हुए पश्चात्ताप के आँसू लिए इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।
अतः यही उचित होगा कि परमात्मा के दिए गए इस महान अनुदान को जैसे-तैसे काटने की अपेक्षा सही अर्थों में मानव जीवन को और श्रेष्ठ एवं गरिमामय बनाया जाए ताकि पीछे पछताना न पड़े।
अतः यही उचित होगा कि परमात्मा के दिए गए इस महान अनुदान को जैसे-तैसे काटने की अपेक्षा सही अर्थों में मानव जीवन को और श्रेष्ठ एवं गरिमामय बनाया जाए ताकि पीछे पछताना न पड़े।
Tuesday, September 21, 2010
मरने से क्या डरना?? यह तो अटल सत्य हैं कि जो आया हैं वह जाएगा अवश्य इसलिए सदैव की मृत्यु के लिए तैयार रहना चाहिए। जिस प्रकार पुराने कपड़े उतार कर नए पहनना एक सुखद अनुभूति है उसी प्रकार जर्जर शरीर को नया जन्म तो लेना ही है। अतः इस शाशवत सच को अपनाने में और यथासमय गले लगाने में ही समझदारी हैं। जीवन के हर दिन को इस प्रकार जिएँ कि यही अंतिम दिन हैं और इसे भरपूर जीना हैं।
Monday, September 20, 2010
Friday, September 17, 2010
यह जग परमात्मा ने बड़ा ही विचित्र बनाया है, इसमें हर तरह के मनुष्य बनाए है, कुछ सुगढ़ है तो कुछ अनगढ़। हमारा सदा ही अपने जीवन में सुगढ़ एवं सुसंस्कृत व्यक्ति ही मिलते रहें ऐसा संभव नहीं क्योंकि यह संसार केवल हमारे लिए नहीं बना हैं और ईश्वर ने तरह-तरह के मनुष्यों के साथ हमें व्यवहार करना आए इस प्रकार का सुनियोजन किया है। इसलिए जीवन में जब भी अनगढो़ से पाला पड़े तो अपने व्यवहार में बदलाव लाना ही उचित हैं क्योंकि ऐसे लोगों से अनावश्यक उदारता बरतना स्वयं को बहुत मंहगा पड़ सकता है इसलिए सदा श्रेष्ठजनो से सदा प्रेरणा लें एवं दुराचारियों से इस प्रकार का व्यवहार रखें जिस प्रकार मनोरोगियों से रखा जाता हैं, न तो क्षमाशील बना जाए और न उपचार प्रक्रिया से मुख विमुख करें। इसी प्रकार अनगढ़ दुराचारियों में भी परिवर्तन लाया जा सकता हैं।
Thursday, September 16, 2010
Peace of mind is a state of mind which can only be acheived by doing good deeds and helping others. The satisfaction that you get by feeding a hungry, giving clothes to a needy is not the same when you feed yourself or wear your clothes. So make your life meaningful by proving to give meaning to someone else's life.
Wednesday, September 15, 2010
मनुष्य की अंतरआत्मा परमात्मा के ही समान सर्वगुण संपन्न हैं,वह इतनी संपन्न हैं कि उसकी संपन्नता में कभी अभाव नहीं हो सकता इसीलिए जब मनुष्य को अंतरंग की संपन्नता का ज्ञान होता हैं तो उसकी समस्त कामनाओ का स्वतः ही अंत हो जाता हैं और मनुष्य के जीवन में मॄगतॄष्णा का अंत हो जाता है, तब मनुष्य की कोई भी इच्छा शेष नहीं रह जाती एवं वह स्वयं में सम्पूर्ण हो जाता हैं।
Tuesday, September 14, 2010
मनुष्य को चाहिए कि हर अवस्था में वह अपनी मानसिक शांति बना कर रखें,चाहे सुख हो या दुख उसे किसी भी अवस्था को अपने मन पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जीवन की डगर ही इस प्रकार की हैं कि सुख-दुख का तो चोली दामन का साथ है, परन्तु सुख-दुख को अपने ऊपर से इस प्रकार गुज़र जाने देना चाहिए कि मानो एक अनजान राहगीर हो,क्योंकि उसे तो चले ही जाना हैं तो उसके लिए मन की शांति क्यों भंग की जाए।
Monday, September 13, 2010
सफलता उन्हीं के हाथ लगती हैं जो एक बार विवेकपूर्वक निर्णय लेने के बाद अपनी सारी शक्तियाँ उस ओर संगठित कर देते है और एक बार विचार कर निश्चय कर लेने पर बार-बार उसे नहीं बदलते,क्योंकि दृढ़ निश्चय ही व्यक्ति के आत्मविश्वास एवं योग्यता की वृद्धि करता हैं। अतः सफलता का मूल मंत्र विवेक से दृढ़ निश्चय कर उस पर अडिग रहना हैं।
Sunday, September 12, 2010
Friday, September 10, 2010
Thursday, September 9, 2010
यदि इच्छाशक्ति प्रबल हो तो संसार में कुछ भी प्राप्त किया जा सकता हैं,प्रबल इच्छाशक्ति वाला व्यक्ति जिस काम में हाथ डालता हैं वह उसे तब तक नहीं छोड़ता जब तक वह उस काम को पूरा नहीं कर लेता,फिर चाहे मार्ग में कितनी ही असफलताएँ क्यों न आएँ और यही उन्नति एवं सफलता का एकल मार्ग हैं। यह कहना अतिशोयक्ति न होगी कि संसार की समस्त सफलताएँ और आध्यात्मिक स्तर पर भी सफलताएँ उन्हीं को प्राप्त होती हैं जिनमें कड़ी मेहनत और लगन के साथ प्रबल और प्रखर इच्छाशक्ति का समावेश होता है, उनके लिए नामुमकिन ल्वज़ बना ही नहीं हैं।
Wednesday, September 8, 2010
यह सच है कि मानव मस्तिष्क भी मानव जीवन की ही तरह ईश्वर की देन हैं परन्तु दिमाग स्वयं सिद्ध विचार यंत्र नहीं है, इसे सही दिशा में सक्रिय बनाने के लिए प्रयत्न की आवश्यकता पड़ती हैं। जिस व्यक्ति के विचार ऊँचे,कामनाएँ मंगलकारी एवं संगति साधुता पूर्ण होगीं उसका मस्तिष्क सदा स्वस्थ होगा। हमारा परम कर्तव्य हैं कि हमारा मस्तिष्क सदा कल्याणकारी दिशा में अग्रसर रहें और यह तभी संभव है यदि हमारे कार्य परमार्थ के लिए हों क्योंकि कल्याण का निवास परमार्थ के सिवाय और किसी में नहीं हैं।
Tuesday, September 7, 2010
अच्छे विचार ही सुखद भविष्य के लिए मार्गदर्शक प्रदान करते हैं अतः अपने मन में सदैव कल्याणकारी, पवित्र एवं उत्पादक विचारों को ही स्थान दीजिए,अच्छे विचारो का चितंन एवं मनन कीजिए, अच्छे विचारो वाले व्यक्तियों का संत्सग कीजिए, अच्छा साहित्य जो पवित्र विचार उत्पन्न करें उनका वरण करें और दूषित विचार एक क्षण के लिए भी मस्तिष्क में न आने दें। अच्छे विचारों द्वारा ही सद्चरित्र का निर्माण सम्भव हैं और उत्कृष्ट चरित्र से स्वर्ग, धन-वैभव और सुख सभी कुछ मिलना अवश्यंभावी हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी इसी राह से होकर निकलता हैं।
Monday, September 6, 2010
मनुष्य ही प्रार्थना करते हैं पशु नहीं, इसीलिए जो मनुष्य प्रार्थना नहीं करते वह देखने में तो मनुष्य ज़रूर हैं परन्तु अंदर से पशुओ के ही भांति जड़ और अज्ञानी हैं। प्रार्थना मनुष्य जीवन का उद्देश्य ही नहीं कर्तव्य भी हैं, प्रार्थना करने से मनुष्य को ईश्वर के प्रेम का असीम आनंद प्राप्त होता है। यदि प्रार्थना करते समय किसी के लिए मन में द्वेष उत्पन्न हो तो प्रार्थना करने से पूर्व उसे क्षमा कर देना चाहिए क्योंकि दूषित मन से की गयी प्रार्थना ईश्वर को स्वीकार नहीं होती। संसार के समस्त प्राणी आपकी तरह ईश्वर के ही पुत्र हैं इसीलिए सबसे प्रेम करो यही सच्ची भक्ति (प्रार्थना) हैं।
Sunday, September 5, 2010
Friday, September 3, 2010
प्रार्थना आत्मा का, मन का भोजन हैं, पूरे दिन भोजन भले ही छूट जाए परन्तु प्रार्थना नहीं छूटनी चाहिए। अपनी दिनर्चया को इस प्रकार ढाले कि दिन के हरेक घंटे में केवल एक मिनट परम पिता को अवश्य स्मरण करें। प्रार्थना करना याचना करना नहीं हैं बल्कि प्रेम से ईश्वर को पुकारना हैं, यही मात्र सच हैं जग में बाकी सब झूठ। प्रार्थना द्वारा ही हम उस सबसे महत्वपूर्ण परम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं।
Thursday, September 2, 2010
दूसरों की अपेक्षा अपने को हीन मानना परले दरजे की बेवकूफ़ी नहीं तो और क्या हैं, ईश्वर की क्या यह कृपा कम हैं कि आपको सुर-दुर्लभ कर्मयोनि यानि मनुष्य का जन्म प्राप्त हुआ है, परमात्मा ने स्वयं अपनी चेतना का अंश दे आपको चैतन्य बनाया है, इच्छाओ,अंकाक्षाओं का प्रसाद प्रदान किया, बुद्धि,विवेक एवं शारीरिक बल दिया और चेतना से परिपूर्ण मन दिया हैं जिनका सदुपयोग करके मनुष्य महामानव बन सकता हैं और मृत्यु को परास्त कर अमर बन सकता हैं।
Wednesday, September 1, 2010
मनोबल इंसान का प्रधान बल हैं जिसके बिना किसी भी श्रेत्र में प्रगति करना नामुमकिन है, क्योंकि जिस व्यक्ति में मनोबल की कमी हैं वह निर्बल हैं और निर्बल व्यक्ति भी पापी की ही तरह सुख से जीने का अधिकारी नहीं इसीलिए सर्वप्रथम शक्ति का संचय करो तभी अपना एवं समाज का हित संभव होगा। श्रुति में भी कहा गया हैं "बलमुपास्व" अर्थात बल की उपासना करो तभी पाप की वृद्धि से बच पाओगे।
Tuesday, August 31, 2010
मनोबल इंसान का प्रधान बल हैं जिसके बिना किसी भी श्रेत्र में प्रगति करना नामुमकिन है, क्योंकि जिस व्यक्ति के मनोबल की कमी हैं वह निर्बल हैं और निर्बल व्यक्ति भी पापी की ही तरह सुख से जीने का अधिकारी नहीं इसीलिए सर्वप्रथम शक्ति का संचय करो तभी अपना एवं समाज का हित संभव होगा। श्रुति में भी कहा गया हैं "बलमुपास्व" अर्थात बल की उपासना करो तभी पाप की वृद्धि से बच पाओगे।
Friday, August 27, 2010
Some people live for others and to make them happy, some love to tease others and to make them unhappy again and again they enjoy to envy others and but they do not realise that they are themselves making their sack very heavy for the next birth and will not be able to repent it even,so please if you can't make others happy don't make them cry so that they are not forced to curse you from heart.
Wednesday, August 25, 2010
There are many people in this world who live for there own sake,such people are mere animals and not anything more than that,they are whiling away their human birth, Some live for others, they still are making some part of their lives worthwhile,while a few only live to help others and to make the lives of needy fulfil their dreams,such people are in true sense the messengers of God and I'm very lucky and proud to say that I know such people and those are my "Parents" Yes they are truly the messengers of God and His representatives for me in this world .Thanks a ton Almighty to bless me with such loving, caring and the best of all Parents.
Monday, August 23, 2010
Thursday, August 19, 2010
रोटी के लिए मरते खपते रहना मनुष्य का नहीं तुच्छ जीव-जंतुओ का कार्य हैं, इसीलिए इस अति दुर्लभ मानव शरीर को सार्थक बनाने के लिए इस प्रकार का कार्य करें जिसके लिए ईश्वर ने हमें इस धरती पर अवतरित किया है,क्योंकि यदि हम इस सही मार्ग पर नहीं चलेगें तो यह बहूमूल्य जीवन व्यर्थ हो जाएगा और सिवा पछतावे के हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा।
Wednesday, August 18, 2010
हम स्थूल नहीं सूक्षम जीवन हैं जो अज़र एवं अमर हैं, हमारा सीधा संबंध उस परम तत्व से हैं परन्तु अज्ञान के अंधकार के कारण हम इस परम सत्य को देख नहीं पाते इसी कारण हम गहन निद्रा में हैं और हमें आवश्यकता हैं इस अंधकार से उभरने की और प्रकाश की ओर बढ़ने की ताकि हम उस परम प्रकाश से साक्षातकार कर सकें और भव सागर से पार हो जाएँ।
Tuesday, August 17, 2010
अपने को सुसंपन्न वही व्यक्ति बना सकता हैं जिसमें कठोर परिश्रम करने की क्षमता हो और जिसने समय का एक-एक क्षण सुचारू रूप से व्यतीत किया हो। इतिहास गवाह हैं कि संसार में एक भी उदाहरण एसा नहीं मिलेगा जहाँ सफलता श्रमशीलता के बगैर मिली हो इसलिए सफलता उन्हीं को प्राप्त होती हैं जो निरंतर उसके लिए संघर्ष करते हैं।
Monday, August 16, 2010
पिछले जन्म के अच्छे कर्मो के कारण ही मनुष्य को अति दुर्लभ मानव शरीर ईश्वर से प्राप्त होता है तो इस मानव शरीर का सदुपयोग करना बहुत ही आवश्यक हैं अन्यथा यह सवर्णिम अवसर हाथ से निकल जाएगा और पछतावे के सिवा हमारे पास कुछ शेष नहीं रह जाएगा, तो इस मौके का पूर्ण रूप से सदुपयोग कीजिए एवं आत्मा को परमात्मा से एकाकार करने के लिए अग्रसर रहिए।
Friday, August 13, 2010
Thursday, August 12, 2010
God loves you ! He is the Creator, the Preserver and Destroyer. He creates each and every thing in this world, preserves it for its worth and finally it is destroyed. Thus we should know that we are not here forever we have to leave someday or other so help others and make your life as meaningful as it can be!
Wednesday, August 11, 2010
Tuesday, August 10, 2010
जीवन का अभिप्राय हैं दिव्य प्रेम- प्रेम हर उस प्राणी से, हर फूल-पत्ते से, हरेक जानवर से चाहे वो कीट-पंतग ही क्यों न हो और ईश्वर के ही बनाए हर एक मनुष्य से चाहे वह किसी भी जाति, सामप्रदाय, मज़हब या देश का क्यों न हो, केवल हर जगह, हर प्राणी में उस परम पिता परमेश्वर की ही कल्पना कीजिए तभी वो प्रेम दिव्य प्रेम बन पाएगा।
Monday, August 9, 2010
Friday, August 6, 2010
ईश्वर को सदैव सत्कर्म करने वाले मनुष्य ही प्रिय हैं, ईश्वर ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य की रचना इसी उद्देश्य से की हैं कि वह यह समझे कि "अहम् ब्रह्म,द्वितिय न अस्ति" अर्थात मनुष्य स्वयं कोई और नहीं ब्रह्म ही हैं और यह बात वो तभी समझ सकता हैं जब वह प्रमाद, आलस्य और अज्ञानता का त्याग कर जागरण का वरण करें और प्रकाश एवं पावनता की ओर अग्रसर हो, इसी प्रकार वह जीवत्व से बढ़ता हुआ ईश्वरत्व तक पहुँच सकता हैं। यह सभी कुछ तभी संभव हैं जब मनुष्य स्वयं को परमपिता परमात्मा का पुत्र एवं प्रतिनिधि अनुभव करे।
Thursday, August 5, 2010
Wednesday, August 4, 2010
Tuesday, August 3, 2010
मनुष्य की पूर्णता का चिन्ह यह हैं कि उसमें कितनी उत्कृष्ट भावनाओं का विकास हुआ हैं, मनुष्य उस दिन सही मायने में पूर्णता की परिधि में प्रवेश कर जाएगा जिस दिन उसका स्वार्थ परमार्थ बन जाएगा, उसके अधिकार कर्तव्य बन जाएँगे,उसका अपना सुख, दूसरे के सुख से संतुष्ट हो जाएगा एवं उसकी आत्मा परमात्मा में लीन हो जाएगी।
Monday, August 2, 2010
Friday, July 30, 2010
Thursday, July 29, 2010
Wednesday, July 28, 2010
हर मनुष्य को एक सीमित एवं और अन्जान अवधि का जीवन रूपी वरदान ईश्वर से मिला हैं जिसे सुन्दर से सुन्दर ढंग से व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को उलझन और अशांति से दूर ही रहना चाहिए और सदा विवेकपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे स्वयं तो अपना जीवन अच्छे से बिताना ही चाहिए साथ ही साथ दूसरों की बेहतर जीवन बीताने में सहायता भी करनी चाहिए तभी उसके जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा।
Tuesday, July 27, 2010
जो मनुष्य पुरूषार्थी है उसे इसका फल अवशय ही मिलता हैं एसा विधि का विधान है जिसे ईश्वर को भी मानना ही पड़ता है क्योंकि जो नियम ईश्वर ने स्वयं बनाए हैं उनका पालन करना उनके लिए भी परम आवश्यक हैं यानि सम्पूर्ण सृष्टि नियम की धुरी पर ही टिकी हैं इसीलिए ईश्वर कोई अपवाद न रखते हुए उसका पालन दृढ़ता के साथ स्वयं भी करते हैं।
Monday, July 26, 2010
Saturday, July 24, 2010
सच्चा आध्यत्मिक व्यक्ति अखण्ड आस्तिक होता हैं, वह हर कण में व्याप्त ईश्वर के सच्चे दर्शन करता हैं,उसे ज्ञात है कि ईश्वर हर प्राणी, हर फूल-पत्ते, हर मनुष्य में सदैव मौजूद हैं इसी कारण वह कोई भी काम गल्त कर ही नहीं सकता, ईश्वर का आस्तित्व मान कर भी जो व्यक्ति दुष्कर्म करता हैं एवं दूसरों के प्रति दुर्भाव रखता है, वह तो उस नास्तिक से भी गया गुज़रा हैं जो ईश्वर के आस्तित्व में विश्वास नहीं रखता और ऐसे आस्तिक बनाम नास्तिक को सौ वर्ष की तपस्या के बाद भी माफ नहीं किया जा सकता।
Friday, July 23, 2010
Thursday, July 22, 2010
Wednesday, July 21, 2010
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं कि "आत्मा की आत्मा का बंधु और आत्मा ही आत्मा का शत्रु हैं"अर्थात हम स्वयं ही अपने मित्र और स्वयं ही अपने शत्रु हैं,कोई दूसरा हमारा मित्र या शत्रु नहीं हैं, जितना ही हम अपने अंदर के परमतत्व के अनुकूल होते जाएँगे, उतना ही हमारा जगत के प्रति और जगत का हमारे प्रति मित्र भाव बढ़ता जाएगा और जितना ही हम इसकी विपरीत दिशा में आचरण करेगें उतना ही शत्रु भाव बढ़ता चला जाएगा। अंहकार और भौतिक जगत में उसी की भांति हो जाना दुःखो का मूल कारण हैं, यदि सुख पाना हो तो आध्यत्म भावना से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सच्चा प्रयत्न कीजिए।
Tuesday, July 20, 2010
उपासना का मनुष्य के विकास से अद्वितिय सम्बन्ध है,क्योंकि शुद्ध हृदय से भजन कीर्तन करना, प्रभु के समीप बैठ उन्हें निहारना एवं नाम जपने से मनुष्य के तन, मन के वह सूक्ष्म संस्थान जागृत होते हैं जो मनुष्य को सफल, दूरदर्शी और सद्गुणी बनाते हैं, परन्तु केवल भजन करने या माला फेरने से भगवान प्रसन्न नहीं होते, हमारा कर्म भी भगवान की पूजा का एक आधार हैं क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं एवं सर्वदा क्रियाशील हैं इसीलिए अपना कर्म को धर्म समझ कर करने वाले सभी मनुष्य ईश्वर को अत्यन्त प्रिय हैं चाहे वह खेत में काम करने वाला किसान हो या पत्थर तोड़ने वाला मज़दूर। कर्तव्य भावना से किए गए कर्म से भगवान उतने ही प्रसन्न होते हैं जितना कि भजन कीर्तन से।
Monday, July 19, 2010
श्रद्धा वह प्रकाश हैं जो अंधकार में प्रकाश का सत्य उत्पन्न करता हैं एवं हमारी शांतस्वरूप आत्मा को मंजिल(परमात्मा) तक पहुँचाता हैं। जब मनुष्य लौकिक चमक-दमक के कारण मोहग्रस्त हो जाता हैं तो माता के समान ठण्डे जल से मुँह धुला के जगा देने वाली शक्ति हैं श्रद्धा। श्रद्धा के बल पर ही अशुद्ध चिंतन का त्याग कर मनुष्य बार-बार ईश्वर के ध्यान में मग्न हो जाता हैं और बुद्धि आध्यत्म के पथ पर अग्रसर हो जाती हैं।
Friday, July 16, 2010
जिस प्रकार सोने में निखार लाने के लिए उसे आग में तपना पड़ता हैं उसी प्रकार अपनी पात्रता साबित करने के लिए हर मनुष्य को कठिनाइयों और असुविधायों की अग्नि परीक्षा देनी पड़ती हैं, परन्तु जो व्यक्ति कठिन से कठिन मार्ग पर भी अपने कर्तव्यों से विचलित नहीं होता एवं सच्चाई और निष्ठा का मार्ग नहीं त्यागता वास्तव में वही नर-रत्न कहलाता हैं और ईश्वरीय भण्डार की विभूतियों से विभूषित किया जाता हैं परन्तु वह मनुष्य जो धन लोलुप, स्वार्थी, आलसी एवं इन्द्रियों का दास हैं वह ईश्वरीय प्रसादो का उसी प्रकार अनधिकारी हैं जिस प्रकार कौआ यज्ञ भाग का।
Thursday, July 15, 2010
अधिकतर लोग ज़रा सी विपत्ति आने पर ही घबरा जाते हैं और हाय-हाय करने लगते है एवं ईश्वर के प्रति अनास्थावान होने लगते है,परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार में रहते हुए तो दुख-तकलीफें आना अवश्यंभावी हैं इसीलिए उनसे विचलित न होके उन्हें परमपिता का खेल समझना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों के साथ खेलते हैं,मुख पर डरावना मुखौटा लगाके बच्चो से ठिठोली करते हैं उसी प्रकार परमेश्वर जो हम सभी के पिता हैं और हम उनकी संतान हमें कठिनाइयों से अभ्यस्त बनाने के लिए समय-समय पर हमारे जीवन में चुनौतियाँ उत्पन्न करते है ताकि हम संसार के हर संकट का सामना कर सकें,अतः आपत्तियों को परमात्मा का खेल समझ उन्हें स्वीकार करना चाहिए एवं सदा ईश्वर में अपनी आस्था बनाए रखनी चाहिए।
Wednesday, July 14, 2010
Tuesday, July 13, 2010
अंहकार में वशीभूत हो मनुष्य शारीरिक सुख को ही सब कुछ मान बैठता हैं,परन्तु जीवन की साँझ आते-आते उसे इस बात का आभास हो जाता है कि जीवन क्षणभंगुर हैं, वो आत्मा की हैं जो कि शाश्वत सत्य हैं पर उस समय तक बहुत देर हो चुकती हैं एवं मनुष्य के हाथ सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं रह जाता क्योंकि यह बहूमुल्य मानव जीवन तो वह गवाँ चुकता हैं।
Monday, July 12, 2010
Friday, July 9, 2010
Thursday, July 8, 2010
Wednesday, July 7, 2010
Tuesday, July 6, 2010
Monday, July 5, 2010
माँ शब्द एक ऐसी सुदंर अनुभूति हैं कि जो सोचते ही होठों पर एक मधुर मुस्कान आ जाती हैं, माँ वो है जो बच्चे की हर पीड़ा हर वेदना समझती हैं, माँ वह है जो अपना सब कुछ वार बच्चो पर न्यौछावर कर देती है, पर जो बच्चे माँ को नहीं समझ सकते, उसके प्रेम को नहीं जान पाते वह न सिर्फ नादान हैं बल्कि जीवन के हर रिश्ते से अनिभिज्ञ एवं उदासीन हैं एवं उन्हें ईश्वर भी माफ नहीं कर पाते क्योंकि जो बच्चे माँ की कदर करना नहीं जानते उनकी किस्मत में ठोकरों के अलावा कुछ नहीं रखा हैं जोकि देर या सवेर उन्हें मिल कर ही रहेंगी।
Friday, July 2, 2010
जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने के लिए अपना पूरा प्रयत्न, पूरी शक्ति एवं आयु लगानी पड़ती हैं, तब कहीं जाकर सफलता प्राप्त होती हैं, परन्तु कुछ लोग तो बगैर प्रयत्न करे ही सफलता की अपेक्षा करते हैं एवं अनितिपूर्ण व्यवहार अपनाते हैं जो कि सर्वथा अनुचित हैं, मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी समूची ताकत से अपने कर्तव्य की पूर्ति करें एवं सही समय आने पर सफलता की प्राप्ति निश्चित हैं।
Thursday, July 1, 2010
जिस प्रकार भोर होने से पहले रात्रि का अंतिम प्रहर गहन कालिमा से परिपूर्ण होता हैं उसी प्रकार वर्तमान युग की स्थिति भी निरंतर बुरी होती जा रही हैं, परन्तु हमें ईश्वर पर भरोसा रख सदा संघर्ष जारी रखना चाहिए कि नव युग का निर्माण अब दूर नहीं, और उस श्रेष्ठ एवं नवीन युग की स्थापना से पूर्व सभी बुराईयों का सपष्ट होना नितांत आवश्यक हैं।
Wednesday, June 30, 2010
केवल अपने लिए जीना, खाना-खेलना और मर जाना, मानव जीवन का निकृष्टतम दुरूपयोग हैं, ऐसा व्यक्ति भले ही स्वयं को सफ़ल माने परन्तु वह असफ़ल ही माना जाएगा।क्योंकि भगवान ने इस सृष्टि को इस प्रकार रचा हैं कि सभी एक दूसरे का परोपकार करें, गाय माता दूध देकर हमारा पोषण करतीं हैं, बादल समुद्र से जल लाते हैं एवं प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं, सूर्य और चन्द्रमा समय पर उग इस धरती पर नवजीवन का संचार करते हैं, हो कहीं अपनी सिनग्ध चाँदनी से ठंडक प्रदान करते हैं, यानि छोटे से छोटा कीट-पंतग भी परोपकार का व्रत लिए जीवन जीता हैं तो क्या मनुष्य जो ईश्वर की सर्वोतम रचना हैं, उसे क्या स्वार्थपरकता शोभा देती हैं स्वयं विचार करें।
Tuesday, June 29, 2010
Monday, June 28, 2010
Friday, June 25, 2010
Thursday, June 24, 2010
Wednesday, June 23, 2010
Tuesday, June 22, 2010
ईश्वर ने मनुष्य को अपार संपदाओं से भरपूर जीवन दिया हैं परन्तु उसे दिया हैं एक-एक खंड में गिन-गिन कर। नया खंड देने से पहले पुराने का हिसाब-किताब हमें उन्हें देना हैं, हमारे दानी मित्र भगवान तब बहुत निराश होते हैं जब हम उनके मूल्यवान अनुदान की अवज्ञा करते हैं, इसलिए हर नए दिन का महत्व समझें क्योंकि जीवन का हर प्रभात हमारें लिए अभिनव उपहार लाता हैं एवम् चाहता हैं कि हम उसके उपहारों को उत्साहपूर्वक ग्रहण करें और उससे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करें।
Monday, June 21, 2010
Saturday, June 19, 2010
उनकी असीम अनुकम्पा हैं कि परमपिता ने आपको हमारा पिता निर्धारित किया,परमपिता ने दिया हैं हमें अद्भुत वरदान आपके रूप में, कभी न मुश्किले झेली हमने आपके कारण, आपके कारण ही यह जग देखने का सौभाग्य मिला, एक जीवन तो कम हैं आपके नमन के लिए, प्रार्थना करती हूँ हे भगवान सदा दें परम पिता आपके प्रेम एवं दुलार से परिपूर्ण यह वरदान और आपका आशीर्वाद हम पर सदैव बनाए रखें।
Friday, June 18, 2010
रामचरितमानस में आता हैं_
"जुग विधि ज्वर मत्सर अबिबेका।"
भौतिक ज्वर की तरह आध्यात्मिक ज्वर भी अनेक तरह के हैं। जैसे यौवन ज्वर, काम ज्वर,लोभ ज्वर,मोह ज्वर आदि। ज्वर के लक्षण हैं_ अंग की शिथिलता, मुँह सूख जाना, शक्ति की क्षीणता, पसीना आने लगना, देह में दाह जलन होना। ज्वर शब्द का अर्थ हैं_
"ज्वरति जीर्णो भवति अनेनेति ज्वरः।"
यानि आज का चिकित्सा विज्ञान इन सबके विषय में अल्प ज्ञान ही रखता है। कितना गहन हैं आध्यात्मिक चिकित्सा विज्ञान, यह इस वर्णन से स्पष्ट हैं।
गीता में इसी ज्वर से ग्रसित हो अपने लक्षणों की चर्चा अर्जुन, श्रीकृष्ण से करते हैं,इसे विषाद की स्थिति कहते हैं।
"जुग विधि ज्वर मत्सर अबिबेका।"
भौतिक ज्वर की तरह आध्यात्मिक ज्वर भी अनेक तरह के हैं। जैसे यौवन ज्वर, काम ज्वर,लोभ ज्वर,मोह ज्वर आदि। ज्वर के लक्षण हैं_ अंग की शिथिलता, मुँह सूख जाना, शक्ति की क्षीणता, पसीना आने लगना, देह में दाह जलन होना। ज्वर शब्द का अर्थ हैं_
"ज्वरति जीर्णो भवति अनेनेति ज्वरः।"
यानि आज का चिकित्सा विज्ञान इन सबके विषय में अल्प ज्ञान ही रखता है। कितना गहन हैं आध्यात्मिक चिकित्सा विज्ञान, यह इस वर्णन से स्पष्ट हैं।
गीता में इसी ज्वर से ग्रसित हो अपने लक्षणों की चर्चा अर्जुन, श्रीकृष्ण से करते हैं,इसे विषाद की स्थिति कहते हैं।
Thursday, June 17, 2010
Wednesday, June 16, 2010
Tuesday, June 15, 2010
Monday, June 14, 2010
God is Omnipresent everywhere and anywhere, He is present in the smallest or biggest creature of the world, He is present in every flower and the tiniest of plant,be it a reptile or a fish. So be very kind and considerate towards all his creations as He is present in all and see them all Equally. So a service towards His creations is a service rendered to Him.
Friday, June 11, 2010
Thursday, June 10, 2010
मनुष्य जीवन एक वन के समान हैं जहाँ सुरम्य एवं व्यवस्थित दिखने वाली पगडंडियाँ भी हैं एवं कंटीला एवं बंजर रास्ता भी, अकसर लोग आसान पगडंडियों के लालच में सही मार्ग भूल जाते हैं एवं वन रूपी जीवन पथ पर भटक जाते हैं, जीवन वन का राजमार्ग सदाचार और धर्म हैं, इस मार्ग पर चलकर भले ही मनुष्य को मुश्किलो का सामना करना पड़े परन्तु अंत में उसकी विजय निश्चित होती हैं एवं सुख और शांति का कारण बनती हैं।
Wednesday, June 9, 2010
Tuesday, June 8, 2010
भगवान श्री कॄष्ण ने गीता में कहा हैं कि हम सभी को अपना जीवन बाँसुरी के समान बनाना चाहिए, बाँसुरी जिस प्रकार बिना बुलाए बोलती नहीं, उसी प्रकार हमें भी मौन का ही अनुसरण करना चाहिए, बाँसुरी की तरह ही जब भी मुख खोले तो सदा मीठा ही बोले यानि "ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करें आपहु शीतल होय",एवं जिस प्रकार बाँसुरी में कोई गाँठ नहीं होती, उसी प्रकार किसी से मतभेद होने की स्थिति में हम मन में उस व्यक्ति के प्रति कोई गाँठ न बाँध ले इस बात का हमें विषेश ध्यान रखना चाहिए।
Monday, June 7, 2010
अकसर देखा जाता हैं कि जो चीज़ अपने पास नहीं हैं उसे प्राप्त करने की होड़ मनुष्य में सदा बनी रहती हैं, परन्तु वास्तव में तो जो परमात्मा से मिला हुआ हैं वो इतना अधिक हैं कि उसका सही और संतुलित उपयोग करके प्रगति के पथ पर बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता हैं, अतः जो अपने पास हैं उसी में संतुष्ट रहें एवम् उसका पूर्णतः सदुपयोग करें।
Friday, June 4, 2010
Thursday, June 3, 2010
Tuesday, June 1, 2010
Friday, May 28, 2010
Thursday, May 27, 2010
जीवन में निराशा के कितने ही काले बादल क्यों न छा जाए, परन्तु कहीं न कहीं आशा की नन्ही किरण अवश्य टिमटिमाती रहती हैं, मनुष्य की सहायता करने भगवान किसी न किसी रूप में जरूर आते हैं।परन्तु परमात्मा भी उन्ही की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं, यानि जो सब रास्ते बंद होने पर भी हार नहीं मानते एवं निरन्तर ईश्वर पर भरोसा रख संघर्ष करते रहते हैं।
Wednesday, May 26, 2010
Tuesday, May 25, 2010
Monday, May 24, 2010
हर मनुष्य के अतःकरण के भीतर ईश्वर विद्यमान हैं एवं इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि जो भी व्यक्ति गल्त काम करने लगता हैं उसे उसका अतःकरण अवश्य धिक्कारता हैं क्योंकि वह उसकी आत्मा की पुकार होती हैं और आत्मा परमात्मा का ही तो स्वरूप हैं, तो जब भी किसी काम में दुविधा हो तो अपने अतःकरण की पुकार अवश्य सुनें एवं उसका अनुसरण करें।
Friday, May 21, 2010
जिस तरह ईश्वर स्वयं सबसे सुन्दर हैं उसी प्रकार उनकी बनाई कोई भी कृति कुरूप कैसे हो सकती हैं, अर्थात इस संसार में कोई व्यक्ति या पदार्थ असुंदर नहीं हैं, यह तो हमारा दृष्टिकोण हैं जो किसी भी वस्तु को सुंदर अथवा कुरूप बना देता हैं। सृष्टा ने इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अतिसुंदर एवं स्मपूर्ण रचा हैं, अपनी किसी भी कृति को अपूर्ण छोड़े बिना।
Thursday, May 20, 2010
Tuesday, May 18, 2010
Monday, May 17, 2010
Friday, May 14, 2010
Thursday, May 13, 2010
मनुष्य के जीवन पर प्रथम अधिकार भगवान हैं, द्वितिय मात्रभूमि का, तीसरा माता-पिता एवं गुरू का एवं फिर स्वयं का, क्योंकि भगवान परम पिता हैं, उन्होंने हमें यह बहुमूल्य मानव जीवन प्रदान किया हैं, एवं मातृभूमि ने अपने उपजे अन्न से हमारा पोषण किया हैं, इस धरती पर हमें जन्म देने वाले माता-पिता के भी हम ऋणी हैं एवं गुरू जिन्होंने हमारा मार्ग प्रशस्त किया हैं, हमें ज्ञान प्रदान किया है, उनका भी हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार हैं।
Wednesday, May 12, 2010
सब कुछ तो इस परम पिता परमेश्वर ने बनाया हैं, उसका बँटवारा करना न केवल बेवकूफी हैं अपितु प्रकति के विरूध्द भी हैं, इस सम्पूर्ण विश्व वैभव की उपयोगिता इसी में हैं कि सब मिल-बाँट कर खाएँ। संसार सब का हैं। अतः जितना अपने लिए आवश्क हैं उतना उपयोग में लाएँ एवं शेष दूसरों के लिए छोड़ दे इसी में दूरदर्शिता है।
Tuesday, May 11, 2010
Monday, May 10, 2010
Thursday, May 6, 2010
Wednesday, May 5, 2010
Tuesday, May 4, 2010
Monday, May 3, 2010
Friday, April 30, 2010
यह बात तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में प्रतिमा के रूप में जो भगवान रहते हैं वह बोलते नहीं परन्तु हमारे अतःकरण में रहने वाले भगवान जब भी दर्शन देते हैं तो वे हमसे बात करने के व्याकुल रहते हैं और वह हमसे यह प्रशन करना चाहते हैं कि "मेरे इस अति दुर्लभ, दिव्य, अनुपम मानव जीवन के उपहार का इससे अच्छा उपयोग क्या और कुछ नहीं हो सकता जैसा कि किया जा रहा हैं?"वे इसका उत्तर हम सबसे चाहते हैं, एवं हमें इसका उत्तर जीते-जी या मृत्योपरान्त भगवान को देना ही होगा।
Thursday, April 29, 2010
Wednesday, April 28, 2010
"जो दूसरे को जीते सो वीर जो अपने को जीते सो महावीर"। यानि अपना सुधार कर लेना संसार की सबसे बड़ी सेवा हैं, क्योंकि अधिकतर लोग दूसरे की आँख का तिनका तो देख लेते हैं परन्तु अपनी आँख का शहतीर नहीं देख पाते, अर्थात वे दूसरो की छोटी से छोटी गल्ती भी देख लेते हैं परन्तु स्वयं की बड़ी से बड़ी भूल भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
Tuesday, April 27, 2010
Monday, April 26, 2010
Friday, April 23, 2010
Thursday, April 22, 2010
Wednesday, April 21, 2010
Tuesday, April 20, 2010
There is an old saying "If money is lost nothing is lost, if health is lost something is lost but if character is lost everything is lost". A person who has good character not only gains respect but people also trust him. Thus a good character should be a prime goal in life upon which is dependent the success and prosperity.
Monday, April 19, 2010
Saturday, April 17, 2010
Thursday, April 15, 2010
Wednesday, April 14, 2010
Tuesday, April 13, 2010
Monday, April 12, 2010
Friday, April 9, 2010
Wednesday, April 7, 2010
Tuesday, April 6, 2010
Monday, April 5, 2010
Friday, April 2, 2010
झूठ नहीं बोलना चाहिए,परन्तु कड़वा एवं अप्रिय सच भी किसी को नहीं बोलना चाहिए। दूसरों को नुकसान न पहुँचे, किसी की भावना को ठेस न पहुँचे ऐसी बात बोलनी चाहिए,ऐसी बोली गई बात झूठ होकर भी सौ सच के बराबर हैं।उसी प्रकार जिस बात से किसी को पीड़ा पहुँचे, किसी का मन आहत हो ऐसी कही गई बात सच होकर भी झूठ के बराबर ही हैं।
Thursday, April 1, 2010
Wednesday, March 31, 2010
Monday, March 29, 2010
Sunday, March 28, 2010
Saturday, March 27, 2010
Friday, March 26, 2010
Thursday, March 25, 2010
संसार एक कर्मभूमि हैं, जो जैसा कर्म करता हैं, उसे वैसा ही फल मिलता हैं। यदि कोई किसान बबूल बोकर, गेहूँ की फसल की इच्छा रखे तो यह उसी प्रकार असंभव हैं जिस प्रकार कोई मनुष्य दुष्कर्म करके भगवान से यह आशा रखें कि उसका जीवन सुखी एवं समृद्ध हो। अतः मन में सदैव पवित्र विचार रखें एवं आशापूर्ण विचारधारा रखें।
Wednesday, March 24, 2010
Tuesday, March 23, 2010
Monday, March 22, 2010
Friday, March 19, 2010
प्रभुप्राप्ति ही राजमार्ग हैं। भगवान बार-बार हमें यह बात भागवत गीता द्वारा बताते हैं कि इसी जीवन में बंधनो से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लो। मोक्ष का अर्थ हैं चेतना का ऊधर्वीकरण, यानि अपना अहं मिटाकर भगवान में लीन हो जाना, ऐसा होने पर परमात्मा हमारी चेतना में कण-कण में निवास करने लगते हैं और सभी दुःख-कष्ट मिट जाते हैं।
Thursday, March 18, 2010
Wednesday, March 17, 2010
Tuesday, March 16, 2010
महापुरूषों एवं संतो को, उर्दव गति प्राप्त होती हैं यानि वह मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार जिनका वध स्वयं परमात्मा करते हैं चाहे वह दुराचारी एवं अधर्मी ही क्यों न हो परम गति को प्राप्त होते हैं,इस बात का परिमाण हमें रावण, कंस एवं हरिणकश्यप जैसे दुष्टों का अंत ईश्वर द्वारा होने पर मिलता हैं। और अधिकतर मनुष्य जो साधारणतः तो मध्यम गति को प्राप्त होते हैं क्योंकि अपनी अपूर्ण इच्छाओं एवं संचित कर्मो के कारण उनका पुर्नजन्म अवश्यंभावी हैं, परन्तु यदि ऐसे मनुष्य भी अंत समय भगवान को स्मरण करते हैं तो दया एवं करूणा के अथाह सागर(परमात्मा) में लीन हो जाते हैं अर्थात वह आवागमन के चक्रव्यूह से मुक्त हो जाते हैं।हर पल उस परमपिता को याद करें यही परम स्मृति हैं।
Monday, March 15, 2010
Saturday, March 13, 2010
माम् उपेत्य भगवान को प्राप्त हो जाना ही सही मार्ग हैं और शांतिप्राप्ति का एकमात्र उपाय हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं मामुपेत्य पुनर्जन्म न विद्यते अर्थात यह भगवान का आश्वासन हैं कि उन्हें प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता और हम सोहम् सच्चिदानन्दोहम् हो जाते हैं अर्थात हमारी आत्मा परमतत्व में लीन हो जाती हैं एवं हम साक्षात् अविनाशी परमब्रह्म की सत्ता हो जाते हैं
Friday, March 12, 2010
Thursday, March 11, 2010
Wednesday, March 10, 2010
Tuesday, March 9, 2010
Monday, March 8, 2010
Sunday, March 7, 2010
Saturday, March 6, 2010
Friday, March 5, 2010
जीवन एक सराय के समान हैं, जितने रिश्ते-नाते हैं सब यहीं छूट जाते हैं, सभी कुछ यहीं रह जाता हैं यह मोह-माया के जाल में जकड़कर आत्मा तड़पती रहती हैं क्योंकि आत्मा को यह शरीर प्रभु प्राप्ति के लिए प्रदान किया गया हैं एवं हर मनुष्य के जीवन का यही लक्ष्य भी हैं,परन्तु मनुष्य इस परम लक्ष्य को छोड़ केवल धन संग्रह और जीवन यापन में लगा हुआ हैं।
Thursday, March 4, 2010
Wednesday, March 3, 2010
आत्मा सत्य है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि एक चोर भी दूसरे से यह अपेक्षा नहीं रखता हैं कि उसके यहाँ कोई चोरी न करें, उसी प्रकार एक दुराचारी व्यक्ति भी दूसरों से सदा सदाचार की ही अपेक्षा रखता हैं, यह बात इस बात का प्रमाण हैं कि हर मनुष्य की आत्मा निष्पाप एवं अटल सत्य हैं एवं वह व्याकुल हैं परमात्मा से मिलन के लिए परन्तु आत्मा को मनुष्य के दुष्कर्मो के चलते आवागमन की चक्की में पिसना पड़ता हैं।
Tuesday, March 2, 2010
Monday, March 1, 2010
Sunday, February 28, 2010
Friday, February 26, 2010
Thursday, February 25, 2010
देवता उन्हें ही कहा जाता हैं जो दूसरो को देते हैं, देने का अर्थ धन नहीं हैं। यदि आप चाहें तो दूसरो को बहुत कुछ दे सकते हैं, आप दूसरो को प्रेम दे सकते हैं,मिठास दे सकते हैं। किसी दूसरे के जीवन को दिशा दे सकते हैं, दूसरों की सेवा कर सकते हैं, दूसरों की सहायता कर सकते हैं। यानि देवता बनना चाहते हैं तो देना सीखिए।
Wednesday, February 24, 2010
Tuesday, February 23, 2010
भोगा न भुक्ता वयमय भुक्ताः अर्थात भोगों को हम भोग नहीं पाए, लेकिन भोगों ने हमको भोग लिया। यानि यह दर्शाता हैं कि किसी भी मनुष्य की स्मपूर्ण इच्छाएँ कभी पूरी नहीं होती परन्तु इन अतृप्त इच्छाओं के कारण ही हमें इस मृत्युलोक में बार-बार जन्म लेना पड़ता हैं एवं नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं। अतः हम इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाए परन्तु इच्छाओं ने हमारा भोग कर लिया कहना अतिशोयक्ति न होगी।
Monday, February 22, 2010
Do you see God in blooming flowers?
Do you see God in sprinkling showers?
Do you see God in a smiling face?
Do you see God in a cherished pace?
Do you see God in sun and moon?
Do you see God in stars and rain?
God is everywhere in every bit of universe.
You just need your eyes to be open.
With eyes shut you can be just in the world of miseries.
So open your eyes to the world of enlightenment, God
Do you see God in sprinkling showers?
Do you see God in a smiling face?
Do you see God in a cherished pace?
Do you see God in sun and moon?
Do you see God in stars and rain?
God is everywhere in every bit of universe.
You just need your eyes to be open.
With eyes shut you can be just in the world of miseries.
So open your eyes to the world of enlightenment, God
Saturday, February 20, 2010
Friday, February 19, 2010
Thursday, February 18, 2010
Wednesday, February 17, 2010
Ayam Atma Brahmm This self(Atma/Soul) is Brahmm
From: Mandukya Upanisad, Atharva Veda
Ayam, means this, means the consciousness that lies deep within an individual, the innermost core of the personality is same as Brahmm which is everywhere, visible or invisible. Means you and Brahmm are identical and you should find this identity.
From: Mandukya Upanisad, Atharva Veda
Ayam, means this, means the consciousness that lies deep within an individual, the innermost core of the personality is same as Brahmm which is everywhere, visible or invisible. Means you and Brahmm are identical and you should find this identity.
Tuesday, February 16, 2010
प्राथना सरल,निश्चल एवं भावपूर्ण हृदय से ही संभव होती हैं।ऐसी प्राथना से हमारे जीवन के सभी श्रेष्ठ प्रयोजन पूरे होते है। प्रार्थना से गहन तृप्ति मिलती हैं एवं अंतःकरण के सभी अवरोध दूर होते हैं। सबसे आवश्क बात प्रार्थना से हमें मनुष्य जीवन के उद्देश्य का भान होता हैं जोकि परम तत्व में लीन हो जाना हैं।
Sunday, February 14, 2010
Saturday, February 13, 2010
हम सभी के अंदर एक आत्मा हैं,जो शांत है,कर्म की दॄष्टि से श्रेष्ठ हैं।परन्तु आत्मा और परमात्मा के इस रहस्य को समझने में बाधक हैं मनुष्य का अंहकार। अहंकार से प्रेरित व्यक्ति कभी यह समझ नहीं पाता कि उस निराकार परमात्मा से ही यह जगत है,सभी प्राणी है,हर छोटे से छोटे कण में परमात्मा सर्वत्र व्याप्त हैं। अतः आवश्यकता है कि इस अंहकार को त्यागकर हम "आत्मा"बन जाएँ, उस परब्रह्म के अंश बन जाएँ।यही मोक्ष हैं।
Friday, February 12, 2010
Thursday, February 11, 2010
वेदान्त कहता है कि इस संसार में तीन प्रकार के मूर्ख हैं प्रथम है वह जो व्यर्थ की आशा रखते है, दूसरे है जो व्यर्थ कर्म करते है और जो व्यर्थ का ज्ञान अर्जित करते हैं। अर्थात ईश्वर के अतिरिक्त किसी और से आशा रखने वाला मनुष्य मूर्ख है। जो कर्म ईश्वर को अर्पित नहीं किया वह व्यर्थ है एवं जो ज्ञान हमें ईश्वर की ओर प्रेरित न करे वह व्यर्थ हैं।
Wednesday, February 10, 2010
Tuesday, February 9, 2010
Monday, February 8, 2010
Saturday, February 6, 2010
Friday, February 5, 2010
Thursday, February 4, 2010
Wednesday, February 3, 2010
जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु। परन्तु मृत्यु का अर्थ मुक्ति नहीं,मोक्ष नहीं। महापुरुषों ने सच ही कहा है कि "तन की मौत मन की मौत नहीं"। जिस तरह मनुष्य वस्त्र बदलता हैं आत्मा मृत्युउपरान्त शरीर बदलती हैं,परन्तु मोक्ष केवल परमात्मा की शरण में जाने से प्राप्त होता हैं। अतः पारब्रह्म परमेश्वर से सच्चा प्रेम एवं आस्था ही हमें मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं।
Tuesday, February 2, 2010
भक्ति का अर्थ है भावनाओं की पराकाष्ठा और परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम। यदि किसी दुःखी को देखकर मन में करूणा जागे,किसी लाचार को देखकर मन में उसकी मदद करने की भावना जागे,एवं भूले-भटके को देख उन्हें सही मार्ग पर चलाने की इच्छा जागे, तो यह हृदय ही सच्ची भक्ति के योग्य हैं। ईश्वर की सच्ची उपासना दीन-दुखियों को पर दया कर उनकी सेवा-सश्रुणा करना ही हैं।
Monday, February 1, 2010
Sunday, January 31, 2010
Saturday, January 30, 2010
Friday, January 29, 2010
Thursday, January 28, 2010
Wednesday, January 27, 2010
Tuesday, January 26, 2010
हम सबके अंदर भगवान गुप्त रूप में निवास करते हैं। जो समझदार है, ज्ञानी हैं, भगवत् स्वरूप को समझते हैं,वे यह मानते है कि हम सबके अंदर स्थित भगवान ही वह परमप्रकाश की ज्योति है,जिसे हम बाहर परमेश्वर कहकर पूजते हैं। परन्तु इसके विपरीत भ्रमित, अज्ञानी, मोह में उलझे व्यक्ति यह सोचते है कि हम ही सही सोचते है,बाकी सभी गल्त हैं;यहाँ तक की ये भगवान की भी(जिन्होंने हमें यह अमूल्य जीवन प्रदान किया है) उस परब्रह्म परमेश्वर की हर पल अवहेलना करके व्यर्थ के कर्म करते रहते हैं। अतः ऐसे अज्ञानी एवं भ्रमित लोगों की संगत नहीं रखनी चाहिए और हर क्षण भगवान का स्मरण करना चाहिए।
Monday, January 25, 2010
भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा हैं- न हि कशिचत्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
अर्थात किसी भी क्षण मनुष्य बिना कर्म किए नहीं रह सकता। यानि कि कर्म जीवन की सबसे समर्थ और सार्थक परिभाषा है। हर रोज़ हम जीवन के साथ-साथ कर्म(कार्य) भी करते है। कोई भी क्रिया(कर्म) स्वयं में पाप या पुण्य नहीं होती,इसे यह दरजा उन भावों से मिलता है, जो इसके पीछे सक्रिय है।
अर्थात किसी भी क्षण मनुष्य बिना कर्म किए नहीं रह सकता। यानि कि कर्म जीवन की सबसे समर्थ और सार्थक परिभाषा है। हर रोज़ हम जीवन के साथ-साथ कर्म(कार्य) भी करते है। कोई भी क्रिया(कर्म) स्वयं में पाप या पुण्य नहीं होती,इसे यह दरजा उन भावों से मिलता है, जो इसके पीछे सक्रिय है।
Sunday, January 24, 2010
Saturday, January 23, 2010
Friday, January 22, 2010
Thursday, January 21, 2010
विविध धर्म-सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र का भाव सन्निहित है
१ हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)
२ यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)
३ शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)
४ पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
५ दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्)
६ जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।
७ बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)
८ कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।
९ ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)
११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)
१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
१ हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)
२ यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)
३ शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)
४ पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
५ दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्)
६ जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।
७ बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)
८ कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।
९ ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)
११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)
१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
Wednesday, January 20, 2010
Tuesday, January 19, 2010
Monday, January 18, 2010
Sunday, January 17, 2010
Saturday, January 16, 2010
Friday, January 15, 2010
भागवत गीता में कहा गया है कि भगवान को प्राप्त करने के तीन सरल उपाय हैं सुमिरन, श्रवण और संकीर्तन- सुमिरन का अर्थ है कि निरंतर प्रभु नाम का जाप करना, श्रवण यानि जहाँ प्रभु की गाथा हो रही हो उसे कानो द्वारा ग्रहण करना एवं संकीर्तन का अर्थ है प्रभु नाम का गुणगान करना और प्रेम से अपने आराध्य को पुकारना।
Thursday, January 14, 2010
Wednesday, January 13, 2010
Tuesday, January 12, 2010
Monday, January 11, 2010
Saturday, January 9, 2010
Friday, January 8, 2010
Thursday, January 7, 2010
Wednesday, January 6, 2010
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- मामनुस्मर युध्य च- मेरा(प्रभु का) निरंतर स्मरण करते हुए युध्द करो, यह निश्चित है कि तुम विजय को प्राप्त होगे।
अर्थात भगवान का स्मरण निरन्तर करते हुए मनुष्य को अपनी विपरीत परिस्थितों से जूझता रहे एवं जीवन रूपी संघर्ष में निरन्तर ईश्वर को याद करते हुए संग्राम करता रहे तो वह निश्चित ही विजयश्री को प्राप्त होता है।
अर्थात भगवान का स्मरण निरन्तर करते हुए मनुष्य को अपनी विपरीत परिस्थितों से जूझता रहे एवं जीवन रूपी संघर्ष में निरन्तर ईश्वर को याद करते हुए संग्राम करता रहे तो वह निश्चित ही विजयश्री को प्राप्त होता है।
Tuesday, January 5, 2010
Monday, January 4, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)